क्या विद्यार्थी, क्या शिक्षक और क्या अभिभावक, सभी हो रहे ऊब-डूब..!!
भारत जहां शिक्षा को पवित्र दान की संज्ञा दी जाती रही है, सरकार की उपेक्षा के कारण ऐसा कुछ हो रहा है कि शिक्षा जगत में कोहराम मचा है। कोहराम का क्षेत्र है- एड-टेक, यानी ऑनलाइन शिक्षा की दुनिया ! एजुकेशन का ‘एड’ और टेक्नॉलॉजी का ‘टेक’। यहां भूचाल आया हुआ है- क्या विद्यार्थी, क्या शिक्षक और क्या अभिभावक, सभी ऊब-डूब हो रहे हैं। ऑनलाइन शिक्षा में क्रांति लाने वाली कंपनी ‘बायजूस’ दिवालिया हो गई है।
ऑनलाइन जगत के दो बड़े लोग संदीप माहेश्वरी और विवेक बिंद्रा के बीच तलवार खींची हुई है। विवेक बिंद्रा हजारों रुपए की फीस लेकर उद्योगपति बनने का गुर सिखाता ऑनलाइन कोर्स चलाते हैं। दूसरी तरफ संदीप माहेश्वरी हैं जो यूट्यूब पर ज्ञान बांटते हैं। इन दोनों को मिलाकर साढ़े चार करोड़ सब्सक्राइबर हैं। आपको याद ही होगा कि संदीप माहेश्वरी कभी विवेक बिंद्रा को अपने चैनल पर बुला-बुलाकर समाज में प्रतिष्ठित कर रहे थे। अब वे ही संदीप माहेश्वरी हमें बता रहे हैं कि विवेक बिंद्रा कितने बड़े धोखेबाज हैं!
वैसे बायजूस, संदीप और विवेक तीनों एक ही समस्या के कई चेहरे हैं। समस्या क्या है? एक अध्ययन के मुताबिक भारत में शिक्षा की उम्र के लगभग 24 करोड़ बच्चे हैं। 12वीं तक आते-आते इनकी संख्या 16 लाख रह जाती है और स्नातक तक यह संख्या घटकर 10 लाख तक पहुंचती है। उत्तरोत्तर घटती विद्यार्थियों की संख्या एक समस्या है तो दूसरी समस्या यह है कि भारत की शिक्षा व्यवस्था कमोबेश खत्म हो चुकी है। सरकारी स्कूल बंद किए जा रहे हैं, योग्य शिक्षक नहीं हैं। कोचिंग का बिजनेस जितना भी फल-फूल रहा हो, परीक्षाएं हो नहीं रहीं, पर्चे लीक हो रहे हैं।
प्रतिभावान और आर्थिक रूप से सक्षम नौजवान शिक्षा और रोजगार के लिए विदेश जा रहे हैं। जिनके लिए विदेश संभव नहीं है, वे सब प्रतियोगी परीक्षाओं और कोचिंग के चक्रव्यूह में फंसे हैं। बाकी रह गए बड़ी संख्या में नौजवान! वे कहां हैं, क्या करते हैं, कैसे जीते-मरते हैं, इसकी चर्चा कभी कहीं नहीं होती। ऐसे समय में सामने आए रवींद्रन बायजू! बायजू इंजीनियरिंग के प्रतिभावान छात्र थे। 2006 में अपने ही आसपास के कुछ युवाओं को उन्होंने पढ़ाना शुरू किया और फिर 2011 में ‘बायजूस’ नामक कंपनी शुरू की जिसका काम ही ऑनलाइन शिक्षा देना था। वे निवेशकों को यह समझाने में कामयाब हुए कि शिक्षा का उनका मॉडल देश की टूटी-बिखरी शिक्षा व्यवस्था में जरूरी क्रांति लाएगा।
तब उनका दावा था कि देश के दूरदराज इलाकों में, जहां न स्कूल हैं, न योग्य शिक्षक, शिक्षा पहुंचाने का काम उनका मॉडल ही कर सकता है। वे कहते थे : ‘सोचिए न, दुनिया का सबसे नौजवान देश भारत यदि अपने युवाओं को योग्य शिक्षा देने लगे तो विकास की दुनिया में कहां पहुंच जाएगा!’
रवींद्रन का यह सपना खूब बिका, देश-दुनिया के कई बड़े निवेशकों ने बायजूस की झोली में पैसा उड़ेल दिया। बायजूस क्लासेज तेजी से खुलने लगीं, बात फैलने लगी! कोविड के दौरान जब सब कुछ बंद था, बायजूस खुला रहा, खुलता रहा। उसका दानवाकार तैयार हो गया। किसी ने लिखा है न : ‘वक्त रहता नहीं कहीं टिककर’, तो बायजूस का वक्त भी कैसे टिका रहता! बताया गया कि जिस समय बायजूस की कमाई 3500 करोड़ थी, उसका घाटा 2250 करोड़ था। पिछले दिनों यह सच्चाई चर्चा में आई कि बायजूस का बिजनेस मॉडल इस कदर नुकसान कर रहा है कि रवींद्रन को अपना घर गिरवी रखना पड़ा है, लेकिन हमारी क्रांतिकारी सरकार लुटे-पिटे रवींद्रन-मॉडल की तरफ दौड़ रही है। उसका शिक्षा मॉडल यह है कि छोटे-छोटे स्कूलों को बंद करो, ऑनलाइन क्लास को खूब बढ़ावा दो! दूसरी तरफ हैं विवेक बिंद्रा, जो ऑनलाइन गुरु हैं।
नौजवानों को 10 दिन में एमबीए कराने का दावा करते हैं। प्रति माह लाखों कमाने की तरकीब सिखाते हैं। उनके ऑनलाइन कोर्स की फीस हजारों में है तो लाखों में उनके सब्सक्राइबर हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि विवेक बिंद्रा करोड़ों की कमाई करते हैं। संदीप माहेश्वरी को इससे गहरा एतराज है। वे बिंद्रा को एक्सपोज करने में जुटे हैं। कुल मिलाकर शिक्षा में उठापटक है, इस पर सरकार का चिंतन हो।