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सिंधिया को क्लीन चिट, राहुल हुए हिट

सार

  कितना भी दबाया जाए लेकिन सच है जो, कभी ना कभी सामने आ ही जाता है. सच्चाई सिर चढ़कर बोलती है, तो कई बार दो-तीन लोगों के बीच हुई बातें भी सार्वजनिक हो जाती हैं..!! 

janmat

विस्तार

    कमलनाथ अपनी सरकार के पतन के लगभग छह साल बाद उसके कारण बता रहे हैं. दिग्विजय सिंह भी सरकार गिरने के कारण गिना रहे हैं. सरकार के पतन के लिए आज जो कारण गिनाये जा रहे हैं, वह उससे अलग हैं जो सरकार गिरने के समय बताए गए थे?  

    अब तक तो पूरी कांग्रेस ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके साथ गए विधायकों को गद्दार बता रहे थे. बीजेपी पर हॉर्स ट्रेडिंग का आरोप लगा रहे थे. विधायकों की खरीद फरोख़्त की कीमतें बताई जा रही थीं. राहुल गांधी भी बीजेपी पर कांग्रेस सरकार चोरी का आरोप लगाने से नहीं चूके थे. 

    राज्य का वोटर तो कांग्रेस सरकार पतन के बाद दल बदलने वाले विधायकों की सीटों पर उपचुनाव में ही हॉर्स ट्रेडिंग के आरोपों को नकार दिया था. जनादेश के जरिए दल बदल करने वाले अनेक विधायकों को विजयी बनाया था. इसके साथ ही बीजेपी को स्पष्ट बहुमत मिल गया था. 

    सरकार जाने के इतने सालों बाद हॉर्स ट्रेडिंग के आरोपों और कांग्रेस की काम चोरी का सच सामने आ गया. कांग्रेस नेताओं ने खरीद फ़रोख्त के अपने आरोपों को झूठा साबित कर दिया है. इस क्लीन चिट से ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीतिक ताकत और इमेज में इजाफा हुआ है. दल बदल करने वाले जो विधायक आज बीजेपी की सत्ता में शामिल है, उन्हें गद्दारी के आरोपों से मुक्ति मिल गई है. उनका दल बदल कांग्रेस की कमजोरी और भ्रष्ट खोरी के खिलाफ था.

    अपनी ही सरकारों की काम चोरी और भ्रष्टखोरी के खिलाफ अगर विधायक अपना मुंह खोलने लगेंगे तो फिर सरकारों में लूटपाट काफी कम हो सकती है. कमलनाथ सरकार के पतन को लेकर जो राजनीतिक घमासान चल रहा है, वह कोई छोटे-मोटे नेताओं के बीच नहीं है बल्कि उन सारथियों के बीच है, जो सरकार का रथ खींच रहे थे.

    राहुल गांधी अब बीजेपी पर वोट चोरी का आरोप लगा रहे हैं. पहले सरकार चोरी का आरोप लगा रहे थे. सरकार चोरी के आरोपों पर कांग्रेस के ही सारथियों ने पलीता लगा दिया. वोट चोरी के आरोप तो बिना सबूत के इल-लॉजिकल लगते हैं.  

    मध्य प्रदेश कांग्रेस में जो खींचतान चल रही है, उससे राहुल गांधी का वह अभियान हिट हो रहा है, जिसके जरिए वह मध्य प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करना चाहते हैं. कमलनाथ सरकार के पतन के खुफिया रहस्यों में एक रहस्य यह भी सामने आया है कि, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच समझौते के लिए एक उद्योगपति के घर पर बाकायदा एक बैठक हुई थी. इस बैठक में कुछ मुद्दों पर लिखित समझौता किया गया था, जिसे बाद में तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा अमल में नहीं लाया गया. सरकार गिरने के पीछे यह भी एक कारण बताया गया है.

