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जानिए मनुआ भांड की टेकरी के राज.. दिनेश मालवीय 

सार

भोपाल में एयरपोर्ट जाए हुए दायीं तरफ एक बहुत ऊंची टेकरी दिखाई देती है, भोपाली इसे “मनुआ भांड की टेकरी कहते आ रहे हैं, टेकरी से भोपाल को देखना बहुत रोमांचकारी है....

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विस्तार

भोपाल में एयरपोर्ट जाए हुए दायीं तरफ एक बहुत ऊंची टेकरी दिखाई देती है. भोपाली इसे बहुत पहले से ही “मनुआ भांड की टेकरी कहते आ रहे हैं. हालांकि इसका नाम बाद में “महावीर गिरि” भी किया गया,लेकिन पुराने भोपाली इस “मनुआ भांड या भान की टेकरी” ही कहते हैं. अब तो इस टेकरी पर जाने के लिए रोपवे बन गया है. वहां पर्यटन की सुविधाएँ भी उपलब्ध हो गयी हैं. टेकरी से भोपाल को देखना बहुत रोमांचकारी है. आप जब टेकरी पर खड़े होते हैं और सिर ऊपर से हवाईजहाज़ बहुत नज़दीक होकर गुजरता है, तो मन में बहुत रोमांच हो आता है.
 
इस टेकरी के बारे  में वैसे अनेक तरह की किंवदन्तियाँ हैं. कोई कहता है, टेकरी से किसीके रोने की आवाज़ आती है, तो कोई कहता है, कि यहाँ कुछ आत्माएँ रहती हैं. सच जो भी हो, लेकिन टेकरी है बहुत खूबसूरत.  लेकिन एक बहुत दिलचस्प किस्सा भी जुड़ा हुआ है, जो एक बुजुर्ग ने बताया था. भोपाल में एक बहुत मशहूर बहरूपिया रहता था, जिसका नाम मनुआ था. वह भांडगिरी करता था,लिहाजा लोग उसे मनुआ भांड कहने लगे. पुराने समय में टीवी, रेडियो जैसे मनोरंजन के साधन तो थे नहीं. यह भांड लोगों का मनोरंजन करता था.

वह अक्सर भेस बदल-बदल कर बेग़म के दरबार में सबको हँसायाकरता था. बेग़म के साथ-साथ दरबारी लोग भी इसके मज़े लेते थे. उसे इनाम-इकराम भी मिल जाया करते थे. इस तरह उसका गुजर-बसर हो जाता था. एक ही तरह  की चीजें देखते-देखते हर कोई बोर हो ही जाता है. धीरे-धीरे बेग़म भी बोर होने लगीं. इनाम भी कम मिलने लगे. उसकी तो रोज़ी-रोटी पर बन आई. बेचारा क्या करता? वह कुछ और काम जानता ही नहीं नईं था.

एक दिन बेग़म ने कहा, मनुआ, तुम्हारे करतबों में अब मज़ा नहीं आता. कुछ नया करके दिखाओ. बेचारा मनुआ घबरा गया. अब घर कैसे चलेगा ? वह पढ़ा-लिखा तो था नहीं. बस यही हुनर जानता था. किस्सा बताने वाले बुजुर्ग ने कहा, कि मनुआ दूसरे दिन एक चादर ओढ़ कर दरबार में पहुँच गया. बेग़म और दरबारियों को कुछ समझ में नहीं आया, कि आखिर यह कौन सा करतब है. उसने बेग़म के सामने ही चादर हटा दी. वह निर्वस्त्र हो गया. दरबार में सनाका खिंच गया. लोगों को लगा,कि अब उसकी जान चली जायेगी. सब उसकी जान की खैर मनाने लगे. बेग़म गुस्से में लाल हो के बोलीं, कि यह क्या बदतमीजी है ?

मनुआ बहुत अदब के साथ सिर झुकाकर बोला, कि मैं नागा साधु का भेस बना कर आया हूँ. उसके भोलेपन पर बेगम  गुस्सा तो चला गया, लेकिन वह पशोपेस में पड़ गयीं, कि अब क्या किया जाए? उसे इनाम दिया जाए कि सजा ? बहरहाल, बेग़म ने उसे इनाम तो दिया लेकिन के साथ यह  सज़ा दी, कि वह शहर के बाहर ऊँची टेकरी पर जाकर रहे. टेकरी से से नीचे कभी नहीं आये. अपना मनहूस चेहरा अब कभी नहीं दिखाये. मनुआ भांड इसी टेकरी पर रहने लगा. तब से ही उसे लोग मनुआ भांड की टेकरी कहने लगे.