राहुल गांधी वोट चोरी के आरोपों पर निर्वाचन आयोग को शपथ पत्र इसलिए नहीं दे रहे हैं क्योंकि अगर आरोप झूठे पाए गए तो उन्हें सजा भी मिल सकती है. वह चाहते हैं आयोग स्व-संज्ञान लेकर आरोपों की जांच करे..!!
अब ताजा विवाद यह है कि देश के 272 बुद्धिजीवियों ने अपने खुले पत्र के माध्यम से राहुल गांधी पर निर्वाचन आयोग को बदनाम करने का आरोप लगाया है. इसमें जज भी शामिल है. अब कांग्रेस कह रही है कि भाजपा द्वारा प्रायोजित बुद्धिजीवी निर्वाचन आयोग को कवर फायर दे रहे हैं.
जब राहुल गांधी के आरोपों पर शपथ पत्र देने की बात उठाई जाती है तब पार्टी कहती है कि, आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी है, वह आरोपों का उत्तर दें. यह बात सही है लेकिन इसके लिए संवैधानिक प्रक्रिया अपनानी पड़ेगी.
राहुल गांधी अब तक तीन प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुके हैं. लेकिन एफिडेविट नहीं दिया. जबकि निर्वाचन आयोग उन्हें शपथ पत्र देने के लिए अनुरोध कर चुका है. वोट चोरी की डिबेट में प्रवक्ता भी यह दावा करते हैं कि, अगर राहुल गांधी के आरोप झूठे हैं तो उनके खिलाफ चुनाव आयोग कानूनी कार्रवाई कर उन्हें जेल भेज दे.
राजनीति का ट्रेंड बन गया है. आरोप लगाओ, भाग जाओ और अगर आरोपों पर कोई कार्रवाई करें तो सहानुभूति के लिए राजनीति करो. कांग्रेस का यह पुराना फॉर्मूला है. आपातकाल लगाने के बाद जब देश में इंदिरा गांधी के खिलाफ लहर बनी, चुनाव में पराजय मिली, जनता पार्टी की सरकार बनी.
इंदिरा गांधी के कारनामों की जांच के लिए आयोग बनाए गए. वो आयोग के सामने गईं. इसी प्रक्रिया में उनकी गिरफ्तारी हुई. इस गिरफ्तारी को ही कांग्रेस ने जनता पार्टी सरकार द्वारा बदले के रूप में निरूपित किया. भारत के लोग कभी भी बदले की कार्रवाई बर्दाश्त नहीं करते. इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी ही कांग्रेस की किस्मत बन गई और उन्होंने अगले चुनाव में सत्ता में फिर से वापसी की.
यह इंदिरा फार्मूला कांग्रेस की रगों में है. यही फार्मूला सोनिया और राहुल के पक्ष में कांग्रेस ने तब भी उपयोग किया था, जब ईडी द्वारा पूछताछ की गयी थी.
राहुल इसी फार्मूले पर आगे बढ़ रहे हैं. वह जानते हैं कि उनकी पारिवारिक विरासत जन भावनाओं से जुड़ी है. उन पर किसी प्रकार की बदले की कार्यवाही अगर दिखाई जा सके, तो इससे कांग्रेस को सहानुभूति मिल सकती है. इस सहानुभूति के लिए ही वोट चोरी का फार्मूला निकाला गया है.
पत्रकारों द्वारा सबूत के साथ कोर्ट जाने के सवालों पर राहुल स्वयं कहते हैं कि, अदालत जाना उनका काम नहीं है. वह लोकतंत्र की आवाज उठा रहे हैं. अदालत सुन रही है और उसे स्वयं संज्ञान लेना चाहिए. नेता प्रतिपक्ष जैसे संवैधानिक पद पर इतना गैर जिम्मेदार अप्रोच कांग्रेस में ही सम्भव है.
ऐसे नेता प्रतिपक्ष रहे जिन्होंने सरकारों, यहां तक कि मुख्यमंत्री के खिलाफ गंभीर मामलों में अदालत गए. मध्यप्रदेश में नेता प्रतिपक्ष के रूप में कैलाश जोशी ने चुरहट लॉटरी कांड में अदालती लड़ाई लड़ी. अर्जुन सिंह को पराजय मिली और उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा. अगर राहुल गांधी के पास वोट चोरी के सबूत हैं तो अदालत में नहीं जाना एक तरह से लोकतंत्र के साथ धोखा है.
बुद्धिजीवी भी इस देश के नागरिक हैं. कभी उन्होंने संविधान के अनुरूप फैसले किए हैं, काम किये हैं. कांग्रेस का यह आरोप अगर सही भी है कि भाजपा द्वारा प्रायोजित है, तो भी उनकी आवाज को दबाया नहीं जा सकता. राहुल गांधी अपने आरोपों पर तो संवैधानिक संस्था से जवाब चाहते हैं लेकिन देश के आम नागरिक के विचार को कवर फायर कहते हैं.
जब तक राहुल गांधी अपने आरोप साबित नहीं करते तब तक वह सत्य साबित नहीं होंगे. आरोप को सही साबित करने के लिए उन्हें कानून का सहारा लेना होगा. उन्हें कानून के दायरे में कदम उठाना पड़ेगा. अगर वह ऐसा नहीं कर रहे हैं तो बुद्धिजीवियों की यह बात सही मानी जाएगी
कांग्रेस की क्रिया राजनीतिक हताशा दिखाती है. बिहार के जनादेश को कांग्रेस ‘ज्ञानादेश’ कहती है. उनका इशारा मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार की ओर होता है. वही निर्वाचन आयोग, वही निर्वाचन प्रक्रिया लेकिन जहां कांग्रेस जीत जाती है, वहां वोट चोरी का सवाल नहीं होता. जहां हार होती है वहां आरोप लगाए जाते हैं.
राहुल गांधी की कठिनाई यह है कि भाजपा और संघ विरोधी शक्तियों को अपने साथ जोड़े रखने के लिए उनके खिलाफ़ ऐसा एजेंडा चलाना है, जो उनके जनाधार को बिखरने से रोक सके. वामपंथी और दक्षिणपंथी विचार के बीच सांप और नेवले का संग है. राहुल गांधी वामपंथी मार्ग पर हैं. उन्हें उनका सहयोग और समर्थन भी मिल रहा है.
खुद की कमियों को देखना और सुधारना भारतीय संस्कृति है. दूसरों को दोष देना अधार्मिक विचार है. राहुल गांधी राजनीतिक रूप से सरकार और इलेक्शन कमीशन पर कितना भी आरोप लगा लें लेकिन जब तक उसे कानून के दायरे में साबित नहीं करेंगे, तब तक उन्हें झूठा ही माना जाएगा.
सहानुभूति पर चुनावी जीत कांग्रेस का फार्मूला रहा है. इसके लिए गिरफ्तारी और जेल भी उनके लिए एक साधन है. राहुल गांधी झूठे आरोप लगाने के बाद भी इसलिए सफल नहीं हो रहे हैं क्योंकि सरकार उनके इरादे जानती है. जहां तक इलेक्शन कमीशन का सवाल है, उसके पास उन्हें जेल भेजने का अधिकार नहीं है. वह शपथ पत्र मांग रहा है. जब मिलेगा तब जांच होगी.
वोट चोरी के आरोपों पर बुद्धिजीवी भी वही कह रहे हैं जो बिहार का जनादेश कह रहा है. वोर चोरी राहुल के दिमाग की उपज है और अब यह खुलती जा रही है. इसे सत्य साबित करने की चुनौती राहुल गांधी पर ही है.