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पारिवारिक पॉलीटिकल पार्टी से जम्मू कश्मीर को हुआ सर्वाधिक नुकसान..सरयूसुत मिश्रा 

सार

पारिवारिक पॉलीटिकल पार्टी “पीपीपी” की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है, अब्दुल्ला परिवार और मुफ्ती परिवार घूम फिर कर जम्मू कश्मीर की सत्ता पर काबिज रहे, क्षेत्रवाद और संप्रदायवाद की पारिवारिक पॉलीटिकल पार्टी की नीतियों के कारण, जम्मू कश्मीर का भावनात्मक एकीकरण भारत के साथ इतने लंबे समय तक होने में बाधा बनी रही..

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विस्तार

पारिवारिक पॉलीटिकल पार्टी “पीपीपी” की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है, भारत में सबसे पहले जम्मू कश्मीर में पारिवारिक पॉलीटिकल पार्टी ने सरकार चलाई, आजादी के बाद से ही अब्दुल्ला परिवार और मुफ्ती परिवार घूम फिर कर जम्मू कश्मीर की सत्ता पर काबिज रहे, क्षेत्रवाद और संप्रदायवाद की पारिवारिक पॉलीटिकल पार्टी की नीतियों के कारण, जम्मू कश्मीर का भावनात्मक एकीकरण भारत के साथ इतने लंबे समय तक होने में बाधा बनी रही, अब धारा 370 हटाने और राष्ट्रपति शासन लागू होने के फलस्वरूप भारत के अभिन्न अंग जम्मू कश्मीर का भावनात्मक एकीकरण संभव हो सका है | पारिवारिक पॉलिटिकल पार्टी हमेशा नुकसान ही पहुंचाती है, ऐसा कहना सही नहीं होगा|

देश के कई राज्यों में पीपीपी कई बार सत्ता में रह चुकी हैं, पंजाब में शिरोमणि अकाली दल पारिवारिक पार्टी है| उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी भी पारिवारिक पार्टी मानी जाती है| इस पार्टी ने भी उत्तर प्रदेश में कई बार सरकार चलाई है, यह बात जरूर है कि पीपीपी क्षेत्रवाद और जाति की राजनीति को प्राथमिकता देती हैं, इस कारण राष्ट्रीय भावनात्मक एकीकरण की दिशा में कुछ ना कुछ विपरीत प्रभाव अवश्य पड़ता है|

महाराष्ट्र में भी पारिवारिक पॉलीटिकल पार्टी लंबे समय तक सत्ता की हिस्सेदारी में है, शिवसेना भी पीपीपी  है और कई पार्टियों के साथ मिलकर आज शिवसेना की सरकार वहां काम कर रही है, बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भी पारिवारिक पार्टी ही मानी जाती है| ऐसे ही बिहार में लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल पारिवारिक पार्टी के रूप में सक्रिय है| दक्षिण भारत में पारिवारिक पॉलीटिकल पार्टी काफी समय से सक्रिय और प्रभावी रही हैं|

चाहे तमिलनाडु में डीएमके हो या एआईएडीएमके दोनों की बुनियाद परिवार पर ही आधारित है| ये जरूर है कि जयललिता के निधन के बाद अब परिवार के बाहर के हाथों में पार्टी की कमान पहुंची है| जगन मोहन रेड्डी की पार्टी भी आंध्र प्रदेश में पारिवारिक पार्टी ही मानी जाएगी| इसी प्रकार चंद्रबाबू नायडू तथा तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव भी पारिवारिक पार्टी ही चला रहे हैं| उड़ीसा मे पटनायक परिवार की पार्टी लंबे समय से सत्ता पर काबिज है|  कर्नाटक में एच डी देवगौड़ा परिवार भी पारिवारिक पार्टी चलाते हैं| राजनीति की मजबूरियां कैसे किसी को लाभ पहुंचाती हैं? उसका यह सबसे बड़ा उदाहरण है कि एच डी देवगौड़ा भारत के प्रधानमंत्री बने|  महाराष्ट्र में एनसीपी शरद पवार की पारिवारिक पार्टी है| 

