ब्रह्माँड के रहस्य- 59, यज्ञ विधि.. सोम- 3


स्टोरी हाइलाइट्स

ब्रह्माँड के रहस्य- 59 यज्ञ विधि सोम- 3...........................................secrets-of-brahmand-59-yajna-vidhi-mon-3

सोम और सोमरस प्राण हैं -                                              ब्रह्माँड के रहस्य - 59 यज्ञ विधि सोम - 3, रमेश तिवारी मित्रो, हमारे लेखन का मुख्य आधार पाठकों को सनातन विज्ञान के गौरव से अवगत कराना है। आंखों पर पडे़ अंध के पर्दों को हटाना। हम प्रमाणों सहित शुद्ध ज्ञान की अनुपम भेंट आपको देना चाहते हैं। सनातन धर्म अर्थात् शुद्ध विज्ञान। "जहां न कोई ढो़कला है न ढ़कोसला "। आज से हम, सोम और सोमरस की ऐसी अद्भुत जानकारियां साझा करने वाले हैं, जिसके बारे में आपने शायद सुना भी नहीं होगा। गहन ज्ञान को आत्मसात करना और स्वाध्याय तो हमारी सोच की परिधि में है ही नहीं। सोम की व्याख्या और महत्व दो प्रकार से समझें। एक तो वह सोम (आक्सीजन), जो "पवमान वायु" है। जो संपूर्ण ब्रह्माँड में व्याप्त है। यही सोम मनुष्य के शरीर में भरी हुई है। जो हमारा जीवन है। दूसरा वह सोम जो पर्वतों पर लता (वेलडी़) के रुप में पैदा होता था। और उस लता को सोमयाग में विभाग (काटकर) करके प्रयोग में लाया जाता था। इसी बेलडी़ को जो कि औषधियों के राजा चंद्रमा की कला (प्रभाव) से उत्पन्न होती थी, और औषधि रूप में ही पेय की भांति उपयोग में लाई जाती थी। हम एक बार फिर से स्पष्ट कर लें कि सोमरस मात्र शक्ति वर्धक, आयुवर्धक और औषधि ही था। मादक और तीखा भी था, फिर भी मदिरा नहीं था। बुद्धि को तीव्रतर करता था। मनुष्य को निरोगी बनाता था। आयु में वृद्धि भी करता था और मनुष्य को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता था। अमृत (होता नहीं है) तुल्य था। इस विषय में हमारे वेदों ने व्यापक मार्गदर्शन किया भी है। ऋग्वेद और सामवेद में हमारे ऋषियों ने बहुत कुछ लिख रखा है। हमने रखा शब्द का उपयोग जानबूझ कर ही किया है.! क्योंकि सिर्फ रखा ही तो है, सनातन धर्म का उद्घोष करने वाले कथित महानुभावों ने न तो इस विज्ञान को पढा़ है, और जब पढा़ ही नहीं है तो हम सबको बतायें क्या..? सोमयाग में सोम की बेलडी़ को जीव और गर्भ विज्ञान के हिसाब से ही विभाजित किया जाता था। माता के गर्भ में शरीर कैसे बनता है। सोम (आक्सीजन) के कौन कौन से स्वरूप हैं, जो कि गर्भाधान से लेकर, सूक्ष्म से सूक्ष्म विभिन्न अंगों का निर्माण करते हैं। और माता के पेट का आसरा लेकर पल रहे शिशु को कैसे स्वतंत्र करके गर्भ से बाहर निकालता है। गर्भाधान से लेकर पैदा होने की जटिल प्रक्रिया का नियंता यही सोम है। यह प्रकरण हमने इसलिए उद्धृत किया ताकि आप किसी भ्रम में न रहें। भ्रम यह कि जिस सोम को चंद्रमा कहते हैं, और जिससे हमारे प्राणों की रक्षा होती है, शरीर का निर्माण होता है, उसी चंद्रमा से निःस्रृत सोम के रस से हमारे प्राण और शरीर की गति कितनी सकारात्मक होती होगी। हमको मात्र गर्व (अहंकार) है कि हम महान ऋषियों की संतान हैं। वे ऋषि क्योंकर महान थे, उनके महान विज्ञान और कृतित्व से हमारा वास्ता ही नहीं है। सोम और सोमरस दोनों महान हैं। सोम की महानता और उसके महत्व का वर्णन ब्राह्मण ग्रंथों में भरा पडा़ है। बस पडा़ ही है। जब सोम वल्ली को यज्ञ स्थल तक लाया जाता था, उसका वर्णन भी हम करेंगे, तब आप "दांतो तले उंगलियां" दबाये बिना रह न रह सकेंगे। एक सम्राट की तरह अगवानी की जाती थी। सोम की। सोम को खरीद कर घर में लाना, और उसका मूल्य कौन-सी पांच वस्तुओं के रूप में चुकाना। घर की स्वामिनी को कितनी महत्व देना। उसकी प्रतिष्ठा बढा़ना। सोमक्रयणी, सोमपनहन, सोमपयर्याणहन और उष्णीष से अलंकृत किया जाता था, सोम को। जिस शकट में लाया जाता था सोम को उस शकट की टेकी कैसी होती थी। संपूर्ण सम्मान और विज्ञान था इन सबमें। हम आगे इन सब शब्दों की सरल और अर्थ सहित व्याख्या करेंगे। वेद विज्ञान को बिना वित्त साढ्य (कंजूसी ) के ह्रदय हेर कर साझा करेंगे। सोम और सोमरस की प्रत्येक बातों से आप सब मित्रों को अवगत करायेंगे। आज बस यहीं तक। तो मिलते हैं। तब तक विदा। धन्यवाद।