गरुड़ पुराण की नदी वैतरणी आखिर कहां है? क्या भारत में बहती है वैदिक और पौराणिक नदियाँ


स्टोरी हाइलाइट्स

  आपने हिंदू धर्मावलंबियों से बात-बात पर वैतरणी नदी पार करने की चर्चा सुनी होगी|  आखिर यह वैतरणी नदी क्या है और कहां है? क्या ये किसी और लोक में है या भारत में भी इस तरह की कोई नदी पाई जाती है?गरुड़ पुराण की नदी वैतरणी आखिर कहां है? क्या भारत में बहती है यह नदी? हिंदुओं के लिए गरुण पुराण बेहद महत्वपूर्ण है. मुमुक्षुओं के लिए इसकी महत्ता काफी अधिक है और आखिरी सांसें गिन रहे लोगों को यह पुराण पढ़कर सुनाया जाता है. गुरुड़ पुराण के मुताबिक, मरने के बाद वैतरणी नाम की नदी पार करनी होती है. गरुड़ पुराण के अनुसारआत्मा सत्रह दिन तक यात्रा करने के पश्चात अठारहवें दिन यमपुरी पहुंचती है। यमपुरी या यमलोक का उल्लेख गरूड़ पुराण और कठोपनिषद ग्रंथ में मिलता है। मृत्यु के 12 दिनों के बाद मानव की आत्मा यमलोक का सफर प्रारंभ कर देती है। पुराणों अनुसार यमलोक को 'मृत्युलोक' के ऊपर दक्षिण में 86,000 योजन दूरी पर माना गया है। एक योजन में करीब 4 किमी होते हैं। गरूड़ पुराण में यमलोक के इस रास्ते में वैतरणी नदी का उल्लेख मिलता है। वैतरणी नदी विष्ठा और रक्त से भरी हुई है। जिसने गाय को दान किया है वह इस वैतरणी नदी को आसानी से पार कर यमलोक पहुंच जाता है अन्यथा इस नदी में वे डूबते रहते हैं और यमदूत उन्हें निकालकर धक्का देते रहते हैं। हम आज गरुड़ पुराण में वर्णित वैतरणी नदी भारत में कहीं खोजने की कोशिश करेंगे|  भले ही यमलोक की वैतरणी अलग हो लेकिन इस नाम की नदी भारत में भी पाई जाती है| हिंदुओं के लिए स्वर्ग के द्वार खोलने वाली वैतरणी नदी ओडिशा में भी है और महाराष्ट्र में भी. वैतरणी कुरूक्षेत्र की एक नदी थी। 'वामनपुराण में इसकी कुरूक्षेत्र की सप्तनदियों में गणना की गई है- 'सरस्वती नदी पुण्या तथा वैतरणी नदी, आपगा च महापुण्या गंगा-मंदाकिनी नदी। मधुस्रवा अम्लुनदी कौशिकी पापनाशिनी, दृषद्वती महापुण्या तथा हिरण्यवती नदी।' उड़ीसा में भी वैतरणी नामक एक नदी बहती है, जो सिंहभूमि के पहाड़ों से निकल कर 'बंगाल की खाड़ी' में 'धामरा' नामक स्थान के निकट गिरती है। यह कलिंग की प्रख्यात नदी थी। महाभारत, भीष्मपर्व में इस प्रदेश की अन्य नदियों के साथ ही इसका भी उल्लेख है- 'चित्रोत्पलां चित्ररथां मंजुलां वाहिनी तथा मंदाकिनी वैतरणी कोषां चापि महानदीम्।' पद्मपुराण] में इसे पवित्र नदी माना गया है। बौद्ध ग्रंथ 'संयुक्तनिकाय में इसे "यम की नदी" कहा गया है- 'यमस्त वैतरिणम्।' पौराणिक अनुश्रुति में वैतरणी नामक नदी को परलोक में स्थित माना गया है, जिसे पार करने के पश्चात् ही जीव की सद्गति संभव होती है। धर्म की मर्यादा का उल्लंघन करने वाला व्यक्ति, चाहे वह राजा हो या राजकर्मचारी हो या श्रेष्ठ कुल में पैदा हुआ व्यक्ति हो, उसे “वैतरणी नदी” नामक नरक मिलता है। वैतरणी नदी में इनको मल, मूत्र, रक्त, चर्बी मांस मज्जा अस्थि आदि निकृष्ट वस्तुएँ मिलती हैं तथा जल और मल-मूत्र में रहने वाले कीड़े इनको सदा सताया व खाया करते हैं। नरक लोक में सूर्य के पुत्र “यम” रहते हैं और मृत प्राणियों को उनके दुष्कर्मों का दण्ड देते हैं। नरकों की संख्या 28 कही गई है| हालांकि पुराण की वैतरणी और भारत में मौजूद वैतरणी नदी में अंतर हो सकता है| हो सकता है कि पुराण में वर्णित वैतरणी नदी से प्रेरित होकर भारत में मौजूद कुछ नदियों का नाम बेहतर नहीं रख दिया गया हो| वैतरणी ही नहीं- हिंदू धर्म में वर्णित अनेक नदियों का इतिहास रोचक है| ओडिशा की वैतरणी के बेसिन को ब्राह्मणी-वैतरणी बेसिन कहा जाता है. लेकिन इसके साथ ही महाराष्ट्र में भी एक वैतरणी नदी है, जो नासिक के पास पश्चिमी घाट से निकलती है और अरब सागर में गिरती है. वैतरणी से थोड़ी ही दूरी पर मशहूर गोदावरी का भी उद्गम स्थल है, और नासिक के पास से निकलकर यह प्रायद्वीपीय भारत की सबसे लंबी नदी बन जाती है. इसको दक्षिण की गंगा भी