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कभी घर के रहे चिराग ने बताया पार्टी कैसे हुई बर्बाद?

सार

कांग्रेस में आज एक और विस्फोट हुआ है। कभी पार्टी के दारोमदार माने जाने वाले गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया है। पार्टी में यह विस्फोट ऐसे समय में हुआ है जब कांग्रेस की विरासत संभाल रहे गांधी परिवार का एक भी सदस्य भारत में नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, बेटे राहुल गांधी और बेटी प्रियंका गांधी के साथ विदेश गई हुई है।

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विस्तार

इस बार जिस शख्स ने पार्टी से अलविदा कहा है उसे ना तो अपरिपक्व कहा जा सकता है और ना ही दक्षिणपंथी कहकर नकारा जा सकता है। कांग्रेस अल्पसंख्यकों के जिस आधार पर अभी तक टिकी हुई है। गुलाम नबी आजाद उसी समुदाय से आते हैं। उन्हें गांधी परिवार का वफादार भी माना जाता रहा है। अपनी जवानी के दिनों से ही कांग्रेस से जुड़े गुलाम नबी आजाद गांधी परिवार की चार पीढ़ियों के साथ काम कर चुके हैं। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी की लीडरशिप में वे पार्टी और सरकार के विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं।

कांग्रेस में एक दौर था, जब कोई भी ऐसा निर्णय नहीं होता था जिसमें आजाद की भूमिका नहीं होती हो। कांग्रेस की लगभग हर समितियों में वे शामिल हुआ करते थे। राज्यों में कांग्रेस की सरकारों के गठन और पतन में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती रही है। कांग्रेस आज ऐसे दौर में पहुंच गई है कि गुलाम भी कांग्रेस से आजाद हो रहे हैं। सोनिया गांधी को भेजे अपने 5 पृष्ठों के इस्तीफे में गुलाम नबी आजाद ने पार्टी की बर्बादी के लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार बताया है। क्या इसे पीढ़ियों का टकराव माना जा सकता है? गुलाम नबी आजाद आज कांग्रेस पार्टी में जिस पोजीशन पर थे। उसे पिता तुल्य कहना अनुचित नहीं होगा। उम्र के इस पड़ाव पर पार्टी द्वारा उपेक्षा और असम्मान का भाव बड़े सवाल खड़े कर रहा है।

चाहे इसे परिवारवाद कहा जाए, चाहे पार्टी पर गांधी परिवार का कब्जा माना जाए, लेकिन अब यह तो लगभग निश्चित हो गया है कि गांधी परिवार के बिना पार्टी चलाने की क्षमता कांग्रेस में शायद नहीं बची है। राजनीति में शायद ऐसा सबसे ज्यादा होता है कि सत्ता पर काबिज नेता एक दूसरे को महान बताने की प्रतिस्पर्धा में लगे रहते हैं। सोनिया गांधी बीमार हैं, राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनना नहीं चाहते हैं ऐसा बताया जा रहा है।

गांधी परिवार इस बार किसी गैर गांधी व्यक्ति को कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर बिठाना चाहता है। इसके लिए अशोक गहलोत का नाम उछाला गया है। संगठन के चुनाव का ड्रामा व्यवस्थित तरीके से खेला जा रहा है। अभी भी कांग्रेसी इसी दावे पर अड़े हुए हैं कि राहुल गांधी को अध्यक्ष पद संभालने के लिए तैयार किया जाएगा। कांग्रेस में एक विचित्र स्थिति निर्मित हो गई है। जहां पार्टी संगठन या पार्टी की सरकारों में जो नेता महत्वपूर्ण पदों पर होते हैं वह तो गांधी परिवार के प्रति समर्पण के पराकाष्ठा का प्रदर्शन करते हैं। इसके अलावा जो नेता पदों पर नहीं है भले ही पार्टी में उनकी वरिष्ठता और महत्व कितना भी अधिक क्यों ना हो, वह सब निराशा के दौर से गुजर रहे हैं।

आजाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं जो पार्टी छोड़ रहे हैं। इसके पहले कई युवा नेताओं ने भी कांग्रेस से नाता तोड़ा है। चाहे मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया हो, उत्तर प्रदेश में जितिन प्रसाद या आरपीएन सिंह हो, यह सब राहुल गांधी के करीबी और युवा नेता रहे हैं। इसलिए यह कहना तो सही नहीं होगा कि राहुल गांधी और गुलाम नबी आजाद के बीच जो टकराहट दिख रही है वो पीढ़ीगत टकराहट है। ऐसा लगता है कि टकराहट कार्यशैली, सम्मान और हिस्सेदारी को लेकर है। गुलाम नबी आजाद ने मनमोहन सिंह कि सरकार के दौरान राहुल गांधी द्वारा सार्वजनिक रूप से विधेयक फाड़ने को बचकाना बताते हुए इसे कांग्रेस के पतन का बड़ा कारण बताया है।

