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राजधानी की जान पर आई…पेड़ों की कटाई

सार

यूनियन कार्बाइड की गैस त्रासदी से हजारों जान गंवाने वाले भोपाल में अब हजारों पेड़ों की हत्या की गई है. यह भी गैस त्रासदी से कम पीड़ादायक नहीं है. .!

janmat

विस्तार

भोपाल में सड़क निर्माण के लिए पेड़ों की बलि दी गई. ग्रोथ के लिए पेड़ों की डेथ लिखी गई, जो भोपाल अपनी हरियाली के लिए मशहूर था उसके पर्यावरण का स्तर खराब होता जा रहा है. पब्लिक अगर एक पेड़ काटती है तो उस पर एक्शन होता है लेकिन जब गवर्नेंस का सिस्टम पेड़ों की हत्या करने लगे तो फिर एनजीटी भी बचा नहीं पाता है. हरियाली पर संकट भोपाल, सिंगरौली या अरावली तक ही सीमित नहीं बल्कि देश के कई हिस्सों में है.  

राजधानी भोपाल में अयोध्या बायपास के विस्तार के लिए NHAI द्वारा योजना बनाई गई. NGT ने ओपन कोर्ट में आदेश दिया कि एक भी पेड़ नहीं कटेगा फिर भी आदेश की कॉपी आने तक ढाई दिन में 1500 पेड़ काट डाले गए. NHAI कह रहा है कि उसने नहीं बल्कि भोपाल नगर निगम ने पेड़ काटे हैं. निगम कह रहा है कि NHAI की रिपोर्ट पर पेड़ काटे गए हैं. यह विरोधाभास है.

सरकारी स्तर पर पेड़ लगाने के नाम पर जितनी धाँधलियां हुई हैं उन सब को जोड़ दिया जाए तो मध्यप्रदेश में कोई भी जगह खाली न बचे लेकिन परिणाम इससे उलट है. जो प्राकृतिक जंगल थे वह भी कटते जा रहे हैं. नर्मदा किनारे सात करोड़ वृक्षारोपण का अभियान सरकार ने चलाया था. यह सारा अभियान नर्मदा में ही बह गया लगता है. 

हर साल सरकार पर्यावरण दिवस पर वृक्षारोपण का इवेंट करती है. पेड़ लगते भी है लेकिन फिर ना उनकी सुरक्षा होती है और ना ही देखभाल और वह अपनी मौत मर जाते हैं. राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का स्तर इस सीमा तक पहुंच गया है कि अब किसी भी तरह के सरकारी हस्तक्षेप से भी उसे सामान्य कर पाना चुनौती से कम नहीं है.

राजधानी भोपाल का मौसम खुशनुमा रहता था. इस सब के पीछे यहां की हरियाली ही थी. सार्वजानिक स्थानों पर तो हरियाली थी ही, घरों में भी हरियाली को प्राथमिकता दी जाती थी. पेड़ बोलते नहीं है. ऐसे ही अगर इन्हें काटा जाता रहा तो काटने वालों की सांस रुकने से कोई रोक नहीं सकता. 

महाकवि कालिदास मध्यप्रदेश से ही जुड़े हैं. ‘जिस डाली पर बैठे हैं उसको ही काटना’ जैसी उनकी कहावत को विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई कर हम चरितार्थ कर रहे हैं, ऐसा कर अपने जीवन को ही संकट में डाला जा रहा है. एक मूर्ख व्यक्ति अज्ञानता के कारण किस तरह विनाशकारी कार्य कर सकता है. यह भोपाल में अयोध्या बायपास पर जाकर देखा जा सकता है. दिल्ली में प्रदूषण संकट है. मध्यप्रदेश में भले ही आज संकट गंभीर नहीं है लेकिन लग रहा है कि यह राज्य भी दिल्ली के मार्ग पर ही चल रहा है. 

मध्यप्रदेश अपने जंगल और टाइगर के लिए दुनिया में जाना जाता है. शहरी क्षेत्र में तो पेड़ कट ही रहे हैं जंगल में भी पेड़ों की कटाई सतत जारी है. वनों पर अतिक्रमण का भी संकट बना है. जब गवर्नेंस के बड़े केंद्र भोपाल में ही आंखों के सामने पेड़ों की बलि दी जा सकती है तो सुदूर अंचलों में जंगलों में तो कोई देखने वाला ही नहीं है. जंगलों की रक्षा के लिए जो विभाग है उसका भी नीचे स्तर पर काम करने वाला अमला अपनी जेब भरने के लिए पेड़ों पर ही निर्भर है. जब तक उनकी बलि नहीं चढ़ाएगा तब तक उनकी जेब में पैसा कहां से आएगा? 

अक्सर ऐसा सामने आता है कि टाइगर मानव बस्तियों में आ गए हैं. भोपाल के आसपास तो टाइगर की बसाहट में ही बस्तियां बसाई जा रही हैं जिसके कारण टाइगर सड़कों पर आ जाते हैं . जो जितना रसूखदार और रईस है वह जंगलों के बीच रहना चाहता है लेकिन जंगल लगाना-बचाना और पेड़ों की देखभाल करना उसके लेवल की बात नहीं होती. टाइगर सड़कों पर दुर्घटना में मारे जा रहे हैं. 

राजधानी भोपाल में सड़क विस्तार के लिए जिस दिन हरियाली की हत्या की गई है उसी दिन मध्यप्रदेश में ग्रोथ समिट हो रही है इसके जरिए निवेश से रोजगार का ‘अटल संकल्प’ व्यक्त किया जा रहा है. अयोध्या बायपास सड़क पर भी इन्वेस्टमेंट हो रहा है. लेकिन जो सांस मिल सकती थी जो हवा साफ हो सकती थी, जो ऑक्सीजन मिल सकती थी वह पेड़ों के काटे जाने से समाप्त होती दिख रही है. 

विकास और पर्यावरण में संतुलन बहुत जरूरी है. ग्रोथ के नाम पर ऐसा नहीं होना चाहिए. हरियाली की हत्या हो, नदियां सूख रही हैं, तालाब समाप्त हो रहे हैं सरकार एक तरफ जल संवर्धन का जल गंगा अभियान चलाती है तो दूसरी तरफ सड़क निर्माण के लिए पेड़ों की हत्या के लिए भी जिम्मेदार है. 

हवा और पानी आम और खास दोनों के लिए एक जैसा ही है. ज्यादा पैसे वाले अल्कलाइन वाटर पी सकते हैं लेकिन आम आदमी तो नगर निगम से मिलने वाला पानी ही पीता है. अगर उसको हम प्रदूषित करेंगे तो यह आत्महत्या जैसा होगा. हमारे पेड़ अस्तित्व के उस चक्र से जुड़े हैं जो हवा पानी को साफ करते हैं.

जब एक पेड़ जबरन काटा जाता है तो उसमें से एक नकारात्मक ऊर्जा निकलती है जब वह खुद को समर्पित करता है तो उससे  बने उत्पाद पवित्रता और सकारात्मकता देते हैं. ‘एक पेड़ मां के नाम अभियान’ भी चलाया जा रहा है और पेड़ों की हत्या भी हो रही है. गवर्नेंस का यही डबल स्टैंडर्ड विकास और विनाश के बीच झूलता रहता है. हमें खुद को बचाना है. पीढ़ियों को बचाना है तो पेड़ों को बचाना-लगाना और सुरक्षित रखना ही पड़ेगा.