• India
  • Sun , Dec , 08 , 2024
  • Last Update 06:16:AM
  • 29℃ Bhopal, India

“अग्निपथ” से उपजे आन्दोलन देश के विकास में बाधक

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Tue , 08 Dec

सार

प्रतिदिन-राकेश दुबे- देश में जारी युवाओं के असंतोष के कई घातक परिणाम भी सामने आ सकते हैं। रोजगार के अवसरों में कमी व नौकरी की सुरक्षा को लेकर कमी के चलते उपजे हिंसक आंदोलन से देश में आर्थिक सुधारों के पटरी से उतरने का खतरा भी सामने दिख रहा है ।

janmat

विस्तार

प्रतिदिन-राकेश दुबे                                                                              

संभवत:आज भारत सरकार “अग्निपथ” योजना  का कोई नया स्वरूप घोषित करे| तीनों सेना के प्रमुख आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलेंगे| इस मुलाकात में तीनों सेनाध्यक्ष सेना में नई भर्ती योजना को लेकर उन्हें ब्योरा देंगे| १४  जून को इस“अग्निपथ”  की घोषणा के बाद से ही देशभर में इसे लेकर विरोध प्रदर्शन का दौर जारी है| कई राज्यों में हिंसक उपद्रव हो रहे हैं| आज भी कई ट्रेन रद्द हैं |अग्निपथ योजना की घोषणा के बाद से अब तक हुई आगजनी और तोड़फोड़ में देश की संपत्ति का काफी नुकसान हुआ है|

वैसे इस साल यह दूसरा अवसर है जब सरकारी भर्ती प्रक्रिया को लेकर उपजे आक्रोश के चलते हिंसक प्रदर्शन हुए हैं। इससे पहले जनवरी में रेलवे में भर्ती प्रक्रिया में विलंब को लेकर बिहार में ही हिंसक प्रदर्शन हुए थे। यह स्थिति युवाओं के सपने दरकने और इससे उपजे आक्रोश की बानगी दर्शाती है। परिस्थितियों के चलते देश में बेरोजगारी संकट गहरा रहा है, सरकार अब जो योजना लेकर आई है , उन्हें लेकर देश में कोई संतुष्टि के भाव नहीं दिख रहे हैं ।वैसे १४ जून से अब तक सरकार “अग्निवीरों” के पुनर्वास के लिए कई घोषणा कर चुकी है | युवाओं के इस गुस्से को शांत करने के लिये सरकार अग्निपथ योजना में जो कुछ रियायतों व सुविधाओं की घोषणा की उससे इसका अनुमान लगाना मुश्किल है कियुवाओं का आक्रोश किस हद तक थमा है।

रोज होती बैठकों केंद्र सरकार को भी इस बात का अहसास करा दिया है कि देश में बेरोजगारी का संकट गहरा है। इस संकट के मद्देनजर ही केंद्र ने अगले डेढ़ वर्षों में सरकार के विभिन्न विभागों में दस लाख भर्तियों की घोषणा की है। चर्चा यह भी हैं कि घोषणा आम चुनाव से पहले राजनीतिक बढ़त हासिल करने हेतु की गई है। बहरहाल, रोजगार संकट को गंभीरता से लेने की जरूरत है। केंद्र की तरह राज्यों में भी मिशन मोड में भर्ती योजनाएं चलाने की जरूरत है। खासकर आवश्यक सेवाओं मसलन चिकित्सा व पुलिस आदि विभागों में, जहां रिक्त पदों के चलते नागरिक सेवाएं बाधित हो रही हैं।

दरअसल, विडंबना ही है कि युवा आबादी के इस देश में रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं हैं। ऐसा भी नहीं है कि यह संकट अचानक पैदा हुआ है। वर्ष २०१७-१८ में राष्ट्रीय नमूना सर्वे कार्यालय ने रोजगार सर्वेक्षण में बताया था कि देश में बेरोजगारी पिछले ४५  साल के उच्च स्तर छह प्रतिशत से अधिक है, जिसको लेकर सरकार की तरफ से लीपापोती का प्रयास किया गया। एक अन्य अध्ययन के निष्कर्ष में अप्रैल, २०१९ में बताया गया था  कि नवंबर, २०१६ की नोटबंदी के चलते देश भर में पचास लाख लोगों ने काम के अवसर खो दिये।

वहीं कोविड महामारी रोकने को लगाये गए सख्त लॉकडाउन के चलते देश में बड़ी संख्या में नौकरियां खत्म हुईं। विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र में बड़ी संख्या में रोजगार के अवसरों का संकुचन हुआ। निस्संदेह, इस स्थिति को सामान्य होने में लंबा वक्त लग सकता है। मगर देश में जारी युवाओं के असंतोष के कई घातक परिणाम भी सामने आ सकते हैं। रोजगार के अवसरों में कमी व नौकरी की सुरक्षा को लेकर कमी के चलते उपजे हिंसक आंदोलन से देश में आर्थिक सुधारों के पटरी से उतरने का खतरा भी सामने दिख रहा है । जहाँ आज देश में सामाजिक असंतोष के चलते उपजे हालात से आकर्षक निवेश आने में बाधा उत्पन्न हो सकती है। वहीं दूसरी ओर लगातार जारी असंतोष से कानून व्यवस्था बाधित होने से सामाजिक अस्थिरता को बढ़ावा मिल सकता है। खासकर ऐसे वक्त में जब देश में सांप्रदायिक सद्भाव को चुनौती मिल रही है।