केंद्र सरकार ने लोकसभा में चुनाव सुधार बिल के जरिए कुछ मुद्दों पर तो पहल की है, लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे भी हैं जिन पर आने वाले समय में काम किया जाना बाकी है, उनमें से "एक देश एक चुनाव" भी है|
लोकसभा में चुनाव सुधार बिल पारित कर दिया गया है| चुनावी प्रक्रिया में विभिन्न सामयिक परिवर्तनों पर लंबे समय से चर्चा हो रही है। केंद्र सरकार इनमें से कई संबंधित बदलावों को लागू करने की प्रक्रिया में है। चुनावी सुधार के जिन प्रमुख मुद्दों पर तेजी से काम किया जा रहा है, उनमें फर्जी वोटिंग और मतदाता सूची के दोहराव को रोकने के लिए मतदाता पहचान पत्रों को आधार कार्ड से जोड़ना, देश भर में एकल मतदाता सूची बनाना, जिसका उपयोग लोकसभा और विधानसभा में किया जा सकता है। चुनाव से लेकर पंचायत और नगर निगम चुनाव आदि तक के उपाय और चुनाव आयोग को अधिक अधिकार देना। केंद्र सरकार द्वारा किए गए परिवर्तनों से मतदाताओं को कई लाभ मिलने की उम्मीद है। विधेयक में एक बड़ी पहल यह है कि 18 वर्ष से अधिक उम्र के युवा जल्द ही मतदान के पात्र होंगे।
इस विधेयक के लागू होने के साथ ही एक बार फिर एक देश एक चुनाव लागू होने पर चर्चा शुरू हो गई है| एक देश एक चुनाव इस बिल का हिस्सा नहीं है लेकिन यह लंबे समय से चर्चा में उठता रहा है|
देश में कई बार लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने की वकालत की जाती रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक देश एक चुनाव की पैरवी कर चुके हैं।
प्रधानमंत्री इसे भारत की जरूरत बताते हैं। लेकिन मोदी के इतने वर्षों के कार्यकाल में यह मुद्दा अभी भी बहस का विषय बना हुआ है।
हालांकि धीरे-धीरे इस मुद्दे की धार कमजोर पड़ गई है। ये मुद्दा तभी उठता है जब कोई बड़ा राजनेता इस विषय पर कोई बयान देता है।
यूपी चुनाव करीब हैं, यूपी के साथ अन्य राज्यों के चुनाव में हो रहे हैं।
हर 6,8 महीने में किसी न किसी राज्य का चुनाव आ ही जाता है। इन चुनावों के कारण राजनीतिक दलों का पूरा फोकस वहीं हो जाता है जहां चुनाव होते हैं।
केंद्र की सरकार को भी राज्यों के चुनाव के लिहाज से अपनी पार्टी को मजबूत करने के लिए कदम उठाने रहते हैं, अब पूरी केंद्र सरकार यूपी सहित उन राज्यों पर फोकस कर रही है जहां आने वाले साल में चुनाव होने हैं।
There are people who talk the right things. But this same section, when it comes to doing the right things, fail to convert words into action.
— PMO India (@PMOIndia) February 10, 2021
Those who talk big on electoral reforms oppose One Nation One Election.
They speak of gender justice but oppose Triple Talaq: PM Modi
भारत में एक देश एक चुनाव कितना उपयुक्त है और क्या इसे लागू किया जा सकता है? इस पर ज़ुबानी जमा खर्च से ज्यादा कुछ भी नहीं हुआ।
प्रधानमंत्री मोदी ने पीठासीन अधिकारियों की बैठक में एक देश एक चुनाव की बात जरूर कही थी, लेकिन वह भी इसे लेकर शायद बहुत ज्यादा गंभीर नहीं रहे हैं।
इसीलिए बातों से ज्यादा इस मुद्दे पर बहुत कुछ नहीं हुआ।
हालांकि कोरोना चलते भी यह मुद्दा सरकार की प्राथमिकता में शामिल नहीं हो सका। क्योंकि तात्कालिक परिस्थितियों के हिसाब से सरकार के सामने और भी कई महत्वपूर्ण मुद्दे हैं।
ऐसा नहीं है कि इसे तत्काल प्राथमिकता में शामिल किया जाए, लेकिन सवाल तो बना ही हुआ है।
क्या एक देश एक चुनाव के लिए भारत देश उपयुक्त है? और क्या इसे अमल में लाने से भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था मजबूत होगी?
