बाजार और आमलोगों का घर-संसार अचानक कुछ नये व राहतकारी दिनों की संभावनाओं की दस्तक देने लगा है मगर शंकाएं भी बरकरार हैं।
बाजार और आमलोगों का घर-संसार अचानक कुछ नये व राहतकारी दिनों की संभावनाओं की दस्तक देने लगा है मगर शंकाएं भी बरकरार हैं। वजह है पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बेतहाशा-बेलगाम वृध्दि के बाद अचानक केंद्र सरकार द्वारा इन पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी में क्रमश- 5 रुपये और 10 रुपये प्रति लीटर कटौती।
जाहिर है कि इससे लोगों को तत्काल कुछ राहत जरूर मिली लेकिन एक खास बात यह है कि केंद्र सरकार के इस कदम का वैसा उत्साहपूर्ण स्वागत नहीं हुआ, जैसी उम्मीद की जा रही थी। इसका कारण संभवत- यह मान जा सकता है कि आम लोगों के लिए इस फैसले को सरकार की संवेदनशीलता से जोड़कर देखना एकदम से संभव नहीं हो पा रहा है। क्योंकि पिछले काफी समय से पेट्रोल और डीजल कीमतों का लगातार बढता बोझ आम लोगों के लिए जीना मुश्किल किए हुए तो था ही, उनका बजट इस कदर बिगाड़चुका है कि इसे संभालने में समय लगेगा।
उधर सरकार की ओर से जाहिराना यह संकेत या मरहम नहीं दिखा कि वह आम आदमी की परेशानी को लेकर चिंतित है या इसे कम करने के उपायों पर विचार कर रही है। इसीलिये सरकार का उत्पाद शुल्क में कटौती का फैसला सीधे तौर पर धनतेरस के एक दिन पहले 29 विधानसभा सीटों और तीन लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनावों के नतीजों से जुड़ गया। इसमें कांग्रेस के लिए उत्साहवर्धक और भाजपा के लिये चिंताजनक संकेत उभरे थे। लिहाजा बहुत स्वाभाविक ही यह संदेश जाना ही था कि अब भाजपा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड समेत 5 राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में पड़ने वाले महंगाई के असर को लेकर चिंतित है और उसका फैसला इसी चुनावी चिंता से उपजा है।
मतलब यह भी माना गया कि इन राज्यों में चुनाव होते ही पेट्रोल और डीजल के भाव फिर ऊपर का रुख कर लेंगे। दूसरी बात यह कि पिछले कुछ समय में इनके दाम में जो असाधारण बढोतरी हुई उसके मुकाबले यह कटौती बहुत कम लग रही है। इसी वर्ष की शुरुआत की बात की जाये तो तब से अब तक पेट्रोल और डीजल के भाव करीब 28 रुपये और 26 रुपये प्रति लीटर बढ़ाए गए थे। लिहाजा पांच व दस रूपये की कटौती को राहत नहीं माना जा रहा। क्योंकि अब बहुत बड़ा वर्ग अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों का गणित समझने लगा है। आलम यह है कि शुल्क में कटौती के बाद भी अभी पेट्रोल पर 27.90 रुपये और डीजल पर 21.80 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी है, जो पिछली सरकारों के कार्यकाल के दौरान लगने वाली ड्यूटी के मुकाबले बहुत ज्यादा है।
हालांकि आज के हालात और चुनौतियों की तुलना पिछली सरकारों के कार्यकाल से नहीं की जा सकती। लेकिन पेट्रोल और डीजल के ऊंचे भाव न केवल शहरों और गांवों के आम वाहन मालिकों को प्रभावित करते हैं बल्कि फसलों की सिंचाई और माल ढुलाई का खर्च बढाकर आम तौर पर महंगाई का स्तर बढा देते हैं। इसीलिये सरकार को खाद्य तेलों की कीमतों में जबर्दस्त इजाफे की ओर भी देखना होगा और रसोई गैस के आसमान छू रहे भावों को भी थामना होगा। पेट्रोल और डीजल की कीमतों का जहां तक सवाल है तो इसमें कमी की गुजाइश है मगर इस सभी के साथ् सरकार को यह भी आश्वस्त करना होगा कि जो भी कटौती हुई है या होना संभव है वह चुनावी नतीजों से नहीं जुड़ेगी ।