सरकार भी यह मानती है कि पडौसी देश चीन से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है |सरकार ने एक साल के अंतराल के उपरांत एक बार फिर चीन से जुड़े एप्स पर लगाम लगायी है। यह कदम सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये उभरते खतरे और डेटा गोपनीयता की चिंताओं के मद्देनजर उठाया है। चीन से संबंध रखने वाले इन ५४ एप्स पर रोक लगाने के बाद गूगल और एप्पल ने इन एप्स को अपने प्ले स्टोर्स से अस्थायी रूप से हटा भी दिया है।
18/02/2022
-राकेश दुबे
यह एक दमदार आरोप ही नहीं है, बल्कि सरकार के पास पुष्ट प्रमाण भी है कि ये एप्स उपयोगकर्ताओं की महत्वपूर्ण सूचनाएं और संवेदनशील जानकारी जुटाकर चीन स्थित सर्वरों को भेज रहे थे। इतना ही नहीं, जिन एप्स को पिछले साल प्रतिबंधित किया गया था, वे नाम बदलकर फिर से सक्रिय कर दिये गये थे। यह कदम ऐसे वक्त में उठाया गया है जब लद्दाख में करीब दो साल से जारी टकराव के बावजूद चीन के आर्थिक हितों को नियंत्रित करने के भारत के प्रयास सार्थक होते नजर नहीं आते। तमाम कूटनीति व सैन्य टकराव के तेवरों के बावजूद चीन के कारोबार में लगातार वृद्धि नीति-नियंताओं के लिये चिंता का विषय होना चाहिए।
भारत आज भी चीन से होने वाले आयात पर बहुत अधिक निर्भर है। इस पड़ोसी देश से भारत का व्यापार घाटा २०२१ में बढ़कर ६९.४ अरब डॉलर हो गया है। यह घाटा वर्ष २०२० में ४५.९ अरब डॉलर तथा वर्ष २०१९ में ५६.८ अरब डॉलर था। इतना ही नहीं, चीन के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार पिछले साल ४४ प्रतिशत बढ़ा है, क्योंकि आयात में रिकॉर्ड में ४६ प्रतिशत की वृद्धि हुई। वहीं निर्यात में ३५ प्रतिशत की बढ़ोतरी के आंकड़े चीन के साथ कारोबार में बढ़त को दर्शाते हैं। यही वजह है कि अमेरिका के बाद चीन भारत का दूसरा बड़ा व्यापारिक साझेदार है। जून २०२० में गलवान घाटी में चीनी सेना के साथ हुए संघर्ष के बाद भारत ने चीनी कंपनियों के ऐप्स को ब्लॉक करना तथा प्रतिबंधित करना प्रारंभ किया था। तब राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये मोबाइल एप्लिकेशन पर प्रतिबंध लगाने पर चीन ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी।
सीमा पर दादागीरी करने के बावजूद चीन ये मुगालता पाले बैठा था कि दुनिया के अन्य देशों के बाजार के खिलाड़ियों की तरह चीन को भी भारत में खुला खेल खेलने का मौका दिया जाता रहेगा। यहां तक कि वह विश्व व्यापार संगठन के नियमों की दुहाई देते हुए भारत पर भेदभाव के आरोप लगाता रहा है। चीन के प्रमुख व्यापार साझेदारों आसियान, यूरोपीय संघ व अमेरिका की तुलना में भारत का कारोबार काफी कम है, लेकिन इसके बावजूद चीन भारत के बड़े बाजार को देखते हुए अपने पांव पसारने के लिये हमेशा आतुर रहा है, ताकि वह अपने अधिकतम लाभ के लक्ष्यों को हासिल कर सके।
हुआ कुछ ऐसा है कि रणनीतिक रूप से चीन सीमा विवाद और व्यापारिक संबंधों को अलग करने में किसी हद तक सफल रहा है। दलील दी जाती रही है कि दोनों मुद्दे विभाजित नहीं किये जा सकते क्योंकि भारत के आयात गहन क्षेत्रों में हैं और भू-आर्थिक वास्तविकताओं से अलग हैं।इसके साथ ही यह भी हकीकत है कि चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगाने से ड्रैगन के आर्थिक कारोबार पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला क्योंकि अन्य आर्थिक क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य हासिल करने में लंबा वक्त लगेगा। वास्तव में भारत को बीजिंग पर अपनी आर्थिक निर्भरता कम करने के लिये व्यावहारिक व दीर्घकालिक विकल्पों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। केंद्र सरकार को चाहिए कि भारतीय बाजार को चीनी सामान का डंपिंग ग्राउंड बनाने से रोकने के लिये सख्त नियमों को लागू करे।
यह ठीक है कि देश की सुरक्षा व डेटा गोपनीयता के चलते पहले चरण में 267और दूसरे चरण में 54 एप्स को प्रतिबंधित करके चीन को भारत ने भारतीय संप्रभुता का अहसास कराया गया है, लेकिन चीन के आर्थिक मंसूबों पर पानी फेरने के लिये अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। गाहे-बगाहे अड़ियल रवैया अपनाने तथा सीमा पर टकराव व छल प्रपंच करने वाले चीन को सबक सिखाने के लिये बड़ी आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक की जरूरत है। इस यज्ञ में आम भारतीय के राष्ट्रीयता के अहसास जगाकर आहुति देने की जरूरत भी है, इस आहुति की शुरुआत चीन पर निर्भरता समाप्ति से हो सकती है |