संविधान हाथ में लेकर एसआईआर का विरोध लोकतंत्र के लिए खतरनाक है. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने राज्य में वोटर लिस्ट के एसआईआर का विरोध कर रही है..!!
चुनाव आयोग पर इसके लिए गंभीर आरोप लगा रही हैं. मुख्य निर्वाचन आयुक्त को भेजे अपने पत्र में उन्होंने इस प्रक्रिया को रोकने की मांग की है. ममता ने इसे अव्यवस्थित जबरन थोपे जाने वाला और खतरनाक बताया है. बिहार में एसआईआर पर भी खूब हल्ला मचा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक नहीं लगाई. प्रक्रिया पूरी हुई. चुनाव परिणामों ने ममता बनर्जी सहित उन सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को परेशान कर दिया है, जहां एसआईआर हो रहा है.
इसके विरोधियों का आरोप है कि निर्वाचन आयोग बीजेपी की बी टीम के रूप में उसे मदद पहुंचाने के लिए यह काम कर रहा है. बिहार से ज्यादा बंगाल में एसआईआर जरूरी है. यह तो अब सीमा पर दिख रहे दृश्यों से ही साबित हो गया है. अवैध रूप से देश में रह रहे बांग्लादेशी अपने देश जाने के लिए लाइनों में खड़े हैं. इसके बाकायदा वीडियो वायरल हो रहे हैं. बांग्लादेशी घुसपैठिए जिस तरीके के वक्तव्य दे रहे हैं, उससे देश में घुसपैठ की समस्या, आधार कार्ड, मतदाता कार्ड में गड़बड़ियां उजागर हो रही हैं. एसआईआर के खिलाफ़ फिर कुछ राज्य सुप्रीम कोर्ट गए हैं. उस पर भी सुनवाई होगी.
जब निर्वाचन आयोग हर पात्र मतदाता को वोटर लिस्ट में रखने के लिए प्रतिबद्ध है, तो फिर राजनीतिक दलों को इस प्रक्रिया को पूरा करने में ईमानदारी बरतनी चाहिए. जिनके पास भी भारत का नागरिक होने के सबूत के रूप में पात्र दस्तावेज उपलब्ध होंगे, उनमें से किसी भी मतदाता को वोटर लिस्ट से बाहर नहीं किया जा सकता. सबसे बड़ा सवाल है कि मतदाता शुद्धिकरण की प्रक्रिया लोकतंत्र के शुद्धिकरण के लिए जरूरी है.
हमारा संविधान और संवैधानिक व्यवस्था जिस ढांचे पर खड़ी है, वह वोटर लिस्ट से ही बना है. जब वोटर लिस्ट ही अशुद्ध होगी तो फिर संविधान निर्मित हर व्यवस्था और ढांचा शुद्ध कैसे हो सकता है. एसआईआर की जरूरत पर तो कोई प्रश्न नहीं हो सकता. सवाल केवल उसकी प्रक्रिया, समय सीमा और पारदर्शिता पर हो सकता है. कोई भी राजनीतिक दल मतदाता सूची की अशुद्धता से अनभिज्ञ नहीं है. इस अशुद्धता का अगर राजनीतिक उपयोग करना किसी की मंशा हो, तो बात अलग है. अन्यथा इसका शुद्धिकरण संविधान की शपथ का पालन करने जैसा है.
जो ममता बनर्जी आज एसआईआर का विरोध कर रही हैं वही जब विपक्ष में थी तब लोकसभा में बंगाल में घुसपैठ की समस्या को बढ़ाने के लिए वामपंथी सरकार को जिम्मेदार बताती थीं. जैसे ही वह सरकार में आ गईं उन्होंने वही रास्ता पकड़ लिया जो वामपंथी सरकार ने बनाया था. अब वह स्वयं घुसपैठियों को वोट बैंक के रूप में उपयोग करने लगी हैं. एसआईआर का डर केवल अवैध लोगों को ही हो सकता है. जो वैद्य रूप से भारत के निवासी हैं, उनका नाम वोटर लिस्ट में जोड़ने की प्रक्रिया इसमें भी होगी. उसके बाद भी होगी.
चुनाव के पहले तक नाम जुड़ते रहेंगे. पात्र लोगों का नाम जुड़वाना राजनीतिक दलों की समस्या नहीं है. बल्कि आपात्रों के नाम को बनाए रखने में उनका हित जुड़ा हुआ है. राजनीतिक दल के हित के लिए देश की आंतरिक सुरक्षा को तो खतरे में नहीं डाला जा सकता. एक भी घुसपैठिया राष्ट्र के संसाधनों पर बोझ है. राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा बन सकता है. सीमाओं की सुरक्षा के लिए दूसरों देश से लड़ने के लिए तैयार सरकारें चुनावी फायदे के लिए विदेशी घुसपैठियों को अपने राज्यों में संरक्षण दें, यह भारत का संविधान कैसे स्वीकार कर सकता है.
एसआईआर का विरोध देखकर यह समझ जा सकता है कि जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, वही एनआरसी का विरोध कर रहे थे. एसआईआर चुनावी शुद्धता के लिए हो रहा है. जो राष्ट्र की शुद्धता के लिए जरूरी है. अब बंगाल में चुनाव होना है. गंगा का आखिरी डेस्टिनेशन बंगाल ही है. इसके पहले गंगोत्री से लगाकर गंगा सागर तक जितने राज्य पड़ते हैं, उनमें अधिकांश में भाजपा सत्ता पर काबिज़ है. ममता बनर्जी की राजनीतिक पकड़ बंगाल में काफी मजबूत है, फिर भी उन्हें एसआईआर से डर लग रहा है.
कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां वहां हाशिए पर जा चुकी हैं. अब चुनावी लड़ाई भाजपा और टीएमसी के बीच दिखाई पड़ती है. एसआईआर चुनावी लड़ाई का हथियार बन गया है. ममता बनर्जी इसकोअपने वोट बैंक के खिलाफ मानती हैं. इस चुनाव में बंगाल की लड़ाई भीषण हो सकती है. देश में केवल बंगाल ही ऐसा राज्य बचा है, जहां चुनावी हिंसा देखने को मिलती है. अगला चुनाव भी हिंसा से मुक्त नहीं रह पाएगा.
जहां तक बीएलओ पर दबाव के कारण आत्महत्याओं का सवाल है, हर मृत्यु संवेदनशील होती है. लेकिन संविधान मृत्यु नहीं लोकतंत्र की मजबूती पर टिका हुआ है. चुनाव आयोग प्रक्रिया को जितना सरल बना सकता है, बनाना चाहिए. कोई पात्र मतदाता छूटे नहीं यह सुनिश्चित करना निर्वाचन आयोग का प्राथमिक दायित्व है.
संविधान की शपथ लेकर संवैधानिक प्रक्रिया का विरोध करना संविधान के साथ एक तरह की हिंसा है. एसआईआर की प्रक्रिया को भी हिंदू-मुस्लिम की राजनीति से जोड़ा जा रहा है.
राजनेताओं की चुनावी ममता राष्ट्रीय कटुता फैला रही है. भारतीय लोकतंत्र ने आपातकाल भी देखा है. रंग कोई भी हो मतदाताओं का विवेक लोकतंत्र को मजबूत करेगा, यह विश्वास डिगना नहीं चाहिए.