कहते ही हैं. लेकिन, एक अदद गोदावरी नेपाल में भी है. वैसे, बुंदेलखंड के चित्रकूट में एक गुप्त गोदावरी भी निकलती है और जो एक पहाड़ी गुफा के भीतर से पतली धारा के रूप में बहती है. गोदावरी की सहायक नदी है इंद्रावती, जो छत्तीसगढ़ में बहती है पर एक इंद्रावती नेपाल में भी मौजूद है. उत्तर प्रदेश की प्रदूषित नदियों में शर्मनाक रूप से टॉप पर रहने वाली गोमती नदी की बात करें तो एक गोमती त्रिपुरा में भी है जो वहां से आगे बांग्लादेश में घुस जाती है. इसी नदी पर त्रिपुरा में का सबसे बड़ा और बदनाम बांध बना हुआ है. गंगा का नाम तो नदी शब्द का करीबन पर्यायवाची ही बन गया है. आदिगंगा से लेकर गोरीगंगा और काली गंगा से लेकर वनगंगा और बाल गंगा तक नाम की नदियां अस्तित्व में हैं. पंजाब की रावी का एक नाम इरावती भी है. लेकिन, एक और इरावती है. पर यह इरावती नमाइ और माली नदियों के मिलने से बनती है और म्यांमार में बहती है. यह हिमालयी हिमनदों से शुरू होती है. पंजाब वाली रावी पाकिस्तान होती हुई सिंधु में मिल जाती है और म्यांमार वाली इरावदी अंडमान सागर में. परिणीता दांडेकर लिखती हैं कि कावेरी नाम की भी दो नदियां हैं. एक तो वह मशहूर कावेरी नदी, जिसके पानी के लिए तमिलनाडु और कर्नाटक में रार मचा रहता है. जबकि दूसरी कावेरी पश्चिम की तरफ बहने वाली नदी नर्मदा की सहायक नदी है और दांडेकर के मुताबिक, ओंकारेश्वर नर्मदा और कावेरी के संगम पर ही बसा है. दांडेकर अपने लेख में चर्चा करती हैं कि हांगकांग में सतलज, झेलम और व्यास नदियां मौजूद हैं. संभवतया, यह 1860 के आसपास हुआ जब हांगकांग में तैनात पंजाब के सिख सैनिकों ने वहां की नदियों के नाम अपने पसंद के रख दिए. हांगकांग की सबसे बड़ी ताजे पानी की नम भूमि लॉन्ग वैली को दोआब नाम दिया गया और यह वहां की सतलज और व्यास के बीच की भूमि है. शायद, इन छोटे मैदानों को देखकर सिख फौजियों को अपने वतन की याद आती होगी. दांडेकर अपने लेख में धीमान दासगुप्ता को उद्धृत करती हैं जो कहते है कि लोग अपने साथ कुछ नाम भी लिए चलते हैं. मसलन, "प्राचीन वैदिक लोग अपने साथ नाम लेकर चले थे. असली सरस्वती और सरयू नदियां (जिनका जिक्र रामायण में है, अफगानिस्तान और ईरान में थीं. असली यमुना फारस की मुख्य देवी थीं." जाहिर है, इतिहास के इस नए नजरिए के साथ भी देखना चाहिए. नदियों के नामों में वैदिक संस्कृत का प्रभाव स्पष्ट रूप से कर्नाटक में दिखता है जहां शाल्मला, नेत्रावती, कुमारधारा, पयस्विनी, शौपर्णिका, स्वर्णा, अर्कावती, अग्नाशिनी, कबिनी, वेदवती, कुमुदावती, शर्वती, वृषभावती, गात्रप्रभा, मालप्रभा जैसी नदियों के नाम मौजूद हैं. गुजरात की नदियों साबरमती और रुक्मावती का नाम याद करिए. कितने सुंदर और शास्त्रीय नाम हैं!  लेकिन एक नदी वहां ऐसी भी है जिसका नाम है भूखी. एक अन्य नदी है उतावली. राजस्थान अलवर जिले में एक नदी का नाम जहाजवाली भी है. कुछ नदियों के नाम भी वक्त के साथ बदले हैं जैसे, गोदावरी आंध्र प्रदेश में गोदारी कही जाने लगती है और पद्मा बांग्लादेश में पोद्दा. चर्मावती चंबल हो जाती है और वेत्रावती, बेतवा. दांडेकर लिखती हैं, कुछ नदियों के नाम में इलाकाई और भाषायी असर भी आता है. मसलन, तमिल और मलयालम में आर और पुझा (यानी नदी) कई नदियों के नाम में जुड़ा हुआ है. गौर कीजिए, चालाकुडी पूझा, पेरियार, पेंडियार वगैरह. इसी तरह भूटान, सिक्कम और तवांग इलाके में छू का मतलब नदी ही होता है. अब वहां की नदियों हैं, न्यामजांगछू या राथोंग छू. तो अब इसके आगे नदी शब्द मत लगाइए. क्योंकि पहले ही छू कहकर नदी कह चुके हैं. असम में भी नदियों के नाम के आगे कुछ खास शब्द लगाए जाते हैं, और वो हैं दि. दिहांग, दिबांग, दिखोऊ, दिक्रोंग आदि. बोडो में दि शब्द का मतलब होता है पानी और याद रखिए ब्रह्मपुत्र घाटी में सबसे पहले बसने का दावा भी बोडी ही करते हैं. जाहिर है, नदियों के नाम इतिहास के सूत्र छोड़ते हैं. भाषा विज्ञानियों को इस दिशा में काम करना चाहिए.