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चाँद के बाद, अब सूरज की बारी 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 03 Oct

सार

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतारकर अंतरिक्ष की दुनिया में इतिहास रच दिया..!

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विस्तार

अब सूरज की बारी है,यह भारत की तैयारी है। भारत के वैज्ञानिकों का यह ताज़ा संकल्प है, चाँद पर अवरोहण से पूरा देश उत्साहित है, भारत ने विश्व गुरु बनने की दिशा में बीते कल बड़ी छलांग लगाते हुए चांद के उस हिस्से पर राष्ट्रीय ध्वज लहरा दिया जहां आज तक कोई भी देश नहीं पहुंच सका था। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतारकर अंतरिक्ष की दुनिया में इतिहास रच दिया। 

देश ने धरती पर सपना देखा और चांद पर साकार किया, अब सूरज की बारी है । कुछ दिन पहले रूस ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने की कोशिश की थी लेकिन उसका लूना-25 अंतरिक्ष यान चांद की सतह से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। ऐसे में भारत के चंद्रयान-3 मिशन की अहमियत और बढ़ गई थी। समूचे विश्व की निगाह इस मिशन पर थी। चंद्रयान-3 की सफलता के लिए देश के कोने-कोने में कल सुबह से पूजा, प्रार्थना और इबादत के दौर की शुरूआत हो गयी थी।

इसरो के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान -3 को चांद की ऐसी सतह पर उतरा है जो मुश्किलों की जाल से घिरी है। सबसे बड़ी चुनौती यहां का अंधेरा था। यहां पर लैंडर बिक्रम को उतारना काफी मुश्किल था क्योंकि चांद पर पृथ्वी की तरह वायुमंडल नहीं है। हमारे वैज्ञानिकों ने पुरानी गलतियों से बड़ी सबक लेते हुए चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर ‘प्रज्ञान’ को चांद के उस आगोश में पहुंचाकर सांस ली, जहां से कई खगोलीय रहस्यों का परत-दर परत खुलेगा।

चंद्रयान -3 के रोवर में चंद्रमा की सतह से संबंधित डेटा प्रदान करने के लिए पेलोड के साथ संयोजित की गयी मशीनें लगी हैं। यह चंद्रमा के वायुमंडल की मौलिक संरचना पर डेटा एकत्र करेगा और लैंडर को डेटा भेजेगा। लैंडर पर तीन पेलोड्स हैं। उनका काम चांद की प्‍लाज्‍मा डेंसिटी, थर्मल प्रॉपर्टीज और लैंडिंग साइट के आसपास की सीस्मिसिटी मापना है ताकि चांद के क्रस्ट और मैंटल के स्‍ट्रक्‍चर का सही-सही पता लग सके। एक चांद की सतह पर प्लाज्मा (आयन्स और इलेट्रॉन्स) के बारे में जानकारी हासिल करेगा। दूसरा चांद की सतह की तापीय गुणों के बारे में अध्ययन करेगा और तीसरा चांद की परत के बारे में जानकारी जुटाएगा। इसके अलावा चांद पर भूकंप कब और कैसे आता है इसका भी पता लगाया जाएगा।

वैसे भारत ने सितंबर 2019 में इसरो के माध्यम से चंद्रयान-2 को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने की कोशिश की थी, लेकिन तब लैंडर की हार्ड लैंडिंग हो गई थी। पिछली गलतियों से सबक लेकर चंद्रयान-3 को ‘जीत’ के लिए ही तैयार किया गया था। चांद का दक्षिणी ध्रुव भी पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव की तरह ही है। पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका में है जो धरती का सबसे ठंडा इलाका है। इसी तरह चांद का दक्षिणी ध्रुव अपनी सतह का सबसे ठंडा क्षेत्र है। चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अगर कोई अंतरिक्ष यात्री खड़ा होगा, तो उसे सूर्य क्षितिज की रेखा पर नजर आएगा। वह चांद की सतह से लगता हुआ और चमकता नजर आएगा।इस इलाके का ज्यादातर हिस्सा छाया में रहता है, क्योंकि सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं जिससे यहां तापमान कम होता है।

कहते हैं,चांद का दक्षिणी ध्रुव काफी रहस्यमयी है। विश्व अब तक इससे अनजान है। हम जानते हैं कि दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ है और वहां दूसरे प्राकृतिक संसाधन भी हो सकते हैं। ये हालांकि अब तक अनजान दुनिया ही है।” दक्षिणी ध्रुव के कई क्रेटर्स पर कभी रोशनी पड़ी ही नहीं और वहां का ज्यादातर हिस्सा छाया में ही रहता है, इसलिए वहां बर्फ होने की कहीं ज्यादा संभावना है। ऐसा भी अंदाजा है कि यहां जमा पानी अरबों साल पुराना हो सकता है। इससे सौरमंडल के बारे में काफी अहम जानकारियां हासिल करने में मदद मिल सकेगीं। पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों से मिली बर्फ से पता चला है कि हमारे ग्रह की जलवायु और वातावरण हजारों साल में किस तरह से विकसित हुई है। अगले अभियान की दिशा सूरज है, जिसे प्रकाश और ऊर्जा का केंद्र कहा जाता प्रकृति के कुछ और नए रहस्य खोलेगा।