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मेट्रोपॉलिटन रीजन का थॉट, आगे पाठ-पीछे सपाट

सार

राजधानी भोपाल अब मेट्रो सिटी बन गई है. इसकी खुशी स्वाभाविक है. सरकार अपनी उपलब्धि से खुश है तो यहां के लोग अत्याधुनिक मेट्रो में सैर सपाटे से खुश हैं. कोई खुशी अकेले तो होती नहीं है, उसके साथ गम भी होता है. भोपाल को मेट्रो की खुशी है तो मास्टर प्लान न आने का गम है..!!

janmat

विस्तार

    मेट्रो के साथ अब प्रदेश में मेट्रोपॉलिटन रीजन का थॉट सामने आ रहा है. भोपाल-इंदौर में इसको शुरू किया गया है, विद्यार्थियों के लिए प्रसिद्ध कहावत है कि ‘आगे पाठ-पीछे  सपाट’. मास्टर प्लान और मेट्रोपॉलिटन रीजन पर यह कहावत सही साबित होती लग रही है.

    पहले दिन मेट्रो में यात्रा करने वाले चेहरे खुश दिखाई पड़ रहे हैं. जिस रूट पर मेट्रो का संचालन प्रारंभ हुआ है, वह रिहायशी इलाके में नहीं है. मेट्रो का पूरा उपयोग तो तभी हो सकेगा जब इसके रूट और बढ़ेंगे. मंडीदीप, बैरागढ़, कोलार जैसे उपनगर जब मेट्रो रूट में शामिल होंगे तभी राजधानी की यातायात व्यवस्था और रफ्तार गति पकड़ेगी. एक रूट पर मेट्रो सरकारों की उपलब्धि बताने के लिए तो पर्याप्त है लेकिन शहर के लिए इसकी  उपयोगिता साबित शायद ही हो. 

    देश की अन्य मेट्रो सिटी से मुकाबले के लिए भोपाल की अधोसंरचना को भी उनके मुकाबले खड़ा करना पड़ेगा. ट्रैफिक को सुचारू बनाना पड़ेगा. भोपाल में सार्वजनिक सड़क परिवहन व्यवस्था भी नगण्य जैसी है. ट्रैफिक जाम आम समस्या है. एक बारिश में राजधानी डूबने उतराने लगती है, टाइगर की टेरिटरी में मानव बसाहट बढ़ती जा रही है. 

    शहर की हरियाली पर तो हर रोज सवाल खड़े हो रहे हैं. पेड़ों की कटाई चिंतित कर रही है. सीवरेज और जल निकासी सिस्टम करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी कभी भी साथ छोड़ देता है. बड़ा और छोटा तालाब राजधानी की धरोहर हैं उनके आसपास कब्जे की शान बड़ी-बड़ी हस्तियों के चेहरे पर देखी जा सकती है. पर्यावरण और प्रदूषण के मामले में भोपाल कभी बेहतर स्थिति में था, आज यहां का लेवल भी चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया है.

    भोपाल में बिना मास्टर प्लान के ही अधोसंरचना विकास हो रहा है. जो मास्टर प्लान 30 साल पहले लागू हुआ था, वही अभी भी चल रहा है. कई सरकारें बदल गई लेकिन नया मास्टर प्लान नहीं आ सका. नया मास्टर प्लान तो आया ही नहीं लेकिन पुराने मास्टर प्लान के कमिटमेंट भी अधूरे हैं. मास्टर प्लान की सड़कों पर कब्जे हैं, मास्टर प्लान की घोषित सड़कों का भी निर्माण नहीं हो सका है. नया मास्टर प्लान भी पुराने मास्टर प्लान की सड़कों का निर्माण तो पूरा नहीं कर पाएगा. मेट्रोपॉलिटन रीजन भी इस समस्या का निदान करने में कोई रोल नहीं अदा करेगा.

