भाजपा शासित हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है और गुजरात में भी जल्द ही चुनाव घोषित हो जाएंगे। लोकसभा चुनाव के पहले मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ तेलंगाना, कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होना है। गुजरात और हिमाचल के अलावा जिन राज्यों में लोकसभा चुनाव से पहले चुनाव होना है वहां छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में विपक्ष की सरकार हैं। कर्नाटक और मध्यप्रदेश में ही भाजपा की सरकार है।
इससे पहले पांच राज्यों उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड.पंजाब, गोवा और मणिपुर में चुनाव हुए थे। पंजाब को छोड़कर चारों राज्यों में बीजेपी ने सरकार बनाई थी। इन राज्यों में बीजेपी ने उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में चुनाव का ऐलान किया था। बाकी राज्यों में बीजेपी के मुख्यमंत्री होने के बावजूद चुनाव उनके चेहरे पर नहीं लड़े गए थे। यह अलग बात है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी को चुनाव हारने के बाद भी फिर से मुख्यमंत्री बनाया गया है। गोवा और मणिपुर में भी पुराने मुख्यमंत्री ही फिर से बनाए गए ।
हिमाचल प्रदेश में भी मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा जा रहा है। गुजरात में भी बीजेपी की यही रणनीति है। इन दोनों राज्यों में चुनाव केम्पेन के केंद्र में नरेंद्र मोदी ही हैं। यहां तक कि पार्टी की ओर से निकाली जा रही गौरव यात्रा में भी मोदी पर ही फोकस किया गया है। गुजरात में तो मोदी और गुजराती अस्मिता से देश और दुनिया में बढ़े गुजरात के गौरव को भी विधानसभा चुनाव में भुनाने की पूरी कोशिश की जा रही है।
छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश में 2023 के आखिरी में चुनाव होने की संभावना है। इन राज्यों में चुनावी रणनीतियों का खाका तैयार किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह लगातार मध्यप्रदेश के दौरे पर आकर पार्टी की रणनीतियों को धार दे रहे हैं। मोदी और शाह के दौरों में सियासी गणित देखी जा सकती है।
नरेंद्र मोदी 11 अक्टूबर को उज्जैन में महाकाल लोक के लोकार्पण में आए थे। इससे पहले वे कूनो में अफ्रीका से लाये चीतों को छोड़ने भी मध्यप्रदेश आ चुके हैं। वहीं अमित शाह ने कल भोपाल और ग्वालियर में महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। मेडिकल की शिक्षा हिंदी में करने की ऐतिहासिक शुरुआत उनकी मौजूदगी में भोपाल से की गई। अमित शाह ने इस कार्यक्रम में पुस्तकों का विमोचन किया है। ग्वालियर में जनसभा को संबोधित करते हुए अमित शाह ने मध्यप्रदेश के 2023 के चुनाव की रणनीति का इशारा किया है।
जनसभा को संबोधित करते हुए अमित शाह ने कहा कि अगले साल पीएम मोदी पर भरोसा कर प्रदेश में भाजपा को ही जिताना है। अगला विधानसभा चुनाव मध्यप्रदेश के किसी नेता के चेहरे पर फोकस करने की बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर फोकस किया जाएगा। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तो बीजेपी सरकार में नहीं है। इसलिए वहां तो नेतृत्व का कोई प्रश्न नहीं है लेकिन जिन राज्यों में बीजेपी सरकार है और बीजेपी के मुख्यमंत्री हैं उन राज्यों में भी पार्टी मोदी के चेहरे को प्राथमिकता देने की तरफ आगे बढ़ रही है।
बीजेपी में मोदी एक अकेला चेहरा है जिस पर पूरे देश में पार्टी को व्यापक समर्थन मिलता दिखाई दे रहा है। राज्यों के स्तर पर मुख्यमंत्रियों के विरुद्ध एंटी इनकंबेंसी का फैक्टर दिखाई पड़ रहा है। मध्यप्रदेश में तो 2018 में भी राज्य स्तर पर एंटी इनकंबेंसी के कारण कांग्रेस की सरकार बन गई थी। कांग्रेस में बगावत के बाद शिवराज सिंह के नेतृत्व में मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार काम कर रही है लेकिन पार्टी अगले चुनाव में फिर से राज्य नेतृत्व पर भरोसा करने के बजाय मोदी को ही सबसे विश्वसनीय चेहरा मान रही है। मोदी के चेहरे पर प्रदेश में चुनाव जीतना बीजेपी के लिए आसान साबित हो सकता है।
अभी तक जितने भी चुनावी सर्वे आए हैं उनमें भी यही नतीजे दिखाए जा रहे हैं। इन सर्वों के मुताबिक़ में मोदी की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। राज्यों में मोदी का चेहरा सामने रखने का एक और कारण हो सकता है कि राज्य स्तर पर चुनाव के पहले नेतृत्व के नाम पर नेताओं के बीच मतभेद को रोका जा सके। पार्टी में एकजुटता जीत के लिए बहुत जरूरी है जिन राज्यों में नेतृत्व बदलना जरूरी समझा गया वहां पहले से ही नेतृत्व बदल दिया गया है। गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन पार्टी की इसी रणनीति का हिस्सा था।
