स्टोरी हाइलाइट्स 
											
												
													
क्या मनुष्य जीवन चौरासी लाख योनियों से बाहर है : -दिनेश मालवीय हमारे शास्त्रों मे युगों पहले लिखा जा चुका है कि संसार मे चौरासी लाख योनियां  (species)....
												
											 
										 
									
									
																					
												क्या मनुष्य जीवन चौरासी लाख योनियों से बाहर है
क्या सचमुच इतनी योनियां होती है
आधुनिक विज्ञान ने माना कि होती हैं
मानव जीवन क्यों सर्वश्रेष्ठ क्यों
-दिनेश मालवीय
मित्रो,
धर्म पुराण मे आपका स्वागत है।
सनातन धर्म-दर्शन मे अनेक बातें ऐसी हैं, जिनकी गूढ़ता और गंभीरता को नहीं समझ पाने के कारण आधुनिक लोग उनकी सत्यता पर संदेह करते रहे हैं। कुछ लोग तो उनका मज़ाक उड़ाते हैं। लेकिन विगत कुछ वर्षों मे आधुनिक विज्ञान ने सनातन दर्शन की अनेक महत्वपूर्ण धारणाओं और सिद्धांतों पर सहमति की मोहर लगाई है।
इन महत्वपूर्ण विषयों मे चौरासी लाख योनियों की अवधारणा भी शामिल है। हमारे शास्त्रों मे युगों पहले लिखा जा चुका है कि संसार मे चौरासी लाख योनियां  (species) होती हैं। आधुनिक जीव विज्ञानियों ने भी अपने शोध मे पाया है कि करीब 86-87 species पाये जाते ऊहैं। उनके अनुसार 3-4 लाख species ऐसे हैं जो मुख्य केटेगरी मे मर्ज किये जा सकते हैं। इस प्रकार इनकी संख्या लगभग चौरासी लाख ही बैठती है।
संसार मे जीवों का जन्म दो प्रकार से होता है। कुछ जीव दो शरीरों का संयोग होने पर अस्तित्व मे आते हैं। इन्हें योनिज कहते हैं। कुछ जीव अपने आप अमीवा की तरह विकसित होते हैं। इन्हें अयोनिज कहा जाता है।
वर्गीकरण
सनातन धर्म मे योनियों का बहुत स्पष्ट वर्गीकरण किया गया है। इसके अनुसार चार प्रकार की योनियां हैं।
1. जरायुज
2. अण्डज
3. स्वेदज
4. उद्भिज्ज
जरायुज योनि मे मृग आदि पशु, दोनो ओर दांतों वाले व्याल यानि सर्प, राक्षस,पिशाच, और मनुष्य आदि शामिल हैं, क्योंकि ये जरायु यानी झिल्ली से निकलते हैं।
अण्डज जीवों मे अण्डों से निकलने वाले जीव शामिल हैं, जैसे पक्षी,सर्प,घड़ियाल, मत्स्य और कछुवे। ये जलचर और थलचर दोनो प्रकार के होते हैं।
डाँस, मच्छर, जुएँ,मक्खी, खटमल आदि स्वेदज होते हैं, क्योंकि ये स्वेद यानि पसीने से उत्पन्न होते हैं।
बीज या शाख से उत्पन्न होने वाले जीवों को उद्भिज्ज कहा जाता है।इनमे वृक्ष आदि शामिल हैं। इनके तीन भेद हैं। फल पक जाने पर जिनका नाश हो जाता है और जिनमें बहुत फूल और फल होते हैं, उन्हें औषधि कहते हैं। जिनमें फूल नहीं होता, केवल फल होता है उनको वनस्पति कहते हैं। जो फूलने और फलने पर भी बने रहते हैं, उन्हें वृक्ष कहते हैं।
जन्म
सनातन मान्यता के अनुसार जीव अपने कर्मों के अनुसार चौरासी लाख योनियों मे से किसी मे जन्म लेता है।
मनुष्य
प्रश्न उठता है कि क्या मनुष्य चौरासी लाख योनि मे शामिल है या उनसे बाहर? जक मत यह है कि चौरासी से छुटकारा मिलने के बाद मनुष्य शरीर मिलता है।
"रामचरितमानस" मे कहा गया है कि-
आकर चारि लाख चोरासी। जोनि भ्रमित यह जिव अविनासी।
फिरत सदा माया कर प्रेरा कालक्रम सुभाव गुन घेरा।
कबहुँक करि करुना नर देही।देत ईस बिन हेतु सनेही।
इससे स्पष्ट होता है कि इन योनियों से छूटने के बाद मनुष्य देह प्राप्त होती है। यानि यह उनमे शामिल नहीं है।
मनुष्य योनि मे बुरे कर्म करने से फिर चोरासी लाख योनियों मे भ्रमण करना पड़ता है।
शास्त्रसार के अनुसार, चार प्रकार के हज़ारों शरीरों को धारण करके और छोड़कर बड़े भाग्य से मानव शरीर मिलता है। इसमे यदि ज्ञान मिल जाये तो मक्ष की प्राप्ति होती है।
इस ग्रंथ के अनुसार, बीस लाख स्थावर, नौ लाख जंगम, ग्यारह लाख कृमि, दस लाख पशु, तीस लाख पक्षी, और चार लाख वानर योनियां हैं।
मनुष्य सर्वश्रेष्ठ क्यों
सनातन धर्म मे मनुष्य योनि को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसका कारण यह है कि इसमे मानव को कर्म करके अपना प्रारब्ध बदलने की सुविधा है। उसमे विवेक है। शेष योनियों मे जीव सिर्फ पूर्व मे किये गये कर्मों के फल भोगता है।
तो मित्रो, इस वीडियो मे हमने जीवनचक्र और योनियों के विषय मे चर्चा की। इसका निष्कर्ष यही है कग मनुष्य शरीर बहुत अनमोल है। बुरे और पाप कर्म करके इसे बर्बाद नहीं करें।
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अगले वीडियो मे हम किसी नये विषय के साथ आपके साथ होंगे। धन्यवाद।