मासूम से दरिंदगी की वीभत्स घटना पर आरोपी दरिंंदे को नहीं पकड़े जाने के कारण रायसेन एसपी को हटा दिया गया है. बिगड़ती कानून व्यवस्था के लिए सीएम मोहन यादव पुलिस अफसरों को फटकारने के लिए पीएचक्यू पहुंच गए..!!
राजधानी में दो थानों के टीआई हटा दिए गए. मुख्यमंत्री की सख्ती दिखी, वाहवाही हो गई, लेकिन इससे कोई सुधार हुआ हो, ऐसा तो नहीं लगता. जनता में आक्रोश है नए एसपी आरोपी को पकड़ने में नहीं सफल होते तो फिर क्या बनाने, हटाने का खेला जारी रहेगा.
कानून व्यवस्था अनुशासन और इकबाल से चलती है. पुलिस प्रशासन हर अपराध को कंट्रोल कर देगा, ऐसा सोचना तर्क संगत नहीं है. अनुशासन नजर और नजारा देखता है. जिस पुलिस अफसर को अयोग्य और अक्षम मानकर हटाया गया है, उसे इसी सिस्टम ने एसपी बनाया था. या तो बनाते समय उसकी क्षमता और योग्यता का सही मूल्यांकन नहीं किया गया था. या घटना के नाम पर पब्लिक प्रेशर में पीआर एक्सरसाइज के तहत हटाने के कार्रवाई की गई है. रायसेन की घटना के लिए एसपी को जिम्मेदार माना गया है, तो राजधानी भोपाल में खराब कानून व्यवस्था के लिए दो थाने के टीआई को जिम्मेदार मानकर हटाया गया है.
किसी घटना के लिए किस स्तर तक जिम्मेदारी होनी चाहिए. इस पर क्या कोई पैमाना है. पूरा सिस्टम चलाने के लिए जो जिम्मेदार हैं, उनको हटाने के लिए किस स्तर की घटना की आवश्यकता होगी. एसपी को हटाते समय क्या जिले में उसके परफॉर्मेंस और उसके प्रति भाव का मूल्यांकन किया गया है. अगर जिले का पूरा पुलिस प्रशासन उस अफसर को अच्छा मानती है, फिर भी उसे किसी घटना का जिम्मेदार मानते हुए, पद से हटा दिया गया है तो क्या इस कार्यवाही का अनुशासित फोर्स के मनोबल पर प्रभाव नहीं पड़ेगा.
खराब कानून व्यवस्था अच्छे शासन की निशानी नहीं हो सकती. मध्य प्रदेश में जिस तरह की घटनाएं लगातार घट रही हैं, वह पुलिस प्रशासन की कमजोरी दिखाती हैं. इस कमजोरी को शासन स्तर पर समझकर सुधारने के प्रयासों का उच्च स्तर पर आंकलन होना जरूरी है.
आम नागरिक ईश्वर भरोसे ही स्वयं को सुरक्षित मानता है. उसका विश्वास ना पुलिस पर है और ना सरकार पर. वह तो प्रक्रियाओं का पालन करता है. अगर सुरक्षा मिल जाए तो अच्छा है, नहीं मिले तो भी रिएक्ट नहीं करता.
बढ़ते अपराध समाज की मानसिकता भी दिखाते हैं. महिलाओं और बच्चियों पर अत्याचार की सामान्य घटनाएं, अब संवेदनाएं भी नहीं जगातीं. ऐसी वीभत्सकारी घटनाएं ही समाज को उद्वेलित करती हैं. राजधानी भोपाल में जिस तरह की गुंडागर्दी पनपी है, वह चिंता बढ़ा रही है.
पुलिस के साथ भी मारपीट की घटनाएं मध्य प्रदेश में बढ़ी हैं. पुलिस प्रशासन राजनीतिक सत्ता की दासी बनकर रह गया है. पुलिस सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट निर्णय दे चुका है, लेकिन उसका कंप्लायंस किसी भी राज्य में नहीं हुआ है.
अक्सर देखा गया है, कि कानून व्यवस्था को लेकर बड़े अफसर को जिम्मेदार ठहराया जाता है. खासकर एसपी को उनके पदों से हटा दिया जाता है. यह कोई पहली घटना नहीं है. इसके पहले भी कई बार घटनाओं का जिम्मेदार बताते हुए कलेक्टर और एसपी हटाए गए हैं. यह भी देखने को मिलता है, कि जिन्हें हटाया गया है उन्हें कुछ समय के बाद फिर फील्ड में कमान दे दी जाती है. इससे यही मतलब निकलता है, कि पदों से हटाने की यह क्रिया निर्णय लेने वालों की पीआर एक्सरसाइज का हिस्सा होती है.
ऐसा बताया जाता है, कि मुख्यमंत्री ने सख्त कदम उठाया है. अफसरों को फटकारा है. नाराजगी व्यक्त की है. मीडिया में उसकी हैडलाइन बनती है. यह सारे एक्शन छवि चमकाने की एक दवाई जैसे हैं. इनका कानून व्यवस्था सुधारने में जमीनी प्रभाव कुछ भी नहीं पड़ता है.
सरकारें नियम कायदे और कानून के तहत चलती हैं. अनुशासन तब टूटता है जब मंशा पूर्ति के लिए इनका उपयोग शुरू हो जाता है. जब किसी की इच्छा पूरी करने के लिए एक बार अनुशासन टूटता है, तो फिर वह टूटता ही चला जाता है. यही स्थिति करप्शन में भी होती है, अगर किसी की इच्छा पूरी करने के लिए किसी अफसर को गलत कदम उठाना पड़ता है तो फिर वह खुद के लिए भी यह कदम उठाने लगता है. अगर यह बीज ही नहीं बोया जाए तो फिर वृक्ष कैसे बन सकता है.
जब उच्च स्तर से अनुशासन, जवाबदेही, निष्ठा पूर्वक कार्य संपादन का बीज पूरे तंत्र में बोया जाएगा तो फिर इस बात की शंका नहीं होगी, कि कोई भी अफसर किसी घटना पर सक्षमता से कार्रवाई नहीं कर पा रहा है. फिर किसी को भी फटकारने की जरूरत नहीं होगी. नाराजगी व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. कभी-कभी उसका पिटारा खोलने से व्यवस्था सुधरती होती तो अब तक ना मालूम कितनी बार इसको दोहराया गया है.
कभी खराब कानून व्यवस्था के लिए नजीर बने यूपी को योगी आदित्यनाथ ने कम से कम इस मामले में तो सुधार दिया है. अनुशासन, पवित्रता और सख्ती की शुरुआत गंगोत्री से ही होगी. उसको बीच में रोपित करने की कोशिश सफल नहीं हो सकती. पुलिस प्रशासन में पद स्थापना में योग्यता और क्षमता को प्राथमिकता मिलना चाहिए. इसका राजनीतिक उपयोग बंद होना चाहिए.
अगर किसी घटना को किसी को भी हटाने का आधार बनाया जाता है, तो फिर तंत्र में इसका पैमाना बनना चाहिए. किस घटना पर किस स्तर का अफसर या मंत्री हटाया जाएगा. बिना सोचे-विचारे और मूल्यांकन के किसी को भी एक झटके में हटाने की प्रवृत्ति अच्छे शासन का संकेत नहीं हो सकती.