अब जिन राज्यों में चुनाव होना है उनमें केवल दो राज्य कर्नाटक और मध्यप्रदेश ही हैं हैं जहां मुख्यमंत्री बीजेपी के हैं। कर्नाटक में तो येदियुरप्पा को बदलकर बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया है। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान बीजेपी के मुख्यमंत्री हैं और लगभग 15 सालों से मुख्यमंत्री का पद संभाले हुए हैं। मुख्यमंत्री के रूप में उनका कामकाज संतोषजनक माना जा सकता है। इसके बावजूद शासन में एंटी इनकंबेंसी एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जिसका असर मध्यप्रदेश में भी देखा जा सकता है।
मध्यप्रदेश में बीजेपी का कांग्रेस से कड़ा मुकाबला माना जा सकता है। कमलनाथ कांग्रेस के अनुभवी और वरिष्ठ नेता हैं, उनको ऐसा लगता है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस के लिए बहुत अच्छी संभावनाएं हैं। एंटी इनकंबेंसी के चलते कांग्रेस की जीत को कांग्रेस के कार्यकर्ता भी स्वाभाविक देख रहे हैं। कांग्रेस के लोग अपना तर्क देते हुए कहते हैं कि कमलनाथ भोपाल छोड़ के इसीलिए दिल्ली नहीं जा रहे हैं क्योंकि उन्हें लग रहा है कि अगले चुनाव में पार्टी मध्य प्रदेश में सरकार बनाने में सफल हो सकती है।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस को सरकार में आने से रोकना मोदी और शाह की पहली प्राथमिकता होगी। 2024 के लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश से सभी सीटें जीतना उनका टारगेट है। इसके लिए 2023 में प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनाना उनका लक्ष्य हो सकता है। अब शिवराज और सिंधिया की जोड़ी के लिए 2023 का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। इन दोनों की जोड़ी यदि मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार बनाने में सफल नहीं होती है तो दोनों नेताओं के लिए यह दूरगामी राजनीतिक झटका माना जाएगा।
सिंधिया बीजेपी के लिए उपयोगी तभी साबित होंगे जब 2023 में फिर से बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब हो सके। कांग्रेस का मुकाबला सिंधिया और शिवराज के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा है। नगरीय निकाय के चुनाव में कांग्रेस ग्वालियर-चंबल में बीजेपी को झटका देने में सफल साबित हुई है। मोदी के चेहरे पर अगला विधानसभा चुनाव लड़ने की रणनीति इसीलिए बनाई गई है क्योंकि नेतृत्व का विवाद ना पैदा हो सके।
मध्यप्रदेश में अभी तक मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही होता रहा है। अब तीसरे दल के रूप में आम आदमी पार्टी की एंट्री अगले चुनाव में हो सकती है। हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनाव परिणाम भी मध्यप्रदेश पर असर डाल सकते हैं। अभी तक जो संकेत आ रहे हैं उनके मुताबिक इन दोनों राज्यों में बीजेपी की स्थिति बेहतर लग रही है। आम आदमी पार्टी दोनों राज्यों में मुकाबले को त्रिकोणीय करने का प्रयास कर रही है।
गुजरात में तो ऐसा दिखाई पड़ रहा है कि जैसे मुकाबला बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच में है। कांग्रेस मुकाबले में पिछड़ती दिखाई पड़ रही है। राजनीतिक प्रेक्षकों का ऐसा अनुमान है कि आम आदमी पार्टी इन दोनों राज्यों में कोई बहुत अधिक सीटें जीतने में सफल नहीं होगी लेकिन दूसरे नंबर पर जो भी पार्टी आएगी उसे काफी नुकसान पहुंचा सकती है। जो पार्टी जीत की तरफ अग्रसर होगी उसे आम आदमी पार्टी का लाभ होगा और जो पिछड़ेगी उसे नुकसान होगा।
पंजाब और दिल्ली को यदि देखा जाए तो आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के जनाधार को ही कब्जाया है। ऐसी हालत में दोनों राज्यों में बीजेपी को इससे फायदा हो सकता है। गुजरात और हिमाचल के चुनाव परिणामों के बाद लगभग 10 महीने का समय मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव में बचेगा। बीजेपी इसके बाद फिर इन राज्यों में अपनी चुनावी रणनीति का ऐलान करेगी लेकिन यह तो लगभग तय हो गया है कि राज्य स्तर पर किसी भी चेहरे को आगे करने के बजाय चुनाव नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा।