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सुधार की पहल, नाम पर विवाद अनर्गल 

सार

भारत में पहली बार किसी सरकारी योजना का नाम 'राम के नाम' पर उच्चारित किया जाएगा। महात्मा गांधी के नाम पर संचालित मनरेगा योजना अब अब 'विकसित भारत जी राम जी ' नाम से जानी जाएगी. योजना के नाम में राम शब्द पर विवाद शुरू हो चुका है..!!

janmat

विस्तार

    यद्यपि यह नामकरण अंग्रेजी में है. योजना का नाम 'वीबी जी आरएएम जी' है. इसमें वी से मतलब विकसित, बी से मतलब भारत, जी से मतलब गारंटी, आर से मतलब रोजगार, ए से मतलब आजीविका, एम से मतलब मिशन और फिर जी से मतलब ग्रामीण है. इसका पूरा उच्चारण  'विकसित भारत जी राम जी' है. इसी नाम से संसद में विधेयक प्रस्तुत किया गया है.

    महात्मा गांधी के नाम को मनरेगा में भी इसी तरीके से जोड़ा गया था. जब यह योजना प्रारम्भ हुई थी तब इसका नाम नरेगा ही था. योजना को रोजगार गारंटी के रूप में देखा जाता है. इसमें बड़ी राशि बजट के रूप में खर्च होती है लेकिन अपेक्षा के मुताबिक इसका परिणाम नहीं आता दिखा है. अब तक योजना का 90% हिस्सा भारत सरकार देती रही है. नए कानून में इसे केंद्र के हिस्से 60 और राज्यों के हिस्से 40 प्रतिशत में विभाजित किया गया है. 

    नए विधेयक में वर्ष में 125 दिन रोजगार का वादा किया गया है. पहले यह अवधि 100 दिन थी. योजना में और भी बदलाव किए हैं, जिसमें कृषि सीजन में ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी उपलब्धता की दृष्टि से उस दौरान रोजगार योजना स्थगित रहने का प्रावधान भी है. योजना में अब तक घोटाले की  शिकायतें भी बनी रहती थी. अब टेक्नोलॉजी को योजना के साथ जोड़ा गया है, मजदूरी डिजिटल ट्रांसफर करने की व्यवस्था को भी नए कानून में और मजबूत किया गया है. 

    रोजगार योजना में कितना सुधार होगा इस पर चर्चा होने के बजाय सारा विवाद योजना के नाम में परिवर्तन पर सिमट गया है, लोकसभा में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने योजना के विधेयक को पेश करते हुए कहा कि महात्मा गांधी के राम राज्य की परिकल्पना पर यह खरी उतरेगी, बापू के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता भी उन्होंने जाहिर की. 

    यद्यपि योजना का नाम इस तरीके से डिजाइन किया गया है कि जिससे राम उच्चारित होता है लेकिन भगवान राम से इसका कोई लेना देना नहीं है. यह वैसे ही है जैसे कांग्रेस ने विपक्षी दलों का जो गठबंधन बनाया था उसमें भी ऐसे शब्दों को संयोजित किया कि जिससे उनके गठबंधन का नाम इंडिया बनकर उभरा था. अब कांग्रेस सहित विपक्षियों के सामने बड़ा संकट है. योजना से जो राम शब्द प्रतिध्वनित हो रहा है उसका विरोध महात्मा गांधी का नाम हटाने से जोड़कर किया जा रहा है.

    यद्यपि सरकारी योजना को किसी धर्म या आस्था से जुड़े महापुरुष के नाम नहीं किया जा सकता. भगवान राम तो भारत के आदर्श हैं. राम जन्मभूमि आंदोलन और भव्य राम मंदिर निर्माण की प्रतिष्ठा बीजेपी से जुड़ चुकी है. राम जन्मभूमि पर सामाजिक-राजनीतिक विवाद अभी भी खत्म नहीं हुए हैं. पश्चिम बंगाल में नई बाबरी मस्जिद का शिलान्यास इसका उदाहरण है. 

