टीम को हमेशा एक कप्तान ही खड़ा करता है और अच्छा प्रदर्शन पूरे टीम को दिखाना पड़ता है। दक्षिण अफ्रीका दौरे में ही क्या हुआ?
विराट कोहली, जी हाँ विराट कोहली उन्होंने पहले टी-२० की कप्तानी छोड़ी और अब टेस्ट की कप्तानी से भी पीछे हट गए हैं। वे ऐसा करने वाले पहले शीर्ष खिलाडी नहीं हैं | परिस्थितियों के हिसाब से लगा था कि बीसीसीआई से विराट की ट्यूनिंग ठीक नहीं चल रही है । पिछले दिनों उन्हें जिस तरह वन-डे की कप्तानी से हटाया गया, उससे विराट कहीं न कहीं आहत थे। निस्संदेह विराट सम्मानजनक विदाई के हकदार थे। वैसे कप्तानी छोड़ने वाले विराट पहले खिलाडी नहीं हैं| सचिन तेंदुलकरऔर महेन्द्र सिंह धोनी ने भी भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी छोड़ दी थी। अब विराट कोहली भी अपने समय में बहुत अच्छी कप्तानी केबाद अपनी बल्लेबाजी पर ध्यान देने के लिए टेस्ट की कप्तानी से भी हटें हैं।
बहाना यह है कि विराट को अंतरराष्ट्रीय खेल जीवन के जो भी चार-पांच साल बचे हैं, उसमें उन्हें अपने बेहतरीन प्रदर्शन पर पूरा ध्यान लगाना है। यह अच्छी बात है कि वे बल्लेबाजी पर ज्यादा ध्यान देना चाहते हैं, इसीलिए उन्होंने पहले टी-२० की कप्तानी छोड़ी थी और अब टेस्ट की कप्तानी से भी पीछे हट गए हैं। टीम प्रबंधन ने एकदिवसीय टीम की कप्तानी में पहले ही परिवर्तन कर दिया है।
टीम को हमेशा एक कप्तान ही खड़ा करता है और अच्छा प्रदर्शन पूरे टीम को दिखाना पड़ता है। दक्षिण अफ्रीका दौरे में ही क्या हुआ? गेंदबाजों ने अपना काम ठीक से किया, लेकिन बल्लेबाज उम्मीद और जरूरत पर खरे नहीं उतरे। बल्लेबाजों ने भारतीय टीम को निराश किया| इसी दक्षिण अफ्रीका दौरे की पृष्ठभूमि में विराट कोहली ने कप्तानी छोड़ी है, लेकिन यह उनके खेल या उनके युग का अंत नहीं है। हां, कप्तानी एक जिम्मेदारी है, जिससे वह पीछे हटे हैं। टीम कोई हो, बदलाव की प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है। कप्तान आते हैं, जाते हैं। भारत ने टेस्ट क्रिकेट में ३४ कप्तान देखे हैं और विराट कोहली ४० टेस्ट जीत के साथ भारत के सफलतम कप्तान हैं।क्रिकेट से एक और सफलतम कप्तान महेन्द्र सिंह धौनी भी गए थे और विराट कोहली को कमान मिली थी, अब विराट जाएंगे, तो किसी और को कमान सौंपी जाएगी। बदलाव का हमेशा स्वागत करना चाहिए |
महेन्द्र सिंह धौनी से विराट कोहली की तुलना करना उचित नहीं लगता है, दोनों अलग-अलग तरह के खिलाड़ी हैं, और ऐसी तुलना से क्या लाभ? क्या आप कपिल देव की कप्तानी की तुलना महेन्द्र सिंह धौनी की कप्तानी से करेंगे? कपिल देव तो उस टीम के कप्तान थे, जो पहली बार भारत के लिए विश्व कप जीती थी। उस दौर से आज के दौर की तुलना भी नहीं हो सकती। उस दौर में तो यहां तक कहा जा रहा था कि भारत की टीम को विश्व कप टूर्नामेंट में बुलाना बेकार है, लेकिन उसी टीम ने कमाल कर दिखाया था, तब सबकी बोलती बंद हो गई थी। लोगों की धारणा के विपरीत हम लोग जीतकर आए थे। उस दौर की टीम से आज के दौर की टीम की तुलना कैसे करें ?
कभी सफलता मिलती है और कहीं नहीं मिलती। कुछ को ज्यादा सफलता मिलती है, तो कुछ को कम मिलती है। और सबकुछ कप्तान के हाथ में नहीं होता है, बाकी दस खिलाड़ी भी तो टीम में खेल रहे होते हैं। मुद्दा यह है अगर टीम के प्रदर्शन में कोई कमी रह गई है, तो इसमें केवल कोहली की क्या गलती है? जो लोग इस खेल को ठीक से नहीं जानते हैं, वे आलोचना कर सकते हैं कि दक्षिण अफ्रीका में तीसरे टेस्ट की अपनी आखिरी पारी में विराट ने ज्यादा गेंदों पर बहुत कम रन बनाएं, ऐसे लोग वहां के हालात को भूल गये ।
किसी भी बड़े खिलाड़ी को किसी एक पारी या किसी एक शृंखला से नहीं आका जा सकता। यह सच है कि विराट केनेतृत्व में भारतीय टीम ने अपना उत्कर्ष देखा है। सचिन तेंदुलकर भी विश्व कप नहीं ला सके थे, क्या वह बड़े खिलाड़ी नहीं थे? राहुल द्रविड़ भी विश्व कप नहीं ला पाए, क्या वह बड़े खिलाड़ी नहीं कहलाएंगे? तुलना मत कीजिए और करना ही तो तुलना कीजिए कि १९८३ में आज जैसे बल्ले नहीं होते थे। हेलमेट नहीं होते थे|आप कैसे यह फैसला करेंगे कि सचिन तेंदुलकर बड़े बल्लेबाज थे या सुनील गावस्कर? सब अपने-अपने समय के सम्राट रहे हैं।
विराट एक कप्तान के रूप में आक्रामकता और सकारात्मक सोच की विरासत छोड़कर जा रहे हैं। लड़ाई कोई हो, आपको सकारात्मक सोच से उतरना पड़ेगा, जो आदमी हारने से डरता हो, वह जिंदगी में कभी जीत ही नहीं सकता। विराट की सोच यही थी कि जीत के लिए जाएंगे और अच्छा खेलेंगे। उम्मीद है, विराट आगे बहुत अच्छा खेलेंगे।