मध्यप्रदेश में भोपाल इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करना कभी भी आसान नहीं रहा। ये लागू हो जाये तब भी अपराधियों पर पूरी तरह लगाम लग पाने में संदेह है|
मध्यप्रदेश में राह नहीं है आसान?
पुलिस कमिश्नर प्रणाली दशकों से चर्चा में है, 11 साल से तो सरकार स्पष्ट रूप से इसे लागू करने के संकेत देती रही है। लेकिन आज तक इस घोषणा को अमल में नहीं लाया जा सका है। अभी भी पुलिस अधिकारियों में लगता है कि यह संभव नहीं हो सकेगा।
मुमकिन है कि मध्य प्रदेश की सशक्त आईएएस लॉबी इस व्यवस्था को लागू होने से रोकने में कामयाब हो जाए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से पुलिस कमिश्नर सिस्टम की तारीफ की है राज्य सरकार पर इसे लागू करने का मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ गया है। हालांकि इस बार मुख्यमंत्री ने आईएएस लॉबी के आगे न झुकने के भी संकेत दिए हैं। फिर भी इस व्यवस्था को रुकवाने की पूरी कोशिश होगी।
आईएएस अधिकारी इसे अपने क्षेत्राधिकार में अतिक्रमण मानते हैं। लगातार इस प्रणाली को लागू करने में आईएएस अधिकारियों की अदृश्य-दृश्य सत्ताएं बाधा बनती रही हैं।
मुख्यमंत्री को यह बताया जाता रहा है कि ऐसा करना मध्य प्रदेश की आईएएस लॉबी को नाराज करना है। यह भी बताया गया है कि इस तरह का फैसला मध्य प्रदेश के आईएएस के विशेष अधिकारों का हनन है।
मध्य प्रदेश का आईपीएस कैडर लगातार इस बात को लेकर अपनी चिंता जताता रहा है।
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भी इस सिस्टम के खिलाफ नहीं थे।
10 लाख से ज्यादा की आबादी वाले शहरों में कानून व्यवस्था को नियंत्रित करना एक चुनौती रही है। और एक ऑथराइज्ड व्यवस्था बहुत जरूरी है।
1981 से मध्य प्रदेश के बड़े शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की कवायद शुरू हुई, इन शहरों में जनसंख्या तेजी से बढ़ती रही लेकिन यह प्रणाली लागू ना हो सकी।
हालांकि ऐसा भी नहीं है कि इस प्रणाली के लागू न होने से कानून व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो गई हो, अचानक इस प्रणाली के लागू करने की वजह भी साफ नहीं है।
लगता यह है कि सरकार कुछ नया करने के मूड में है। इस बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी कुछ अलग मूड में दिखाई देते हैं वह ऐसे कई फैसले करने से गुरेज नहीं कर रहे जो पहले नहीं हो सके।
मूल मुद्दे अपनी जगह हैं लेकिन जनता को आकर्षित करने के लिए कुछ ऐसे निर्णय लिए जाते हैं, जिसमें उन्हें कुछ नया फ़ील हो।
ऐसा नहीं है कि पुलिस कमिश्नर लागू होने से भोपाल और इंदौर की कानून व्यवस्था में चार चांद लग जाएंगे। अभी भी पुलिस के पास पर्याप्त अधिकार हैं। अपराधियों पर एक्शन लेने में पुलिस कमिश्नर प्रणाली से इसमें थोड़ा सा इजाफा होगा। लेकिन यह प्रणाली नहीं भी लागू होती है, तब भी पुलिस चाहे तो अपराधियों पर नकेल कर सकती है।
आरोप हैं कि भोपाल और इंदौर ऐसे शहर हैं जहां पर कई अपराधी पुलिस की सांठगांठ से काले धंधे करते हैं। ये भी कहा जाता है कि जुआ सट्टा तो पुलिस के संरक्षण में ही चलता है।
हाल ही में भोपाल के कुछ पुलिसकर्मियों को जुआ सट्टा चलाने वालों से सांठगांठ के आरोप में सस्पेंड किया गया। आखिर क्या वजह है कि पुलिस इन पर एक्शन नहीं लेती? क्या पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू हो जाने से भोपाल और इंदौर में चल रहे जुए के अड्डों पर एक्शन होगा?
क्या ढाबों पर अवैध रूप से परोसे जाने वाली शराब के कारोबार पर लगाम लगेगी?
हम देखें तो भोपाल और इंदौर में गुंडे मवाली और माफिया अपनी सियासी जमावट और पुलिस प्रशासन में गहरी पैठ की बदौलत खुलेआम ऐसे कार्य करते हैं जो जनता को आश्चर्यचकित कर देते हैं।
आखिर कैसे भोपाल और इंदौर में देर रात तक ढाबे होटल बार&रेस्टोरेंट में शराब, शबाब और कबाब की पार्टियां चलती रही हैं?
बताया जाता है कि भोपाल में कई जगहों पर अवैध रूप से गांजा और ड्रग्स बिकते हैं आम जनता को पता होता है लेकिन पुलिस को पता नहीं होता!
क्या पुलिस कमिश्नर प्रणाली भोपाल और इंदौर को अपराधियों से मुक्त कर पाएगी?
आईएएस अधिकारियों का काम विकास के कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना है, लेकिन शायद ही कभी कोई आईएएस अधिकारी विकास के कार्यों का जायजा लेने निकलता है, जनता से उनकी दूरी सर्वविदित है। पुलिस अधिकारियों की बात करें तो वह भी अच्छी पोस्टिंग पाने के लिए नेताओं के चक्कर काटते हुए दिखाई दे जाते हैं। ऊपर से सिस्टम को बदलना या अधिकारों में थोड़ी बहुत घट-बढ़ से दिल नहीं बदला जा सकता।
यह बात सच है कि पुलिस और प्रशासन में सब बेईमान लापरवाह और कामचोर नहीं हैं, लेकिन यह भी सच है कि जनता की राय इस बारे में क्या है?
सिस्टम भले बदल जाएँ लेकिन असल बात तो इसके सुखद परिणामों की है|