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मध्य प्रदेश को आत्म अवलोकन की ज़रूरत - सरयूसुत मिश्रा

सार

मध्यप्रदेश ने इन 65 वर्षों में क्या पाया ? क्यों मध्य प्रदेश 65 साल बाद भी गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण और अन्य बुनियादी समस्याओं से जूझ रहा है? 65 साल में किस सरकार में कितने बेहतर काम हुए? सियासत से लेकर प्रशासन तक कैसा रहा मध्य प्रदेश का यह सफर? मध्य प्रदेश के विकास का पुराण खोल रहे हैं.. सरयूसुत मिश्रा

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विस्तार

हमारा मध्यप्रदेश 65 साल का हो गया है। किसी भी व्यक्ति, संस्था, संगठन या सरकार के लिए यह अवधि सभी उपलब्धियों के लिए पर्याप्त मानी जाती है। व्यक्ति के लिए यह रिटायरमेंट की उम्र मानी गयी है। दीर्घ अनुभव और परिपक्वता की यह उम्र, राज्य की दृष्टि से विकास और उपलब्धियों के चरमोत्कर्ष का समय होता है। इस नजरिए  से 65 साल के मध्य-प्रदेश के लिए यह स्थापना दिवस आत्म अवलोकन का दिन है | मध्य प्रदेश भारत की बहुलता और विविधता का केंद्र है। देश के अन्य किस राज्य में सभी धर्म, जाति, भाषा और समुदाय के लोग रहते हैं ? यहाँ भाषा का कोई विवाद नहीं है। जहां मराठी, गुजराती, तमिल,पंजाबी जैसे भाषाई राज्य हैं, वहीं मध्य प्रदेश की भाषागत कोई पहचान नहीं है। इसके बावजूद यहाँ सभी प्रदेशों के रहने वालों के लिए उनके सामुदायिक भवन बनाने में सरकार ने मदद करके मिसाल पेश की है |

 

राजनीतिक दृष्टि से मध्य प्रदेश दो-दलीय व्यवस्था वाला राज्य है। केवल 1967 में संविद सरकार के समय और मार्च 2020 में बड़े पैमाने पर दल - बदल के कारण राजनीतिक परिस्थितियां आमूलचूल बदलीं। यह संयोग रहा कि दोनों दल - बदल का नेतृत्व सिंधिया परिवार नें किया। मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी नें लगभग 40 साल तक सरकार का नेतृत्व किया। राज्य के गठन के बाद राज्य की राजनीति और शासन पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा है | जनता पार्टी सरकार के समय के बाद भाजपा की सरकार बनी | इसके बाद 2003 में भाजपा सत्ता पर काबिज हुई और उसके बाद 15 वर्षों से लगातार भाजपा राज्य की सरकार का नेतृत्व कर रही है | मध्य प्रदेश की राजनीतिक स्थितियों का अवलोकन करें, तो साफ दिखता है कि राजनीति के नए दौर में भाजपा प्रभावशाली हुई है | प्रशासनिक दृष्टि से मध्यप्रदेश नें काफी प्रगति की है। 65 साल में प्रशासनिक मुखिया मुख्य सचिव के पद ने भी काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं।

 

 

एक मुख्य सचिव को पद से हटाया गया, एक मुख्य सचिव मुख्यमंत्री के चहेते अधिकारी को मुख्य सचिव का पद देने के लिए स्वयं हट गए। विगत 65 साल में मध्य प्रदेश को एक महिला मुख्य सचिव मिली। वर्ष 2019 में एक ऐसे अधिकारी को मुख्य सचिव बनाया गया, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने न्यायालय से केस वापस ले कर उन्हें मुख्य सचिव का पद दिया| एक मुख्य सचिव केवल 9 दिन तक प्रशासन के इस सर्वोच्च पद पर रह सके। वर्तमान मुख्य सचिव नई सरकार गठित होने के कारण ही इस पद पर आ सके। यदि सरकार नहीं बदलती, तो प्रदेश के ये योग्य अधिकारी मुख्य सचिव के पद पर शायद नहीं होते, क्योंकि पिछली सरकार में उन्हें लूप लाइन में ही डाल रखा था |

 

प्रशासन के क्षेत्र में मूल्यों में गिरावट को प्रदेश ने देखा है। प्रशासन की जो सेवा गरीबों के लिए वरदान होती थी, वह आज आत्ममुग्धता के दौर से गुजर रही है | विकास के नाम पर मुख्यमंत्री बदलने के साथ योजनाएं बनायी और भुलाई जाने लगीं। विकास की दृष्टि से आत्म अवलोकन किया जाए, तो पाएंगे कि मध्य प्रदेश काफी आगे बढ़ा है। राज्य के गठन के बाद जहां अधोसंरचना के विकास को प्राथमिकता दी गई, वहीं अर्जुन सिंह सरकार के बाद लोगों को सीधा लाभ पहुंचाकर राजनीतिक सफलता का सूत्रपात हुआ। 

 

 

झुग्गी झोपड़ी के पट्टे, नि:शुल्क बिजली, रिक्शा चालकों को मालिकाना हक जैसे काम किए गए, जिससे भले ही राजनेताओं को तात्कालिक लाभ हुआ हो,लेकिन राज्य में विकास को इससे कोई गति नहीं मिली | सुंदरलाल पटवा की सरकार ने वर्ष 1990 में किसानों को कर्ज माफी का वायदा किया और उसके बाद से ही किसानों को बिजली और कर्ज माफी राज्य के विकास की गति में बाधक बनी और बनती रहेगी|दिग्विजय सरकार ने सिंचाई पंप पर नि:शुल्क बिजली देने का काम किया। इस समय तक आते-आते विद्युत मंडल की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी।

