अदालत और देश की सारी व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण नेशनल हेराल्ड केस की जांच है. अदालत के आदेश पर 2013 में ईडी द्वारा जांच शुरू की गई. 12 साल बाद चार्जशीट अदालत में पेश की गई. जिस पर कोर्ट ने संज्ञान लेने से इनकार कर दिया..!!
सोनिया गांधी और राहुल गांधी जैसे नेता इस केस में आरोपी हैं, निचली अदालत ने ईडी की चार्जशीट पर अदालत ने केस की मेरिट पर विचार ही नहीं किया है बल्कि तकनीकी आधार पर निर्णय दिया. कोर्ट ने कहा कि किसी निजी व्यक्ति की शिकायत पर यह जांच की गई है जबकि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के कार्य क्षेत्र में पीएमएलए के तहत जांच तभी हो सकती है जब पुलिस या दूसरी एजेंसी द्वारा जांच के बाद इसे ईडी को भेजा गया हो.
यह अजूबा ही है कि अदालत के आदेश पर ही जांच शुरू हुई, केस के आरोपी जांच के कोर्ट के ऑर्डर के खिलाफ ऊपरी अदालत में गए और हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट ने भी जांच को नहीं रोका. तभी तो सभी आरोपियों को जमानत लेनी पड़ी. इसका मतलब है कि उस समय सभी अदालतों ने इस केस की जांच प्रवर्तन निदेशालय से किए जाने को सही माना था.
केस में दोनों नेताओं से पूछताछ भी हुई थी. कांग्रेस ने इसके खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर धरना प्रदर्शन भी किया था. यह नहीं माना जा सकता कि सरकार और कांग्रेस के विधि विशेषज्ञों को इस बात का आभास नहीं था कि जांच की पूरी प्रक्रिया गलत आधार पर चल रही है.
जांच प्रारंभ होने के समय से ही इस केस का राजनीतिक उपयोग हो रहा है. जब भी सोनिया और राहुल गांधी को भ्रष्टाचार के आरोपों में कटघरे में खड़ा करना होता था, तब बीजेपी द्वारा हर स्तर पर इस केस का उल्लेख किया जाता रहा है. इसमें बेल लेने को भी सोनिया राहुल के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के सबूत के रूप में पेश किया जाता रहा.
राहुल गांधी सहित विपक्ष के सभी नेता पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी सरकार पर यही आरोप लगाते रहे हैं कि ईडी और सीबीआई का दुरूपयोग कर विपक्षी नेताओं को फंसाया जा रहा है. इसे लेकर विपक्षी दलों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल की गई थी, जिसे खारिज कर दिया गया था. अब केस में कोर्ट द्वारा संज्ञान न लेने के फैसले के खिलाफ ईडी ऊपरी अदालत में अपील करने की बात कह रही है.
कांग्रेस और बीजेपी के बीच राजनीतिक अदावत केवल विचारधारा की नहीं है बल्कि नीतियों और कार्यप्रणाली की भी है. कांग्रेस की यूपीए सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर ही बीजेपी ने बहुमत प्राप्त किया था. जो आरोप लगाए गए थे उनमें से अधिकांश अदालत में साबित नहीं किये जा सके.
राहुल गांधी और सोनिया गांधी के खिलाफ सबसे बड़ा मामला नेशनल हेराल्ड की संपत्तियों को हथियाने का है. लगभग दो हज़ार करोड़ की संपत्तियों को यंग इंडिया लिमिटेड को बहुत कम मूल्य पर हस्तांतरित कर वित्तीय अनियमितता और धोखाधड़ी का आरोप है. नेशनल हेराल्ड की संपत्तियों को ईडी द्वारा जब्त भी किया गया है.
कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करने के बाद संभवत ईडी को यह आभास हो गया था कि उसकी जांच का आधार कानूनी रूप से गलत है. इसीलिए ईडी ने मामले की जानकारी दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा EOW को दी. निश्चित रूप से जब ईडी ने ही जांच के सारे तथ्य EOW को उपलब्ध कराए हैं तो फिर इस एजेंसी में भी इसी तरह की चार्जशीट सामने आएगी.
देश का यह क्लासिक केस है जिसमें देश के सर्वोच्च नेता फंसे हुए हैं. फिर भी इसका आधार ही गलत होता है. कांग्रेस का तो यही आरोप है कि मोदी सरकार राहुल गांधी और सोनिया गांधी को जानबूझकर फंसाना चाहती है. अब तो ऐसा लगने लगा है कि फंसाना नहीं बल्कि जांच एजेंसी इन दोनों नेताओं को बचाना चाहती है.
अगर सही प्रक्रिया में इस केस की जांच की गई होती तो अभी तक इसका फैसला आ गया होता. आरोपियों को जेल जाना पड़ता. जब राहुल और सोनिया को इस तरह की परिस्थितियों से गुजरना पड़ता तो फिर उनकी राजनीतिक इमेज धूल धूसरित हो जाती. जब नेतृत्व के लेवल पर ही कांग्रेस कमजोर हो जाती तो फिर जमीन पर तो उसकी स्थिति वर्तमान से भी बदतर हो सकती थी.
राहुल और सोनिया गांधी के रहते हुए ही कांग्रेस को पराजय मिली है. एक बार नहीं बल्कि तीन बार केंद्र में बीजेपी सरकार बनाने में सफल हुई है. चुटीले अंदाज में तो यह भी कहा जाता रहा है कि बीजेपी को अपने कार्यकर्ताओं का आभार व्यक्त करने के साथ ही राहुल गांधी का भी धन्यवाद करना चाहिए.
बीजेपी की जीत में जितनी उसकी सकारात्मक भूमिका है राहुल गांधी की राजनीतिक नकारात्मकता भी बीजेपी को उतना लाभ पहुंचाती है. बीजेपी और कांग्रेस का जहां सीधा मुकाबला होता है वहां कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ती है. जिन चुनावों में कांग्रेस जीतती हुई दिखती है वहां भी नेताओं की छवि और बयानों के कारण विपरीत परिणाम आते हैं.
नेशनल हेराल्ड केस में ईडी की जांच और उसकी चार्जशीट पर संज्ञान नहीं लेना देश की न्यायिक प्रणाली पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है. यह तो न्यायिक व्यवस्था का मजाक जैसा ही है.
कांग्रेस इसे अपनी जीत बता रही है. जब राहत मिली है तब सत्य जीता है और जब खिलाफ फैसला आएगा तब कोर्ट को कम्प्रोमाइज्ड बताया जाएगा.