    राहुल गांधी का पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी पर सबसे बड़ा आरोप है कि अडानी अंबानी जैसे पूंजी पतियों के हित में यह सरकार काम कर रही है. उनके इन आरोपों के कोई तथ्यात्मक सबूत अभी तक तो देश के सामने नहीं आ पाए हैं. लेकिन कांग्रेस की सरकारों में उद्योगपतियों की भूमिका सामने आ गई है. लोकतांत्रिक सरकार के बारे में क्या ऐसा सोचा जा सकता है कि, उसमें नेताओं के बीच राजनीतिक सौदेबाजी की मध्यस्थता कोई उद्योगपति करेगा.

    उद्योगपति के साथ मिलकर राजनेताओं के बीच लिखित सौदेबाजी पर क्या सरकार चलेगी. इसका मतलब है कि, जो संविधान की शपथ ग्रहण की गई है, उसका उल्लंघन किया जा रहा था. राहुल गांधी को इस बात का स्पष्टीकरण देना चाहिए कि, कांग्रेस की कमलनाथ सरकार में उद्योगपतियो की कितनी दखलंदाजी थी. 

    राजनीतिक विश्लेषक इस बात से चकित है कि इतने लंबे समय के बाद कमलनाथ सरकार के अंदरूनी रहस्य सामने क्यों लाये जा रहे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया और बीजेपी को सरकार चोरी के आरोपों से क्यों मुक्त किया जा रहा है. इसके पीछे क्या कांग्रेस में कोई राजनीति चल रही है. 

     जिला अध्यक्षों की नियुक्तियों में जो दृश्य सामने आए हैं, उससे ऐसा लगता है कि, कांग्रेस आलाकमान के सामने दिग्विजय की छवि ख़राब की गयी हैं. राहुल गांधी की नजरों में दिग्विजय सिंह को विलन बनाने के लिए ऐसे तथ्य फीड किए गए हैं, जो सही नहीं है. कांग्रेस नेताओं की मिस फीडिंग के कारण ही दिग्विजय सिंह को आलाकमान से नेगेटिव मैसेज मिल रहे हैं. 

    दिग्विजय सिंह की खासियत है, वह जो करते हैं या जो कहते हैं, उसको स्वीकार करने से डरते नहीं है. अनेक बार उनके बयानों पर विवाद उत्पन्न हुए लेकिन उन्होंने जो कहा, उससे कभी पीछे नहीं हटे. दिग्विजय सिंह पॉलिटिकल फाइटर माने जाते हैं आलाकमान द्वारा पहले उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह को अनुशासनहीनता के नाम पर पार्टी से बाहर किया गया. अब उनके बेटे जयवर्धन सिंह को जो राज्य स्तर पर श्रेष्ठ काम कर रहे थे, डिमोट कर जिला अध्यक्ष बना दिया गया. इससे नाराजगी होना स्वाभाविक है.

    दिग्विजय सिंह का राज्यसभा का कार्यकाल भी एक साल का बचा है. वह पहले ही दो बार राज्यसभा में जा चुके हैं. अब तीसरी बार पार्टी द्वारा राज्यसभा में भेजे जाने पर राजनीति होना स्वाभाविक है. दिग्विजय सिंह को कोई पसंद करें या नापसंद लेकिन उनको इग्नोर करना राज्य कांग्रेस के लिए आत्मघाती ही साबित होगा.

    राहुल गांधी का बदलता राजनीतिक गेयर और तेवर कांग्रेस के लिए ही भारी पड़ रहा है. यह बात पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को ही मजबूती से बतानी पड़ेगी. राहुल तो राजनीति को झूठ का पर्याय बनाने में लगे हुए हैं. इस पर सीनियर नेताओं की चुप्पी पार्टी  के लिए हानिकारक सिद्ध होगी. हार्स ट्रेडिंग पर कांग्रेस की क्लीन चिट राजनीति के झूठ को ही हिट कर रही है.