    शहर में अवैध बस्तियों का निर्माण कमाई का धंधा बन गया है. भोपाल को झुग्गी मुक्त बनाने के लिए तीन दशकों से प्रयास हो रहे हैं लेकिन झुग्गियाँ कम होने की बजाय बढ़ती जा रही है. शहर में कौशल विकास और रोजगार की संभावनाएं तो नगण्य है. इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट जो तीन दशक पहले था वहीं स्थितियां कमोबेश आज भी हैं.

    राज्य के मुख्यमंत्री दूसरी मेट्रो सिटी में जाकर इन्वेस्टमेंट कॉन्क्लेव करते हैं. किसी दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री तो भोपाल आकर कभी भी इन्वेस्टमेंट की उम्मीद नहीं करते. शायद इसलिए कि यहां वैसी संभावना वाले इन्वेस्टर ही उपलब्ध नहीं है.  

    भोपाल में मेट्रो सुभाष नगर से एमपी नगर, हबीबगंज, अलकापुरी होते हुए एम्स तक प्रारंभ हुई है. इस रूट पर लोगों को कई किलोमीटर चल कर मेट्रो स्टेशन पहुंचना पड़ेगा. मेट्रो की शुरुआत सुखद है लेकिन इसका प्रसाद भोपाल के लोगों को तभी मिल पाएगा जब इसका विस्तार होगा. अभी तो मेट्रो के पोस्टर के रूप में यह रूट सरकारों और राजनीतिक नेताओं को अपनी उपलब्धि स्थापित करने के लिए ज्यादा उपयोगी दिख रहा है.

    जब मेट्रो का काम प्रारंभ हुआ था तब शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री थे. अब इसका संचालन डॉ. मोहन यादव ने प्रारंभ किया है. निश्चित रूप से मेट्रो का क्रेडिट बीजेपी की सरकार को ही जाएगा लेकिन कांग्रेस भी इसका श्रेय लेने में लगी हुई है. कांग्रेस कह रही है कि कमलनाथ सरकार में इसका शिलान्यास किया गया था.यह बात इसी से गलत साबित हो जाती है कि कमलनाथ सरकार में अगर मेट्रो का काम शुरू हुआ होता तो इतनी जल्दी यह पूरा ही नहीं हो सकता था. श्रेय राजनीति का लक्ष्य होता है. हर नेता अपने हिसाब श्रेय लूटने की कोशिश करेगा इसमें कुछ गलत भी नहीं है.

    मुंबई और दिल्ली में मेट्रो शहर की लाइफलाइन है. जहां मेट्रो लाइफ लाइन बन जाती है वहीं यह लोगों की रफ्तार बनती है. भोपाल में अभी एक रूट चालू हुआ है, तो नए रूटों पर काम चल रहा है लेकिन भोपाल की रफ्तार केवल मेट्रो से नहीं बन पाएगी. इसके लिए शहरी अधोसंरचना के सभी क्षेत्रों में प्रयास करने की आवश्यकता है. भोपाल की मेट्रो जितनी चर्चित नहीं हो पाई, उससे ज्यादा चर्चा 90 डिग्री के ओवरब्रिज की रही. 

    मेट्रो रूट में भी इंजीनियरिंग की खामियां सामने आई हैं सड़कों को गहरा कर इससे निजात पाया है. मास्टर प्लान के प्रावधानों का सख्ती के साथ पालन ही शहर की रफ्तार बढ़ा सकता है. किसी शहर को दुनिया के मुकाबले में खड़ा करने दिखावटी से ज्यादा हर सेक्टर में ईमानदार प्रयासों की आवश्यकता होती है.

    हमारी राजनीति तात्कालिक लाभ पर सिमट गई है. इसका असर शहर की अधोसंरचना पर भी दिखता है. मेट्रो की खुशी तभी सफल होगी जब आगे पाठ के साथ पीछे के बुनियादी मसलों का भी हल निकाला जाएगा.