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नई व चकाचक सड़कों का सन्देश

आशीष दुबे आशीष दुबे
Updated Thu , 09 Sep

सार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस भावना को अभिव्यिक्ति दी कि जिन किसानों की भूमि इसमें लगी है, जिन मजदूरों और इंजीनियरों के अमूल्य श्रम से यह मार्ग साकार हुआ है, वे सभी अभिनंदन के पात्र हैं।

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विस्तार

सड़कें जनजीवन को आपस में जोड़ने के लिये जितनी महत्वपूर्ण है, उतनी ही आर्थिक विकास में मददगार हैं। सड़कें अच्छी हों तो बहुत से काम स आसान हो जाते हैं। इससे कई राजनीतिक निशाने भी सध जाते हैं। इस वक्त उत्तरप्रदेश की सड़कें चर्चा में हैं। खासतौर पर उप्र के पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का निर्माण देश में सड़क क्रांति के लिहाज से एक अहम पड़ाव है। वायु सेना के सी-130जे सुपर हरक्यूलिस विमान का इस पर उतरना इसकी तस्दीक करता है। ऐसे में, यह स्वाभाविक ही था कि लगभग 340 किलोमीटर लंबी इस सड़क के निर्माण से जुड़े सभी पक्षों का देश धन्यवाद करें।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस भावना को अभिव्यिक्ति दी कि जिन किसानों की भूमि इसमें लगी है, जिन मजदूरों और इंजीनियरों के अमूल्य श्रम से यह मार्ग साकार हुआ है, वे सभी अभिनंदन के पात्र हैं। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का बनना इस अपेक्षाकृत पिछड़े इलाके के लोगों के लिए एक बड़े सपने के सच होने जैसा है। इससे उनके आवागमन की मुश्किलें तो कम होंगी ही बाराबंकी, फैजाबाद, अंबेडकरनगर, अमेठी, सुल्तानपुर, आजमगढ़, मऊ और गाजीपुर जिलों की औद्योगिक गतिविधियों को भी नई रफ्तार मिलेगी। आज विशाल आबादी की

अपेक्षाओं व जरूरतों को पूरा करने की तो यह बुनियादी शर्त है। इस मामले में देश दशकों तक तेज प्रगति नहीं कर पाया, क्योंकि अर्थव्यवस्था की कुछ सीमाएं थीं और सरकारों की प्राथमिकताएं भी अलग थीं। लेकिन आर्थिक उदारीकरण के बाद अर्थव्यवस्था के विस्तार और इसकी आधारभूत आवश्यकताओं ने सरकारों को इस विषय में अधिक सक्रिय भूमिका अपनाने को बाध्य किया। खासकर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय शुरू स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के तहत देश के चार बडे महानगरों-दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता को सड़क मार्ग से जोड़ने का जो काम शुरू हुआ था, वह 2012 में मनमोहन सिंह सरकार के समय पूरा हुआ।

इसी तरह, 2000 में शुरू प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना से देश के गांवों का कितना विकास हुआ है, यह बताने की जरूरत नहीं है। मगर कटु सत्य है कि कई प्रदेश सरकारें ग्रामीण सड़कों के रखरखाव पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रही हैं। जहां तक उप्र की बात है तो यहां यमुना एक्सप्रेस-वे, लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे और अब पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के निर्माण ने यह भरोसा दिया है कि विकास का पहिया थमने वाला नहीं है। साढ़े तीन वर्ष के भीतर लगभग 22,500 करोड़ रुपये की लागत से तैयार यह एक्सप्रेस-वे अन्य राज्य सरकारों के लिए भी एक उदाहरण है कि समयबद्ध निर्माण की क्या अहमियत है। यह एक नई व जरूरी कार्य-संस्कृति है। दिल्ली और छत्तीसगढ़ सरकारों ने भी ऐसी मिसालें कायम की हैं। निस्संदेह, इस कार्यसंस्कृति और राजनीतिक चेतना को सहेजने की जरूरत है। बेहतर सड़कों का जाल रेलवे पर दबाव कम करने में कारगर साबित होगा ही और ऊर्जा खपत को कम करने में भी सहायक होगा। लेकिन एक दुविधा यह भी है कि ऐसे एक्सप्रेस-वे पर सफर काफी महंगा होता है।

लखनऊ से दिल्ली तक ऐसे खास मार्ग पर सफर करने में एक वाहन को करीब हजार रूपये शुल्क अदा करना होता है। यह सोच भी जरूरी है कि हर व्यक्ति इस सड़क पर अपनी खाली जेब के बावजूद कैसे चले। हालांकि यह भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि अब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के वक्त आ चुका है। जाहिर है कि चुनावी राज्य में चुनाव के ऐलान से पहले उद्घाटनों-शिलान्यासों की बाढ़ आ जाती है मगर इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि चुनाव के जरिये ही सही, लेकिन आम जनता को बड़ी सौगातें भी तो मिल जाती हैं।