जहां तक कांग्रेस पार्टी का सवाल है, यह पार्टी आजादी के समय भारत का प्रतीक मानी जाती थी, यह संयोग है कि पार्टी नें तीन प्रधानमंत्री देश को दिए जो एक ही परिवार से संबंधित हैं| इसी प्रकार आधुनिक समय में राजीव गांधी के बाद से कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व गांधी परिवार के हाथों में ही बना हुआ है, भले ही आजादी की लड़ाई के समय पार्टी ने देश को एकजुट करने का काम किया है, लेकिन आज तो पार्टी परिवारवाद का शिकार बनी हुई है| पार्टी अध्यक्ष के लिए या तो सोनिया गांधी या राहुल गांधी का ही नाम उभरकर आता है|  गांधी परिवार के ही किसी व्यक्ति को अध्यक्ष का पद अभी तक जाता रहा है|

पारिवारिक पॉलीटिकल पार्टीज के साथ ही यह भी देखने की जरूरत है कि राष्ट्रीय दलों की क्या कमजोरियां रहीं जिसके कारण ऐसी पार्टियां पनपी और विकसित हुई ? राष्ट्रीय पार्टियों में क्या कुछ राजनीतिक परिवारों का दबदबा भी इसके लिए जिम्मेदार नहीं है ? हर राज्य में “स्थापित” राजनीतिक परिवार हैं, हर परिस्थिति में राजनीति पर उनका नियंत्रण कायम रहता है| मध्यप्रदेश में देखा जाए तो यहां भी कांग्रेस में 4 राजनीतिक परिवार दशकों से राजनीति को नियंत्रित करते रहे हैं| 

इनमें से सबसे पहला परिवार रविशंकर शुक्ल परिवार तो अब लगभग राजनीति से गायब सा हो गया है| यद्यपि छत्तीसगढ़ बनने के बाद यह परिवार छत्तीसगढ़ चला गया था, लेकिन वहां भी राजनीति में इस परिवार का कोई खास दखल नहीं है, दूसरा राजनीतिक परिवार अर्जुन सिंह का परिवार रहा है, इस परिवार की विरासत अजय सिंह संभाल रहे हैं| दिग्विजय सिंह परिवार भी मध्य प्रदेश का प्रमुख राजनीतिक परिवार है, इस परिवार की विरासत अभी जयवर्धन सिंह के पास है|

मध्य प्रदेश का सबसे ताकतवर राजनीतिक परिवार सिंधिया परिवार माना जाता है| राजमाता सिंधिया से उनकी राजनीति भाजपा और कांग्रेस दोनों में समान रूप से प्रभावी भूमिका में  रही है| राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया तो मध्यप्रदेश में यशोधरा राजे सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा के बड़े नेताओं में शामिल है|

पारिवारिक पॉलीटिकल पार्टी की राजनीति जाति और क्षेत्रवाद पर ज्यादा होती है| राष्ट्रीय दल भी समय-समय पर राजनीतिक मजबूरी के कारण ऐसे दलों को संरक्षण और संवर्धन करने की भूमिका निभाते हैं| भारतीय जनता पार्टी ने भी अपनी राजनीतिक यात्रा में समय-समय पर पंजाब की परिवारिक पॉलीटिकल पार्टी “शिरोमणि अकाली दल” यूपी के “अपना दल” और दूसरे छोटे दल, महाराष्ट्र में शिवसेना और जम्मूकश्मीर में पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई और चलाई है|

अगर राष्ट्रीय दृष्टि से देखा जाए तो कम्युनिस्ट पार्टी, भाजपा और कांग्रेस राष्ट्रीय दल माने जाएंगे| यह सभी दल किसी ना किसी राज्य में पारिवारिक पॉलीटिकल पार्टी से राजनीतिक तालमेल बनाए हुए हैं| आज देश में राष्ट्रीय एकीकरण की जरूरत है| भावनात्मक रूप से देश राष्ट्रीय मुद्दों पर एक विचार में सोचे और काम करे यह बहुत जरूरी है| निचले स्तर पर पारिवारिक पॉलीटिकल पार्टी भले ही अपना प्रभाव रखती हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इनकी भूमिका राष्ट्रहित में सकारात्मक होनी जरूरी है| कोई भी पॉलीटिकल पार्टी चाहे वो राष्ट्रिय हो और चाहे पीपीपी उसे जनता की सेवा का प्रयास तो करना ही पड़ेगा| बिना इसके उसे राजनीतिक सफलता मिलना संभव ही नहीं है|