भ्रष्टाचार के मामलों में बड़े बड़े लोग अक्सर बच जाते हैं| निर्देश देने वाले पाक साफ निकल जाते हैं और निर्देशों को अंजाम देने वाले संकट झेलते हैं..!
जल संसाधन विभाग में बिना काम शुरू हुए ठेकेदारों को 877 करोड़ का पेमेंट करने के मामले में जल संसाधन विभाग के विभागाध्यक्ष सहित तीन अफसरों के खिलाफ केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी गयी है| जिन पर केस दर्ज होना बताया गया है उनमें इंजीनियर इन चीफ और चीफ इंजीनियर शामिल हैं| “ईएनसी” जल संसाधन विभाग का विभागाध्यक्ष होता है| विभाग का नियंत्रण शासन स्तर पर अपर मुख्य सचिव/ प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी और कैबिनेट मंत्री करते हैं| यह घोटाला जब मई 2019 में हुआ था तब एम गोपाल रेड्डी अपर मुख्य सचिव थे और हुकुम सिंह कराड़ा जल संसाधन विभाग के कैबिनेट मंत्री थे|
यह बात कितनी आश्चर्यजनक है कि बिना काम के ठेकेदारों को भुगतान करने के मामले में शासन स्तर पर किसी अफसर को जिम्मेदार नहीं माना गया है| सामान्य रूप से यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि बिना शासन स्तर के निर्देश के टेंडर की शर्तों में बदलाव कर ठेकेदारों को इतनी बड़ी राशि का नियम विरुद्ध भुगतान कर दिया जाए|
जल संसाधन विभाग के सूत्रों का कहना है कि टेंडर स्वीकृत होने के बाद निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए ठेकेदारों को एडवांस पेमेंट देने का अधिकार ईएनसी के पास होता है| इस मामले में विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव के निर्देश पर टेंडर की शर्तों को बदलने और पेमेंट करने की कार्यवाही की गई है| सूत्रों का यह भी कहना है कि निर्देशानुसार कार्यवाही के बाद फाइल अवलोकन के लिए एसीएस ले पास भेजी गई थी, फाइल का अवलोकन करने के बाद भी एसीएस द्वारा घोटाले को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाए जाने के लिए क्या उन पर जिम्मेदारी नहीं बनेगी? प्रकरण जांच में आ चुका है इसलिए निश्चित ही सच्चाई सामने आएगी और सभी दोषियों को दंडित किया जाएगा|
कांग्रेस सरकार के 15 महीने के कार्यकाल में जल संसाधन विभाग से जुड़े कई घोटाले प्रकाश में आए थे| एडवांस पेमेंट करने के अलावा छिंदवाड़ा इरिगेशन कॉन्प्लेक्स के लिए ठेके देने के मामले में भी भ्रष्टाचार उजागर हुआ था| जिस मामले में प्रकरण दर्ज किया गया है उसमें बैतूल, दमोह, सागर और सिंगरौली में बांधों और पाइप नहर के लिए ठेके मई 2019 में दिए गए थे| बांध बने नहीं, सामान खरीदा नहीं गया और ठेकेदारों ने विभाग में बिल देकर एडवांस पेमेंट प्राप्त कर लिया| नियमानुसार बांध बनने के बाद नहर बननी होती है, इसके लिए पाइप सीमेंट और अन्य सामान खरीदा जाता है| ठेकेदारों ने बांध का काम शुरू करने के पहले ही नहर प्रणाली के लिए सामान खरीदने के बिल देकर भुगतान प्राप्त कर मिलीभगत से घोटाला किया!
इस मामले में जितने भी ठेकेदार शामिल हैं वह सभी भी भ्रष्ट-आचरण के दोषी माने जाएंगे| अधिकारियों ने नियम विरुद्ध काम किया तो ठेकेदारों ने फर्जी बिल के आधार पर भुगतान प्राप्त किया| पूरे मामले में ठेकेदार भी बराबर के दोषी हैं| अंततः पैसे का लाभ उन्हें ही मिला है| यह मामले लगभग 3 साल पुराने हैं| 3 साल में अभी कई बांधों के काम शुरू नहीं हो सके हैं| जिन बांधों का काम शुरू हुआ है वहां तो एडवांस पेमेंट एडजस्ट हो सकता है, लेकिन जहां काम शुरू नहीं हुआ उनकी वसूली जरूर की जानी चाहिए, ताकि जनता का पैसा वापस सरकारी खजाने में आ सके|
जल संसाधन विभाग के सूत्रों का कहना है कि इस घोटाले में शामिल कंपनियां केवल यही एक काम कर रही हैं ऐसा नहीं है| विभाग में दूसरे ठेके भी उनके द्वारा ही किए जा रहे हैं| अधिकारी जांच में दोषी पाए जाएंगे उन्हें दंड मिलेगा, लेकिन जनता का पैसा जिनके पास गया है उनसे वसूली सबसे पहले करना जरूरी है|
इस पूरे घोटाले में जितने ठेकेदार शामिल हैं उन्हें शासन द्वारा ब्लैक लिस्ट करने पर भी विचार करना चाहिए| जिन ठेकेदारों की नीयत जनता का धन लूटने की है वे ईमानदारी से काम कैसे करेंगे? ऐसे ठेकेदारों को दूसरे काम तो कम से कम नहीं दिए जाने चाहिए थे, लेकिन यह जानकारी भी प्रकाश में आई है कि ई-टेंडर घोटाले में शामिल मेंटोना कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड को सिंगरौली में गौड़ बांध एवं नहर प्रणाली के लिए ठेका दिया गया था| इस कंपनी को भी एडवांस पेमेंट किया गया है| ई-टेंडर घोटाले की जांच अभी चल ही रही है, उसमें आरोपी कंपनी को फिर से ठेका देने और एडवांस पेमेंट करने में विभागाध्यक्ष स्तर के अधिकारियों की ही भूमिका होगी, ऐसा मानना सामान्य रूप से सही नहीं लगता|
15 महीने का जल संसाधन विभाग का कार्यकाल घोटालों का कार्यकाल माना जा सकता है| सरकार को इस दौरान दिए गए सभी ठेकों की जांच कराना चाहिए| घोटाले में शामिल कंपनियों ने राज्य में जो दूसरे कार्य अभी तक किए हैं उनकी भी समीक्षा सरकार को करना चाहिए| समीक्षा में इन ठेकेदारों के बड़े-बड़े कारनामे सामने आ सकते हैं| सरकार को इस बात की भी समीक्षा करना चाहिए, ठेकेदारों के साथ शासन के बड़े अफसरों से कैसे रिश्ते थे? जल संसाधन विभाग केवल एडवांस पेमेंट के घोटाले में ही शामिल नहीं है, बल्कि वहां घोटाले की नहर और पाइप कहां कहां डाले गए हैं उसकी सच्चाई सामने आने पर जनता का धन लूटने वाले कई चेहरे बेनकाब हो सकते हैं|