गुलाम नबी आजाद ने भले ही पार्टी आज छोड़ी हो, लेकिन पार्टी संगठन को लेकर समय-समय पर वह अपना एतराज जताते रहे हैं। यहां तक की उनके नेतृत्व में असंतुष्ट नेताओं का एक जी-23 ग्रुप भी काम कर रहा था। गुलाम नबी आजाद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच संबंधों को लेकर भी तरह-तरह की चर्चाएं होती रहती हैं। राज्यसभा में उनकी विदाई के समय भावुक होते हुए मोदी ने जिस तरह से गुलाम नबी आजाद की प्रशंसा की थी, उसी समय से यह चर्चा चल पड़ी थी कि कांग्रेस में अब बहुत दिन उनका रहना संभव नहीं है। वैसे गुलाम नबी आजाद को कभी भी जनाधार वाला नेता नहीं माना गया है। उन्हें एक मैनेजमेंट एक्सपर्ट नेता के रूप में देखा जाता रहा हैं। अल्पसंख्यक समुदाय से होने के कारण उनकी राजनीतिक अहमियत और भूमिका हमेशा अग्रणी रही है।
 
गुलामी, आजादी, गांधी और कांग्रेस का बुनियादी नाता रहा है। आजादी की लड़ाई के दौर में कांग्रेस का गठन हुआ था।कांग्रेस ने देश को आजाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लेकिन देश के बंटवारे का दुर्भाग्य भी कांग्रेस के खाते में ही दर्ज है। कांग्रेस में गांधी परिवार से टकराहट के बाद पार्टी छोड़ने वाले नेताओं की लंबी फ़ेहरिस्त है। शरद पवार से लगाकर ममता बनर्जी और अन्य बड़े नेता कांग्रेस से ही निकलकर आगे बढ़े हैं।

गुलाम नबी आजाद भी नई पार्टी बनाने का ऐलान कर चुके हैं। जम्मू और कश्मीर में जल्दी ही नए चुनाव होने की संभावना है। बीजेपी जम्मू में तो मजबूत स्थिति में है लेकिन घाटी में उसे किसी स्थानीय कद्दावर नेता की जरूरत पड़ सकती है।गुलाम नबी आजाद चुनाव में यदि थोड़ी बहुत सफलता भी हासिल करने में सफल हो जाते हैं तो बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाने में वह महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

कांग्रेस में पुराने वरिष्ठ नेता असहज क्यों हो गए हैं? राज्यों में कई सीनियर नेता हैं जिनमें राष्ट्रीय स्तर पर संगठन के प्रमुख का पद संभालने की क्षमता है। लेकिन हर नेता जिम्मेदारी लेने से बच रहा है। कांग्रेस में पहले भी गैर गांधी अध्यक्ष रह चुके हैं। लेकिन ऐसे सभी अध्यक्षों को गांधी परिवार द्वारा असफल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। कांग्रेस में ऐसा कोई नेता दिखाई नहीं पड़ रहा है, जिसका पूरे देश में प्रभाव हो।

कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश से देश को कई प्रधानमंत्री दिए। उत्तर प्रदेश में आज कांग्रेस किस हालत में पहुंच चुकी है। कभी दक्षिण भारत में कांग्रेस मजबूत स्थिति में हुआ करती थी। आज वहां भी कांग्रेस की स्थिति दयनीय हो गई है। मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान राज्यों में बीजेपी के साथ सीधा मुकाबला होने के कारण कांग्रेस की स्थिति थोड़ी ठीक-ठाक है। बाकी राज्यों में तो कांग्रेस पतन के अपने आखिरी कगार पर खड़ी दिखाई पड़ती है। इन राज्यों में भी आम आदमी पार्टी अगले चुनाव में कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है।

पार्टी में युवाओं और बुजुर्ग नेताओं के बीच एक संतुलन और समन्वय आवश्यक है। ना तो अकेले युवा ही फतह कर सकते हैं और ना बुजुर्ग नेता ही। पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस जनता से जुड़े मुद्दों पर सड़क पर उतरती दिखाई पड़ रही है। भले ही गांधी परिवार से ईडी द्वारा पूछताछ के बाद जोश बड़ा हो। कांग्रेस भारत जोड़ो आंदोलन की शुरुआत भी करने जा रही है। यह अलग बात है कि भारत को जोड़ने के पहले बिखरती पार्टी को बचाने के लिए कांग्रेस जोड़ो अभियान चलाने की जरूरत है। कांग्रेस और गांधी परिवार दोनों एक दूसरे को नहीं छोड़ सकते हैं। दोनों का काम एक दूसरे के बिना नहीं चल पाएगा।पार्टी से लगातार नेताओं के पलायन की चिंता की जानी चाहिए। मजबूत विपक्ष लोकतंत्र के लिए जरूरी है। कम से कम कांग्रेस लोकतंत्र की इतनी सेवा करने के लिए तो तैयार हो ही सकती है।

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