रावी नदी के किनारे पर एक समतल पहाड़ी पर बसा चंबा बेहद ही खूबसूरत पर्यटक स्थल है। डलहौजी से इसकी दूरी 56 किलोमीटर और समुद्र-तल से इसकी ऊंचाई 996 मीटर है।रावी नदी के किनारे बसा चंबा एक बेहद खूबसूरत पर्यटक स्थल है चंबा को यह सौभाग्य प्राप्त रहा है कि यहां एक से बढ़कर एक कलाप्रिय, धार्मिक व कृपालु राजाओं ने शासन किया था, तभी यहां की संस्कृति न केवल फली-फूली, अपितु चंबा की सीमाओं को पार करके संपूर्ण भारतवर्ष में फैली। चारों ओर से घनी बर्फ से ढकी पहाड़ियों पर स्थित चंबा में शिव-पार्वती के 6 मंदिर हैं। इन मंदिरों की बेजोड़ नक्काशी और कला के नमूने पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। चंपा के वृक्षों से घिरा चंबा 10वीं सदी के राजा साहिल की बेटी चंपावती के नाम पर बसा है। पहले इसका नाम 'चंपावती' ही था। यहां वर्ष-भर रौनक लगी रहती है। जगह-जगह मेले आयोजित किए जाते हैं। सबसे प्रसिद्ध यहां का 'भिजार' त्योहार मेला है। यह मेला हर साल सावन के तीसरे रविवार को आयोजित किया जाता है इसके अलावा अप्रैल माह में आयोजित होने वाला 'सूही मेला' भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। चंबा प्रकृति की तमाम अदाओं का साक्षी है और इसकी हर अदा पर्यटकों को अभिभूत कर देती है। यहां की घाटियों में जब धूप के रंग बिखरते हैं, तो इसका सौंदर्य देखते ही बनता है। वास्तुकला हो या भित्तिचित्र कला, मूर्तिकला हो या काष्ठकला, जितना प्रोत्साहन इन्हें चंबा में मिला है, उतना शायद ही देश के किसी अन्य हिस्से में मिला हो। भूरी सिंह संग्रहालय यह संग्रहालय भारत के 5 प्रमुख संग्रहालयों में एक है। यहां चंबा घाटी की ही कला देखने को मिलती है। इस संग्रहालय का निर्माण चंबा नरेश भूरीसिंह ने डच डॉक्टर बोगले की प्रेरणा से करवाया था इस संग्रहालय में 5 हजार से अधिक दुर्लभ कलाकृतियां संग्रहीत हैं। इन कलाकृतियों में भित्ति चित्र, मूर्तियां, पांडुलिपियां और धातुओं से निर्मित वस्तुओं के अलावा विश्व-प्रसिद्ध चंबा रूमाल भी हैं। चंबा स्मालों की मुख्य विशेषता यह है कि इन पर धर्म ग्रंथों के प्रश्नों का चित्रण बड़ी खूबसूरती से किया गया है। लक्ष्मीनारायण मंदिर यह प्राचीन मंदिर शिव और भगवान विष्णु की कलात्मक प्रतिमाओं और बेजोड़ नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है। सलूनी चंबा से 56 किलोमीटर दूर, समुद्र तल से 1829 मीटर ऊंचा यह पर्यटन स्थल अपने मनोरम दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है। भरमौर चंबा से 65 किलोमीटर दूर यह पर्यटन स्थल प्रसिद्ध मणिमहेश यात्रा का आरंभ है। यहां के चौरासिया मंदिर समूह विशेष रूप से दर्शनीय हैं। सहो साल नदी के तट पर स्थित यह स्थल चंद्रशेखर मंदिर के लिए विख्यात है। चंबा यहां से 20 किलोमीटर दूर है। सरोल चंबा से 11 किलोमीटर की दूरी पर एक घाटी में बसा सरोल एक सुंदर पर्यटन एवं पिकनिक स्थल है। यह रावी नदी के दाएं किनारे पर स्थित है। यहां पर्यटक, कृषि, फार्म और अन्य वन संबंधी जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं। चौगान चौगान अपने मेलों के लिए पर्यटकों की नजर में विशेष स्थान रखता है। यह एक आम व्यापारिक स्थल है। यहां होने वाली विशेष सांस्कृतिक गतिविधियां पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं। मणिमहेश भरमौर से 34 किलोमीटर दूर 4,170 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह जगह अपनी 5656 मीटर ऊंची मणिमहेश चोटी के लिए विख्यात है। इसके अलावा यहां प्रसिद्ध मणिमहेश झील भी दर्शनीय है, जहां प्रतिवर्ष अगस्त-सितम्बर माह के दौरान मणिमहेश यात्रा आयोजित की जाती है। पांगी घाटी 2438 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, चंबा से 137 किलोमीटर दूर यह लुभावनी घाटी अपने प्राकृतिक सौंदर्य, भोले-भाले लोगों व उनके विभिन्न लोकनृत्यों के लिए प्रसिद्ध है, पर्वतारोहियों और ट्रैकिंग करने वालों के लिए यह एक रोमांचकारी जगह है। छतराड़ी भरमौर से 40 किलोमीटर दूर छतराड़ी शक्ति देवी मंदिर के लिए विख्यात है, जो पुरातत्व में रुचि रखने वालों के लिए महत्वपूर्ण जगह है। अखंड चंडी महल और रंगमहल चंबा की कलात्मक धरोहरों में यहां के अखंड चंडी महल और रंगमहल को भी शामिल किया जा सकता है। रंगमहल में इस समय हिमाचल हस्तकला निगम का कार्यालय तो है ही, साथ ही रूमाल की कसीदाकारी और काष्ठ शिल्प के प्रशिक्षण केंद्र भी स्थापित हैं।
