मध्यप्रदेश में कांग्रेस की जिस तरह से करारी हार हुई है, वह उसके लिए सबक भी बन सकती हैं या हताशा का कारण भी. दोनों ही स्थितियों में आने वाले समय में कांग्रेस की स्थिति क्या हो रही है यह बता रहे हैं आशीष दुबे
भाजपा ने अपनी चुनावी 'हार' का आंकलन शुरू कर दिया है, कांग्रेस में वैसा आकलन तो नहीं होता, लेकिन कमलनाथ कल दिल्ली में सोनिया गांधी को हार की वजहें गिना आये हैं। अब वे भोपाल में सभी उम्मीदवारों से चर्चा की 'रस्म' पूरी करने वाले हैं। देशभर की ढाई दर्जन विधानसभा और तीन लोकसभा सीटों ने देश का मिजाज जाहिर कर दिया है, लेकिन मप्र में नेताओं के मिजाज ही अलग हैं, खासकर कांग्रेस के। इसीलिये कांग्रेस के भीतर हलचल तेज है। कांग्रेस-कॉडर को यकींन था कि तीन साल पुराने आम चुनाव और छह महीने
पुराने दमोह उपचुनाव वाले 'टेंपो' में ही उसके नेता मैदान में उतरे हैं। लेकिन नतीजों से ऐसा नहीं लगता। जनता के मन में सुलगते सवालों को मजबूत प्रतिपक्ष यदि नहीं भुना सके तो उसकी रणनीतिक समझदारी पर सवाल उठेंगे ही। दमोह में हार भी मिलती तो भी कांग्रेस के अंदरखाने शायद इतने विचलित नहीं होते, जितने जोबट, पृथ्वीपुर और खंडवा को लेकर हैं। दबी जुबान इसे तश्तरी में परोसी गई जीत बताने से भी नहीं चूक रहे हैं। एक नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं 'उम्मीदवारों के चयन और चयन से पहले जो माहौल बनाना जरूरी था वह बना ही नहीं, कमलनाथ भोपाल व मप्र के लिये अप्रवासी अध्यक्ष की तरह तब भी थे और अब भी हैं। वे क्या कर रहे हैं और क्या सोच रहे है, यह बात तीन या चार लोगों के अलावा किसी को पता नहीं होती।'
खंडवा में उम्मीदवार को लेकर जो गफलत रही, वह नाथ के उस बयान से उपजी जो उन्होंने अरुण यादव के संबंध में दिया था, यादव के पलायन की एक वजह खंडवा सीट के हर इलाके में नाथ समर्थक उन नेताओं की घेराबंदी रही जो यादव के लिये 'पूरी तरह तैयार' थे। सिर्फ रैगांव में कांग्रेस की जीत कल्पना वर्मा की मेहनत और अजय सिंह की विंध्य में हैसियत को बता रही है। भाजपा अपनी करारी हार व 'फीकी जीत' का आंकलन कर लेगी, कांग्रेस में वैसा आंकलन संभव नहीं लगता !
झाबुआ- अलीराजपुर अंचल के गढ़ में कांग्रेस जोबट सीट गंवा बैठी। जो सुलोचना रावत भाजपा में जाकर चुनाव जीत गई, वे भी कांग्रेस से टिकट मांग रही थीं, जिस दिवंगत कलावती भूरिया के भतीजे को बमुश्किल बगावत छोड़ने के लिये मनाया जा सका वह भी टिकट मांग रहा था और खुद युंका अध्यक्ष डॉ. विक्रांत भूरिया टिकट के दावेदार थे, मगर चुना गया 'बाहरी' महेश पटेल को, जो कई चुनाव हार चुके हैं! पृथ्वीपुर जैसे गढ़ में कांग्रेस ने नित्येंद्र सिंह के लिए कोई 'सर्पोट सिस्टम' तैयार नहीं किया। लिहाजा जबर्दस्त सहानुभूति के बाद भी वे हार बैठे। भाजपा के एक ताकतवर नेता का ही कहना है- 'चुनाव के ऐन वक्त तक नहीं लग रहा था कि नितेंद्र चुनाव हार जाएगा।'