ऐसा माना जाता है कि जब यह व्यवस्था लागू होगी तो छोटी-छोटी पार्टियों का अस्तित्व धीरे धीरे कम हो जाएगा या पूरी तरह खत्म हो जाएगा।
एक मान्यता यह भी है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने पर मतदाता एक ही दल को दोनों जगह जिताने में यकीन रखते हैं। लेकिन यह पूरी तरह से स्थापित तथ्य नहीं है।
One Nation, One Election is essential to strengthen & make our democracy more efficient
— Tejasvi Surya (@Tejasvi_Surya) March 8, 2021
After 70+ years, we've a leader in Sri @narendramodi who has the courage of conviction to back this reform
It is our duty to promote this impt structural reform for India
Part 2 of my talk pic.twitter.com/OUH0YlHYcZ
कई बार मतदाताओं ने एक साथ होने वाले चुनावों में प्रत्याशी का चेहरा और पार्टी की रीति नीति देखकर अलग-अलग दलों को वोट दिया है।
भारतीय जनता पार्टी फिलहाल देश में विस्तार कर रही सबसे बड़ी पार्टी है और बाकी दलों से वह काफी आगे बढ़ चुकी है।
ऐसे में बीजेपी के लिए एक देश एक चुनाव प्राथमिकता का विषय हो भी नहीं सकता। लेकिन कांग्रेस या अन्य राष्ट्रीय दल इस विचार के साथ क्या अपने अस्तित्व को बढ़ते हुए देख सकते हैं।
हमने देखा कि जब मध्यप्रदेश में जनता ने तत्कालीन बीजेपी सरकार के विरोध में मत दिया, इसके कुछ ही माह बाद लोकसभा चुनाव में इसके उलट नरेंद्र मोदी के पक्ष में वोट दिया।
कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली और बाकी सीटें बीजेपी के गयी। लेकिन विधानसभा में कांग्रेस को बीजेपी से ज्यादा सीटें मिली थी।
एक देश एक चुनाव कितना व्यवहारिक है, भारत के लिए कितना अनुकूल है, इस विषय पर स्टडी होना जरूरी है। जब तक रिसर्च नहीं होगी तब तक इसे अमल में लाने का विचार दूर की कौड़ी साबित होगा। फिलहाल तो यह मुद्दा नेपथ्य में चला गया है और शायद ही वर्तमान सरकार इसके बारे में आने वाले एक-दो साल में विचार करे।
यह विचार 1983 से है, जब इसे पहली बार चुनाव आयोग द्वारा प्रस्तावित किया गया था। हालाँकि, 1967 तक भारत में एक साथ चुनाव आम थे। 1951-52 में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के पहले आम चुनाव एक साथ हुए थे। 1957, 1962 और 1967 में हुए तीन आम चुनावों में यह प्रथा जारी रही। लेकिन 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओं के असामयिक विघटन से चक्र बाधित हुआ।
1970 में लोकसभा समय से पहले भंग कर दी गई और 1971 में नए चुनाव हुए। इस प्रकार पहली, दूसरी और तीसरी लोकसभा ने 5 साल का पूरा कार्यकाल पूरा किया। लोकसभा और विभिन्न राज्य विधानसभाओं दोनों के समय से पहले विघटन और कार्यकाल के विस्तार के परिणामस्वरूप लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के अलग-अलग चुनाव हुए, जिसने एक साथ चुनाव चक्र को बाधित किया।
केंद्र सरकार ने लोकसभा में चुनाव सुधार बिल के जरिए कुछ मुद्दों पर तो पहल की है लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे भी हैं जिन पर आने वाले समय में काम किया जाना बाकी है उनमें से एक एक देश एक चुनाव भी है|
इस चुनाव सुधार बिल से क्या बदलेगा?
चुनाव आयोग ने आधार प्रणाली को मतदाता सूची से जोड़ने का प्रस्ताव रखा था ताकि कोई भी अलग से एक से अधिक बार पंजीकरण न कर सके| एक परिवर्तन मतदाता सूची में नए मतदाताओं के जुड़ने से संबंधित है। वर्तमान कानून के तहत, केवल 1 जनवरी को ही 18 वर्ष के हो चुके लोगों को मतदान करने के लिए पंजीकरण करने की अनुमति है। उदाहरण के लिए, यदि कोई युवा व्यक्ति 2 जनवरी, 2022 को 18 वर्ष की आयु तक पहुंचता है, तो उसे मतदाता सूची में अपना नाम जोड़ने के लिए 1 जनवरी 2023 तक इंतजार करना होगा। नया कानून लागू होने के बाद, मतदाताओं के पास साल के हर तीन महीने में एक मौका होगा, यानी मतदाता सूची में अपना नाम जोड़ने के लिए साल में चार मौके।