भारत के प्रमुख पर्यटन स्थल:-चंबा
रावी नदी के किनारे बसा चंबा एक बेहद खूबसूरत पर्यटक स्थल है चंबा को यह सौभाग्य प्राप्त रहा है कि यहां एक से बढ़कर एक कलाप्रिय, धार्मिक व कृपालु राजाओं ने शासन किया था, तभी यहां की संस्कृति न केवल फली-फूली, अपितु चंबा की सीमाओं को पार करके संपूर्ण भारतवर्ष में फैली।
चारों ओर से घनी बर्फ से ढकी पहाड़ियों पर स्थित चंबा में शिव-पार्वती के 6 मंदिर हैं। इन मंदिरों की बेजोड़ नक्काशी और कला के नमूने पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। चंपा के वृक्षों से घिरा चंबा 10वीं सदी के राजा साहिल की बेटी चंपावती के नाम पर बसा है। पहले इसका नाम 'चंपावती' ही था।
यहां वर्ष-भर रौनक लगी रहती है। जगह-जगह मेले आयोजित किए जाते हैं। सबसे प्रसिद्ध यहां का 'भिजार' त्योहार मेला है। यह मेला हर साल सावन के तीसरे रविवार को आयोजित किया जाता है इसके अलावा अप्रैल माह में आयोजित होने वाला 'सूही मेला' भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। चंबा प्रकृति की तमाम अदाओं का साक्षी है और इसकी हर अदा पर्यटकों को अभिभूत कर देती है। यहां की घाटियों में जब धूप के रंग बिखरते हैं, तो इसका सौंदर्य देखते ही बनता है। वास्तुकला हो या भित्तिचित्र कला, मूर्तिकला हो या काष्ठकला, जितना प्रोत्साहन इन्हें चंबा में मिला है, उतना शायद ही देश के किसी अन्य हिस्से में मिला हो।
भूरी सिंह संग्रहालय
यह संग्रहालय भारत के 5 प्रमुख संग्रहालयों में एक है। यहां चंबा घाटी की ही कला देखने को मिलती है। इस संग्रहालय का निर्माण चंबा नरेश भूरीसिंह ने डच डॉक्टर बोगले की प्रेरणा से करवाया था इस संग्रहालय में 5 हजार से अधिक दुर्लभ कलाकृतियां संग्रहीत हैं। इन कलाकृतियों में भित्ति चित्र, मूर्तियां, पांडुलिपियां और धातुओं से निर्मित वस्तुओं के अलावा विश्व-प्रसिद्ध चंबा रूमाल भी हैं। चंबा स्मालों की मुख्य विशेषता यह है कि इन पर धर्म ग्रंथों के प्रश्नों का चित्रण बड़ी खूबसूरती से किया गया है।
लक्ष्मीनारायण मंदिर
यह प्राचीन मंदिर शिव और भगवान विष्णु की कलात्मक प्रतिमाओं और बेजोड़ नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है।
सलूनी
चंबा से 56 किलोमीटर दूर, समुद्र तल से 1829 मीटर ऊंचा यह पर्यटन स्थल अपने मनोरम दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है।
भरमौर
चंबा से 65 किलोमीटर दूर यह पर्यटन स्थल प्रसिद्ध मणिमहेश यात्रा का आरंभ है। यहां के चौरासिया मंदिर समूह विशेष रूप से दर्शनीय हैं।
सहो
साल नदी के तट पर स्थित यह स्थल चंद्रशेखर मंदिर के लिए विख्यात है। चंबा यहां से 20 किलोमीटर दूर है।
सरोल
चंबा से 11 किलोमीटर की दूरी पर एक घाटी में बसा सरोल एक सुंदर पर्यटन एवं पिकनिक स्थल है। यह रावी नदी के दाएं किनारे पर स्थित है। यहां पर्यटक, कृषि, फार्म और अन्य वन संबंधी जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं।
चौगान
चौगान अपने मेलों के लिए पर्यटकों की नजर में विशेष स्थान रखता है। यह एक आम व्यापारिक स्थल है। यहां होने वाली विशेष सांस्कृतिक गतिविधियां पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं।
मणिमहेश
भरमौर से 34 किलोमीटर दूर 4,170 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह जगह अपनी 5656 मीटर ऊंची मणिमहेश चोटी के लिए विख्यात है। इसके अलावा यहां प्रसिद्ध मणिमहेश झील भी दर्शनीय है, जहां प्रतिवर्ष अगस्त-सितम्बर माह के दौरान मणिमहेश यात्रा आयोजित की जाती है।
पांगी घाटी
2438 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, चंबा से 137 किलोमीटर दूर यह लुभावनी घाटी अपने प्राकृतिक सौंदर्य, भोले-भाले लोगों व उनके विभिन्न लोकनृत्यों के लिए प्रसिद्ध है, पर्वतारोहियों और ट्रैकिंग करने वालों के लिए यह एक रोमांचकारी जगह है।
छतराड़ी
भरमौर से 40 किलोमीटर दूर छतराड़ी शक्ति देवी मंदिर के लिए विख्यात है, जो पुरातत्व में रुचि रखने वालों के लिए महत्वपूर्ण जगह है।
अखंड चंडी महल और रंगमहल
चंबा की कलात्मक धरोहरों में यहां के अखंड चंडी महल और रंगमहल को भी शामिल किया जा सकता है। रंगमहल में इस समय हिमाचल हस्तकला निगम का कार्यालय तो है ही, साथ ही रूमाल की कसीदाकारी और काष्ठ शिल्प के प्रशिक्षण केंद्र भी स्थापित हैं।