कौन थी गणितज्ञ लीलावती


स्टोरी हाइलाइट्स

कौन थी गणितज्ञ लीलावती
लीलावती दसवीं सदी के प्रसिद्ध गणितज्ञ तथा ज्योतिष विद्या के पण्डित भास्कराचार्य की इकलौती सन्तान थी। दाम्पत्य-जीवन का सुख भी उसके भाग्य में नहीं था। वह विवाह के कुछ समय के बाद ही विधवा हो गई। 

यद्यपि पण्डित भास्कराचार्य ने ज्योतिष गणना द्वारा लीलावती के वैधव्य को जान लिया था, किन्तु होनी को कौन टाल सका है, पण्डित जी के लाख प्रयत्न करने पर भी शुभ घडी टल गई और दूसरे लग्न में विवाह हुआ और वह विधवा हो गई।
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पण्डित भास्कराचार्य ने पुत्रों के वैधव्य-दुःख तथा एकाकीपन को दूर करने की दृष्टि से उसे गणित पढ़ाना शुरू किया। उसने भी अपना शेष जीवन गणित को समर्पित करने का निश्चय कर लिया, क्योंकि इसके सिवा इस जीवन में मन रमाने का कोई अन्य मार्ग ही दिखाई नहीं दिया। 

उसने अपनी लगन, श्रम और समर्पण से थोड़े ही समय में गणित में अद्भुत दक्षता प्राप्त कर ली। पण्डित भास्कराचार्य की एक रचना 'सिद्धान्त शिरोमणि' उपलब्ध हुई है, जिसमें पाटी गणित, बीज गणित और ज्योतिष विषय की विवेचना है। 

इस ग्रन्थ में गणित का अधिकांश भाग लीलावती रचित है इस गणित अंश में लीलावती गणित के ऐसे-ऐसे सिद्धान्तों का निरूपण किया है, जिन्हें पढ़कर आज के अनेक विद्वान भी चकरा जाते हैं। 

पुराने समय में गुरुकुलों और शिक्षा केन्द्रों में विद्यार्थी ही नहीं अपित अध्यापक भी पण्डिता लीलावती का नाम बहुत ही आदर और श्रद्धा से लेते थे। इस ग्रन्थ में लीलावती ने गणित के नवीनतम सिद्धांत का प्रतिपादन कर विश्व का उपकार किया है। 

इस ग्रन्थ में यत्र-तत्र 'सखे', 'मृगनयने' तथा 'कान्ते' आदि सम्बोधनों के कारण कुछ विद्वान् लीलावती को पण्डित भास्कराचार्य की सहधर्मिणी मानने का भ्रम पाले हुए हैं। ये शब्द निकटस्थ, अत्यन्त प्रिय तथा विद्यार्थी के लिए भी प्रयुक्त होते आए हैं, फिर पिता को पुत्री के वैधव्य का भी ज्ञान था। 

ऐसे शब्दों द्वारा उसमें जीवन की जिजीविषा जगाना भी आचार्य का भाव रहा होगा। वह पुत्री थी या भार्या, इससे लीलावती के व्यक्तित्व, पाण्डित्य तथा योगदान में कोई अन्तर नहीं पड़ता।