 

 

दिग्विजय सरकार ने दलित एजेंडा को राजनीतिक लाभ का आधार बनाया। वर्ष 2003 के बाद राज्य में भाजपा काबिज है। पहली महिला मुख्यमंत्री उमा भारती  ने “पंचज” अभियान शुरू किया। गाय को रोटी खिलाना भारती ने नियम बनाया| कई बार प्रशासन को उनके रूट पर इसके लिए गायों को रोकना पड़ा। उनके बाद बाबूलाल गौर ने “गोकुल ग्राम अभियान” की शुरुआत की। “पंचज” अभियान गौर की सरकार भूल गई | शिवराज सिंह चौहान के शासन में प्रदेश ने विकास सही दिशा में गति पकड़ी है, नए नए नाम से अभियान चलाना इस सरकार की बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है।

 

 

जनकल्याण से “सुराज अभियान”, “सुशासन अभियान”, “स्वर्णिम मध्यप्रदेश अभियान”, “चरण पादुका अभियान”, “प्रणाम मध्य प्रदेश अभियान” और अब “आत्मनिर्भर मध्य प्रदेश अभियान”। पंद्रह साल की सरकार के सभी अभियान लिखे जाएं तो लंबी लिस्ट होगी | शिवराज सरकार ने मध्य प्रदेश का आत्म गौरव जगाने के लिए बहुत सारे काम किये।मध्य प्रदेश गान बना, शौर्य  स्मारक बना, देश की सीमाओं पर युवाओं को भेजा गया, राम वन गमन पथ के विकास की योजना बनी।गौ संरक्षण और संवर्धन को नई दिशा मिली। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी बेहतर काम हुए हैं।

 

 

बालिकाओं और महिलाओं के बेहतर जीवनयापन के लिए लाडली लक्ष्मी जैसी सराहनीय योजनायें बनायी गयीं। परन्तु मध्य प्रदेश की स्थिति अभी भी बुनियादी मामलों में पिछड़ी हुयी है। आज भी मध्य-प्रदेश पर कुपोषण  का दाग है। मातृ और शिशु मृत्यु दर में मध्य प्रदेश की स्थिति चिंताजनक है। दिग्विजय सरकार में बिजली,पानी,सड़क की जो स्थिति थी उसमें सुधार हुआ है। सही दिशा में काम हुए हैं। सड़कों की स्थिति सुधरी है। अधोसंरचना के क्षेत्र में अभी बहुत काम होना है। स्कूलों, न्यायालयों में शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं अभी नहीं हैं।

खेती-किसानी में मध्य प्रदेश काफी आगे बढ़ा है। गेहूँ उत्पादन में मध्य प्रदेश ने पंजाब को भी पीछे छोड़ दिया है| सिंचाई सुविधाओं का भी विकास हुआ है | इन प्रयासों के बावजूद अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के जो मामले उजागर हुए, उनसे मध्य प्रदेश का नाम खराब हुआ है। व्यापम और ई- टेंडर जैसे मामलों से प्रदेश की छवि खराब हुई है। राजनीति के आधुनिक दौर में सरकारों की आर्थिक स्थिति निरंतर खराब  हुई है। सरकारी व्यवस्था क़र्ज़ आधारित हो गई है। अधोसंरचना विकास से ज्यादा लोगों के खातों में विभिन्न योजनाओं के पैसे डाल कर लाभान्वित करना प्राथमिकता बन गई है।रियायती दर पर किसानों को  बिजली देने के लिए हर साल हजारों करोड़ रूपये की सब्सिडी विकास को प्रभावित कर रही है |

स्थापना दिवस “आत्मनिर्भरता दिवस” के रूप में मनाया जा रहा है।इसलिए यह समझना जरूरी है कि राज्य के लिए आत्मनिर्भरता का क्या मतलब है ? आत्मनिर्भरता की नृत्य नाटिका से राज्य आत्मनिर्भर कैसे बनेगा ? शायद आत्मनिर्भरता की बात तभी सार्थक होगी, जब अधिकाधिक लोगों द्वारा उत्पादन की प्रक्रिया में भाग लिया जाएगा | राज्य को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाया जाएगा। राज्य का अधिकांश राजस्व उत्पादन क्षेत्र से प्राप्त होगा। आबकारी और पेट्रोलियम पदार्थों पर  भारी टैक्स राज्य के राजस्व का मुख्य आधार नहीं होगा |

कोरोना महामारी ने 70 साल की देश के विकास के प्रयासों की सच्चाई को उजागर कर दिया है।लाखों लोग जान बचाने के लिए शहरों से भागकर गांव पहुंचे थे। आत्म सम्मोहित सरकारी योजनाएं प्रत्येक नागरिक को आत्मनिर्भरता की दिशा में ले जाएंगी, इसमें संशय है| व्यवस्था को देखना होगा कि अमीर और गरीब के बीच खाई क्यों बढ़ रही है ? उत्पादन की प्रक्रिया में कुछ लोग ही क्यों शामिल हैं ? बड़ी संख्या में लोग सरकारी मदद पर जीवन गुजार रहे हैं।आत्मनिर्भर प्रदेश तभी होगा जब सभी लोग उत्पादन प्रक्रिया में शामिल होंगे। लोग अपने जीवन यापन को कर्म-आधारित बनाएंगे और सरकारें अपनी नीतियों और कार्यक्रमों से ऐसी परिस्थितियों का प्रोत्साहन करेंगी।