मध्य प्रदेश में एक से एक बढ़कर राजनेता हुए हैं. उनमें से अनेक को मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश की सेवा का अवसर भी मिला. कुछ नेताओं ने प्रदेश में अपनी गहरी छाप छोड़ी. इनमें एक बहुत ही कुशल और दबंग मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा शामिल थे. आज उनका जन्मदिन है...
मध्य प्रदेश में एक से एक बढ़कर राजनेता हुए हैं. उनमें से अनेक को मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश की सेवा का अवसर भी मिला. कुछ नेताओं ने प्रदेश में अपनी गहरी छाप छोड़ी. इनमें एक बहुत ही कुशल और दबंग मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा शामिल थे. आज उनका जन्मदिन है.
सुंदरलाल पटवा में ऐसी अनेक खूबियां थीं, जिन्हें आज याद किया जाना चाहिए. मुझे उनके साथ काम करने का सौभाग्य मिला. मैंने उनके कार्य, कार्यशैली और व्यवहार को बहुत करीब से देखा. पटवा जी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी, कि शासन-प्रशासन को लेकर उनके पास बहुत स्पष्ट सोच थी. वह अक्सर कहते थे, कि “सरकार नहीं,उसका इक़बाल काम करता है. सरकार का इक़बाल हमेशा बुलंद होना चाहिए. उनका कहना था,कि मुख्यमंत्री या मंत्री या कलेक्टर-एसपी सहित बड़े अधिकारी हर समय, हर जगह उपस्थित नहीं रह सकते. वे हर काम ख़ुद नहीं कर सकते. इसलिए सरकार नहीं उसका इक़बाल काम करता है. पटवाजी कहते थे, कि ”पिलपिली सरकार” किसी का भला नहीं कर सकती.
दबंगता :
सुंदरलाल पटवा ऐसे राजनेता थे, जो ज़िन्दगी में कभी किसीसे नहीं डरे. राजनीति में उन्होंने बहुत लम्बी पारी खेली, लेकिन ऐसा कोई प्रसंग सामने नहीं आया, कि वह किसी से डरे या दबे हों. नेता प्रतिपक्ष के रूप में वह पूरी ताक़त से जनहित के मुद्दे उठाते थे. किसी पद पर नहीं रहते हुए भी विपक्षी पार्टी में होने के नाते धरना-प्रदर्शन करना हो या कोई सभा करनी हो, लाग-लपेट की बातें नहीं करते थे. सीधी और खरी बात करते थे. मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी निर्भीकता को सभी ने देखा है. उन्होंने इंदौर में जिस निडरता के साथ आतंक के साम्राज्य को ख़त्म किया, वह एक मिसाल है. भोपाल के पास बैरसिया रोड पर हिनौतिया जागीर गांव में एक बहुत बड़े बाहुबली की सल्तनत को उन्होंने नेस्तोबाबूत कर दिया. इसके लिए वह ख़ुद मौके पर गये.
सिर्फ दण्ड से शासन नहीं चल सकता :
पटवाजी ने मुख्यमंत्री रहते हुए, यह बात बार-बार कही और उस पर अमल भी किया, कि सिर्फ दण्ड के बल पर शासन-प्रशासन नहीं चल सकता. वह ऐसा मानते थे, कि जब तक शासकीय सेवा से जुड़े अधिकारियों-कर्मचारियों में ख़ुद आत्मानुशासन, आत्मनिष्ठा और जन-निष्ठा का उदय नहीं होता, तब तक को भी क़ानून या सख्ती वांछित रूप से कारगर नहीं हो सकती. लेकिन ऐसा भी नहीं था, कि वह आदतन या बार-बार ग़लती करने वाले को दण्ड नहीं देते थे. जहाँ आवश्यक होता था, वहाँ दंडनीति का सहारा भी लेते थे.
हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं :
पटवाजी अपने काम में किसीकी भी दखलंदाज़ी पसंद नहीं करते थे. उन्हें ख़ुद पर बहुत भरोसा था और वह जानते थे, कि उन्हें कब क्या करना है. दखलंदाजी करने वाला उनका कितना ही करीबी हो, वह उसे झिड़क देते थे. एक बार मैं उनके चेंबर में किसी काम से गया था. इस बीच उनके निर्वाचन क्षेत्र के उनके कुछ कार्यकर्ता आ गये. उनसे उन्होंने बहुत अच्छे से बात की और पूरा सम्मान दिया. लेकिन जब उन्होंने कतिपय कर्मचारियों का तबादला करने की बात की, तो पटवाजी ने उन्हें बुरी तरह झिड़कते उए कहा, कि ” आप अपना काम किजीये और मुझे अपना काम करने दीजिये. तबादला करवाना आपका काम नहीं है”. उनके शासनकाल में प्रशासनिक मुख्यालय में अनावश्यक भीडभाड़ नहीं देखी जाती थी. वह प्रशासन में शुचिता पर बहुत विश्वास करते थे.
राजनैतिक कौशल :
राजनीति में वह बहुत व्यावहारिक थे. राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता तो हर नेता के साथ होती है. उन्हीं की पार्टी में उनके अनेक बड़े नेता उनके विरोधी थे, जिनसे वह अपनी तरह से निपटते थे. इसके बावजूद वह व्यक्तिगत राग-द्वेष से दूर रहते थे. वह कहते थे, कि विरोध तो लोकतंत्र की आत्मा है. उस समय स्वर्गीय श्यामाचरण शुक्ल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे, जिन्हें पटवाजी पूरा सम्मान देते थे. सार्वजनिक मंचों पर एक साथ होने पर तो वह उनकी प्रतिष्ठा का विशेष ध्यान रखते थे. कांग्रेस के दिग्गज नेता स्वर्गीय अर्जुन सिंह से भी उनके सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध रहे.
वैचारिक प्रतिबद्धता :
पटवाजी उन निष्ठावान नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने किसी भी तरह के लाभ या लोभ के कारण अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता से समझौता नहीं किया. कभी अपने दल से अलग नहीं हुए और न अपने दल को नुकसान पहुँचाने वाला कोई काम किया. उनका व्यक्तित्व और निष्ठा इतनी असंदिग्ध थी, कि स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी, कुशाभाऊ ठाकरे और अब करीब 95 वर्ष के हो चुके लालकृष्ण आडवाणी तक उनके साथ बहुत सम्मान से पेश आते थे. इन लोगों से वह लगभग बराबरी से बात करते थे.
प्रशासन में नये प्रयोग :
पटवाजी ने पूरे प्रदेश की ख़ाक छानी थी. उन्हें पता था, कि निचले स्तर पर गांवों में लोगों को सरकारी कामकाज में क्या दिक्कतें आती हैं. उन्होंने इनके व्यवहारिक समाधान के लिए “ग्राम सचिवालय” की स्थापना का बड़ा सुंदर प्रयोग किया था. लेकिन उनके मुख्यमंत्री नहीं रहने पर कालांतर में यह व्यवस्था भंग हो गयी.
सहयोगियों को काम करने की आजादी :
स्वर्गीय मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर पटवाजी के शासनकाल में नगरीय प्रशासन मंत्री थे. अतिक्रमण हटाने की मुहिम में पटवाजी ने उन्हें पूरी स्वतंत्रता से काम करने की छूट दी. और भी सभी मंत्रियों के कामकाज में वह अनावश्यक दखल नहीं देते थे. सिर्फ नीतिगत मामले में ही वह ऐसा करते थे. इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा, कि प्रदेश के विकास और जन-कल्याण के लिए बहुत स्पष्ट सोच और उसे लागू करने का दृढ़ संकल्प रखने वाले पटवाजी को बहुत अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहने का मौक़ा नहीं मिला. उनकी सरकार को राजनैतिक कारणों से दो साल में ही भंग कर दिया गया. यदि उन्हें पूरे पांच साल काम करने का मौक़ा मिलता, तो निश्चय ही वह मध्यप्रदेश के लिए बहुत अच्छा होता. स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा को उनके जन्मदिन पर कोटिशः नमन.