मप्र काबीना विस्तार..!!
अपनी शपथ के साथ राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा की उपमुख्यमं बतौर शपथ कराने के बाद सूबे के नए नवेले मुख्यमंत्री मोहन यादव ने एक बात तो साफ कर दी है। वो यह कि एकला चलो के प्रयोग के बजाए सामूहिक नेतृत्व के आधार पर चलने के 2023 के विधानसभा चुनाव के कामयाब प्रयोग को लोकसभा चुनाव के दौरान भी जारी रखा जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की अगुआई में यादव सहित प्रदेश के तमाम दिग्गज यानि नरेंद्र सिंह तोमर से लेकर कैलाश विजयवर्गीय और ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर प्रहलाद पटैल और राजेंद्र शुक्ल सहित सभी दिग्गज एकजुट होकर इस बार सूबे की सभी 29 लोकसभा सीटों को जीतने के जतन में जुटेंगे।
अपनी मोहिनी कला की नुमाइश के साथ वे भोपाल से लेकर दिल्ली तक सभी को साधकर चल रहे हैं। इसी के चलते 31 सदस्यीय काबीना के तानेबाने को बुना गया है। इसमें पुराने दिग्गजों के साथ ही नए चेहरों पर दांव खेलने के साथ राहुल गांधी के पिछड़ा वर्ग की जनगणना के राग से लेकर महिलाओं की नुमाइंदगी का पूरा ख्याल रखा गया है। तो आदिवासी और दलित कार्ड पर भी पूरा फोकस रखा गया है। ब्राह्मण बाहुल्य विंध्य में उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला पर फोकस रखा गया है तो ग्वालियर चंबल के पंडितों को साधने के लिए राकेश शुक्ला के चेहरे को आगे रखा गया है। ग्वालियर के क्षत्रिय समुदाय के लिए प्रध्युम्न सिंह तोमर तो मालवा में इंदर सिंह परमार और बुंदेलखंड में गोविंद राजपूत पर दांव खेला गया है।
पिछड़ों की बात करें तो मोहन यादव के साथ कृष्णा गौर मप्र से लेकर यूपी और बिहार के यादव समाज को यह संदेश देने का काम करेंगे कि भाजपा इस समाज से परहेज नहीं करती है। कमोबेश यही संदेश प्रहलाद पटैल से लेकर प्रताप लोधी को शरीक करके सूबे के साथ यूपी के लोध समाज में देने की कोशिश होगी। राकेश सिंह का भी मप्र के साथ यूपी में उपयोग होगा। इसी तरह ग्वालियर चंबल के गूर्जर और काछी कुशवाहा समाज के जरिए यूपी में भी साधने की कोशिश होगी। राव उदय प्रताप सिंह को लेकर जाट समाज, लखन पटेल के जरिए कुर्मी समाज, विश्वास सारंग के जरिए कायस्थ वर्ग, करण सिंह वर्मा को लेकर खाती समाज, दिलीप जायसवाल के जरिए कलार समाज तो नारायण सिंह पवार के जरिए सोंधिया, और नरेश शिवाजी पटेल को काबीना में जगह देकर किरार समाज को साधने की कोशिश की गई है।
अनुसूचित जाति की बात की जाए तो उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा से लेकर तुलसी सिलावट सरीखे दिग्गज नेता के साथ ही दलित समाज के कोटे से दिलीप अहिरवार, गौतम टेटवाल और प्रतिमा बागरी को शरीक किया गया है। वहीं आदिवासी समाज की बात करें तो कद्दावर नेता विजय शाह से लेकर संपतिया उईके, नागर सिंह चौहान, निर्मला भूरिया और राधा सिंह तक लंबी सूची है जिसमें दलितों की तरह आदिवासी वर्ग के उपवर्गों को जगह दी गई है। मोहन यादव की काबीना में यदि कोई समाज छूटा है तो उसमें प्रभावशाली दांगी और रघुवंशी समाज का प्रतिनिधित्व शामिल है, जिसने विधानसभा चुनावों में भाजपा का भरपूर साथ दिया। दांगी समाज में मंत्री भूपेंद्र सिंह और हजारी लाल दांगी तथा रघुवंशी समाज से जगन्नाथ रघुवंशी और हरीसिंह रघुवंशी का विकल्प भाजपा के सामने था।
बावजूद इसके व्यापक तौर पर जातिगत समीकरण बिठाने के साथ ही भाजपा के सामने राम मंदिर के जरिए देश के हिंदु समाज में सनातनी भाव भरने से लेकर कश्मीर में बढ़ रही आतंकी घनाओं के खिलाफ सख्त एक्शन जैसे विकल्प भी हैं जो उसे लोकसभा में मोदी की हेट्रिक की राह प्रशस्त करेंगे। जहां तक मध्यप्रदेश की बात है तो विधानसभा में करारी हार के बाद कमलनाथ और दिग्विजय को मुख्य भूमिका हटाकर जीतू पटवारी और उमंग सिंघार जैसे युवा चेहरों को राहुल गांधी ने आगे किया है। लेकिन सवाल यही है कि इतने कम वक्त में कमलनाथ के कारपोरेट कल्चर से कांग्रेस को मुक्त करके जीतू युवाओं के सहारे प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के सामने कोई चुनौती खड़ी कर सकेंगे? राह कठिन जरूर लगती है लेकिन ठान लो तो मुश्किल कुछ भी नहीं है।