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नायक रहें, अंधभक्ति ठीक नहीं 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Fri , 07 May

सार

मनुष्य की प्रवृत्ति है कि वह समान विचारधारा, समान सोच और समझ वाले व्यक्ति से तुरंत प्रभावित हो उठता है।

janmat

विस्तार

प्रत्येक व्यक्ति का विचार, उसकी सोच, उसका मन और बोलने का लहजा दूसरों से भिन्न होता है। बहुतों में विचारों की साम्यता हो सकती है,परंतु हूबहू, वही विचार, वैसी ही सोच, भावनाएं शायद ही किसी की दूसरे से मिलती हों। जैसे हाथ की पांच उंगलियां एक ही हथेली में होने के बावजूद, वे एक-दूसरी से अलग हैं। उनके काम अलग-अलग हैं। उनके भाव, उनके रूप-गुण, इशारा-संकेत अलग-अलग होते हैं। बेशक वे एक ही हथेली से जुड़ी होती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि एक हाथ की उंगलियों की भी अपनी भिन्न क्रियाएं और विशेषताएं होती हैं।

परंतु उंगलियां जब जुड़, बंध जाती हैं, तो वे एक होकर ताकत से भर उठती हैं। बंद मुठठी  को देख सामने वाला कोई तारीफ करता है, तो कोई घबरा जाता है। यह बंद  की वि मुठठी  शेषता है। ऐसी ही विशेषता मनुष्यों के विचारों के संबंध में हैं। जिनके विचार एक-दूसरे से बेशक कुछ भिन्न हों, परंतु बहुत अधिक साम्यता हो, तो उनमें अपनापन एवं एकता की भावना का होना स्वाभाविक है। उनमें आपस में मित्रता, प्रेम भाव, निकटता एवं एक-दूसरे के लिए आदर भाव होना अस्वाभाविक नहीं है। 

यह मनुष्य की प्रवृत्ति है कि वह समान विचारधारा, समान सोच और समझ वाले व्यक्ति से तुरंत प्रभावित हो उठता है। उससे शीघ्र ही घुलमिल जाता है। न केवल घुल-मिल जाता है, बल्कि एक-दूसरे का आदर- मान, स्नेह-प्रेम, आकर्षण-खिंचाव, नजदीकी-निकटता में बंधता-बिंधता जाता है। ये समभाव इतने प्रबल हो उठते हैं कि वह उसे अपने से अलग मानने को तैयार नहीं होता है।

इसे विचारों की समानता, बुद्धि की साम्यता अथवा सोच की परिपक्वता कह सकते हैं। ऐसे मनोनुकूल विचारों वाले व्यक्ति की गतिविधियों, कार्यों एवं चारित्रिक गुणों से उसके प्रशंसक तुरंत प्रभावित हो उठते हैं। वे उसके विरुद्ध कुछ भी सुनने, जानने को तैयार नहीं होते हैं। अपनी विशेष उपलब्धियों, कार्यों के कारण वह सामान्य से विशेष व्यक्ति के तौर पर प्रतिष्ठित हो जाता है। वह समाज में, क्षेत्र में, देश में, विदेश में अर्थात सब जगह ख्याति प्राप्त कर लेता है। वह एक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय व्यक्तित्व के तौर पर उभर आता है।

एक सार्वजनिक व्यक्तित्व (पब्लिक फिगर) बन जाता है। ऐसे विशेष व्यक्ति से हर कोई अपनापन, अधिकार, आदर-मान जताने लगता है। तब उस व्यक्ति विशेष के अपने निजी विचार, भावनाएं, समाज, धर्म, जाति आदि गौण हो जाते हैं। वह धर्म, जाति, समाज, संस्कार से ऊपर उठ जाता है। ऐसा व्यक्ति सबके लिए सम्माननीय, श्रद्धेय एवं नायक के रूप में दिल-दिमाग, कार्य-व्यवहार, भाषा-बोली में एक दीप स्तंभ की तरह सबके दिलों में स्थान बना लेता है। 

जब कभी सभी के दिलों में राज करने, बसने वाला वह विख्यात व्यक्ति अथवा मशहूर हस्ती जब एक क्षेत्र विशेष, पार्टी विशेष, विचार विशेष, धर्म विशेष,जाति विशेष, व्यक्ति विशेष इत्यादि के लिए गुणगान करने लगता है, अपनी भावनाएं उस विशेष वर्ग के प्रति व्यक्त करने लगता है, तब वह उसके चाहने वाले लाखों-करोड़ों लोगों के दिलों से उतर जाता है। न केवल दिल से उतर जाता है, बल्कि उनकी नजरों से गिर जाता है। करोड़ों लोगों के लिए वह जैसे मर जाता है। ऐसे एकतरफा अथवा एक पक्षीय विचारों के कारण सामान्य जन समूह में, समाज में, देश में, प्रशंसकों में उसकी जो नायक, देव छवि स्थापित हुई होती है, वह खंडित हो जाती है।

जब वह किसी विशेष राजनीतिक पार्टी अथवा धर्म, जाति, वर्ग की ही प्रशंसा करने लगे, तथा अन्य राजनीतिक दलों, धर्म, जाति, संप्रदाय, क्षेत्र के विरुद्ध बोलने लगता है. तब वह नैतिक रूप से अन्य विचाधारा वाले व्यक्तियों, धर्म, जाति, संप्रदाय के लिए जैसे मर जाता है। ऐसे में वह प्रसिद्ध व्यक्ति अथवा मशहूर शख्सियत केवल उसकी चहेता पार्टी या धर्म, जाति इत्यादि तक ही सिमट कर रह जाता है। शुरुआत में जैसे उल्लेख किया गया है, हर व्यक्ति का अपना निजी विचार होता है। अलग दृष्टिकोण, अलग भावनाएं होती हैं। जरूरी नहीं है कि उसके विचार, उसकी भावनाएं सबको भाए।

लेकिन ऐसे किसी भी लोकप्रिय यानी पब्लिक फिगर व्यक्तित्व को सार्वजनिक रूप से किसी राजनीतिक दल, धर्म, जाति, वर्ग, क्षेत्र, भाषा, बोली के विरुद्ध अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं करनी चाहिए। यदि वह ऐसा करता है, और केवल अपने चहेते दल या धर्म, जाति की तरफदारी करने लगता है, तो उसका करोड़ों लोगों की नजरों से गिर जाना स्वाभाविक है।

जो लोग कल तक उसके एक पक्षीय विचारों, भावनाओं से अनभिज्ञ थे, उसके विचारों को जानकर उससे घृणा करने लगते हैं। हमारे देश में व्यक्ति पूजा की भावना बहुत बलवती है। ऐसी मशहूर हस्तियों को अपने विचारों का सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। किसी दल, जाति, धर्म, संप्रदाय या वर्ग विशेष के विरुद्ध नहीं बोलना चाहिए।