    अब कांग्रेस के सामने यह संकट है कि राम की प्रतिध्वनि के साथ बन रही रोजगार योजना का विरोध किस सीमा तक किया जाए? नई योजना का नाम जिस तरीके से उच्चारित हो रहा है वह भारतीय संस्कृति में अभिवादन से भी जुड़ा हुआ है. जय राम जी, जय सियाराम, भारत के ग्रामीण अंचलों में यह अभिवादन की स्थापित परंपरा है. ' जी राम जी' इससे मिलता जुलता है. इसे गांव-गांव तक पहुंचने में देर नहीं लगेगी. 

    आम धारणा में कांग्रेस को भगवान राम के प्रति आस्थावान राजनीतिक दल के रूप में नहीं देखा जाता. राम मंदिर के शिलान्यास का न्यौता तक कांग्रेस द्वारा ठुकरा दिया गया था. कांग्रेस खुद को महात्मा गांधी की विरासत का वारिस मानती है. महात्मा गांधी के प्रति बीजेपी की प्रतिबद्धता भी कांग्रेस से कम नहीं दिखाई पड़ती. महापुरुषों के प्रतीकों की राजनीति में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, सरदार वल्लभभाई पटेल पर तो बीजेपी अपना दावा मजबूत कर चुकी है. महात्मा गांधी को भी बीजेपी कांग्रेस से अपने पाले में लेना चाहती है. यह लगता है कि कांग्रेस के पास केवल पंडित नेहरू की विरासत ही बची रह सकती है. 

    राम की प्रतिध्वनि के साथ नई योजना में महात्मा गांधी का नाम हटाने को लेकर कोई भी विवाद राजनीतिक रूप से कारगर नहीं हो सकता. भारत के हर मन में समाए राम का नाम विवाद नहीं बल्कि हर समस्या के समाधान से जुड़ा हुआ है. पीएम नरेंद्र मोदी ने राममंदिर के शिलान्यास के समय अपने संबोधन में कहा था कि राममंदिर विकसित भारत का सपना है. उन्होंने इसे विकसित भारत के संकल्प का प्रतीक बताया था जिसमें सत्य सामूहिकता और संगठित शक्ति से लक्ष्य प्राप्ति की प्रेरणा है. उनके इस वक्तव्य को अब सही दृष्टि से समझा जा सकता है, जबकि विकसित भारत के संकल्प के प्रतीक के रूप में रोजगार योजना से इसे प्रतिध्वनित किया जा रहा है.

    राजनीति में प्रतीकों का बहुत महत्व है. चुनाव से पहले इंडिया गठबंधन का प्रतीक कांग्रेस और विपक्ष का मास्टरस्ट्रोक माना गया था. हालांकि इसका चुनावी प्रतिसाद नहीं मिला है. अब शब्दों के संयोजन से प्रतीकों के मामले में भी कांग्रेस के सामने चुनौती आ गई है. राम की प्रतिध्वनि की योजना का विरोध राजनीतिक रूप से सही नहीं होगा. प्रियंका गांधी लोकसभा में अपने वक्तव्य में यह भी कह गईं कि महात्मा गांधी उनके परिवार के नहीं है. अब यह सवाल भी आएगा कि जब महात्मा गांधी उनके परिवार के नहीं है तो फिर उन्हें गांधी सरनेम लगाने की विरासत कैसे मिली.

    शब्दों के संयोजन से ही सही लेकिन सरकारी योजना में राम शब्द की प्रतिध्वनि स्थापित हुई है. यह प्राण प्रतिष्ठा भी राजनीतिक विवाद के लिए पर्याप्त है. ऐसे विवाद जनमत को प्रभावित करते हैं और चुनाव में निर्णायक भी साबित होते हैं. अभी तो नई योजना सेलेक्ट कमेटी को जा सकती है, लेकिन यह योजना देश में लागू होने में केवल समय की बात है, इसे लागू होने से कोई रोक नहीं सकता है.