सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर नेशनल हेराल्ड मामले में दिल्ली की ईओडब्ल्यू ने नई एफआईआर दर्ज की है. यह केस ईडी की शिकायत पर दर्ज किया गया है. ई़डी पिछले 11 सालों से इस केस की जांच कर रही थी..!!
इन दोनों नेताओं से पूछताछ भी की गई थी. जांच प्रक्रिया पूरी कर एजेंसी ने अदालत में चार्ज शीट पेश कर दी है. इसको संज्ञान लेने के बारे में अदालत का फैसला आना अभी बाकी है. इस बीच ईडी की शिकायत पर दिल्ली ईओडब्ल्यू ने अपराध पंजीबद्ध कर लिया है. इस पर सवाल उठ रहे हैं कि जो जांच एजेंसी इतने सालों से जांच कर रही थी, अगर उसे भ्रष्टाचार का केस दर्ज कराना था तो फिर उसमें इतना समय क्यों लग गया.
क्या ईडी को ऐसा लगता है कि उसकी चार्जशीट पर पीएमएलए के तहत संज्ञान लेने से अदालत इनकार कर सकती है. कानूनी दांव-पेंच के तहत मामले को जारी रखने के लिए ईओडब्ल्यू में केस दर्ज कराया गया है. कांग्रेस तो शुरु से ही इसे राजनीतिक विद्वेष बताती रही है. बीजेपी कहती है कि इस मामले में सुब्रमण्यम स्वामी की शिकायत पर अदालत के निर्देश पर जांच चालू की गई है.
पिछले 11 सालों से चल रही जांच जब एक निष्कर्ष पर पहुंच गई और अदालत के निर्णय की प्रतीक्षा की जा रही है तो फिर नई एफआईआर की आवश्यकता क्या थी? क्या यह कानूनी आवश्यकता थी? ऐसा लगता है कि ईडी जिन मामलों के तहत जांच के लिए अधिकृत है, इसमें संभवत: करप्शन के मामले प्रमाणित करने में कानूनी अड़चन आ सकती थी.
करप्शन की जांच के लिए पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा अधिकृत एजेंसी है, नई एफआईआर के तहत ईओडब्ल्यू फिर से सभी आरोपियों से पूछताछ कर सकती है. उसे जो भी ईडी की जांच रिपोर्ट मिली है, उसको करप्शन की धाराओं में जांच में शामिल कर सबूतों के साथ केस अदालत के सामने ले जा सकती है. ईडी की कोर्ट अलग है और ईओडब्ल्यू की जांच रिपोर्ट अलग कोर्ट में पेश होगी. इसमें जो कानूनी संभावना दिखाई पड़ती है, वह तो यही है कि शायद यह केस पीएमएलए के तहत अदालत में चलने योग्य ना पाया जाए, इसलिए इसको भ्रष्टाचार की परिधि में लाने के लिए जांच एजेंसी को बीच में शामिल कर लिया गया है.
वैसे यह पूरा प्रकरण नेशनल हेराल्ड की कंपनी एसोसिएटेड जनरल्स की संपत्तियों को यंग इंडिया कंपनी को ट्रांसफर का है. जिस कंपनी को यह ट्रांसफर की गई है उसके ज्यादातर शेयर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास हैं. करप्शन और धोखाधड़ी के इस मामले में इन दोनों नेताओं के अलावा तीन लोगों और तीन कंपनियों के खिलाफ़ अपराध दर्ज किया गया है. आरोपों के मुताबिक जिस वक्त नेशनल हेराल्ड की संपत्ति गांधी परिवार को महज 50 लाख रुपए में बेची गई उस वक्त उसकी कीमत 2000 करोड़ रुपए थी.
कांग्रेस का कहना है कि केंद्र की सत्ताधारी पार्टी एजेंसियों का इस्तेमाल कर गांधी परिवार को परेशान कर रही है. ईओडब्ल्यू में एफआई आर दर्ज करने के पीछे यह भी माना जा रहा है कि संभवत मूल शिकायतकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी अपनी शिकायत से पीछे हट सकते थे. इसका एक पहलू यह भी हो सकता है कि ईडी को जिन अपराधों की जांच का अधिकार है उसमें भ्रष्टाचार की धाराएं प्रभावी नहीं हो सकती हैं. ईडी की चार्जशीट पर संज्ञान लेने पर आधारित फैसला जब आएगा, तब परिस्थितियां और साफ हो जाएंगी.
गांधी परिवार पर करप्शन के आरोप पहले भी लगते रहे हैं करप्शन के मामले में राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप अपनी जगह हैं लेकिन ऐसे केसों को अदालती प्रक्रिया के माध्यम से साबित करना एक चुनौती पूर्ण काम है. करप्शन संभवत: राजनीति में चुनावी मुद्दा नहीं बनता है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण लालू परिवार है. बिहार के चुनाव में भले ही राजद की करारी हार हुई हो, लेकिन सबसे ज्यादा मत इसी पार्टी को मिले हैं. इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष को करप्शन के केस में सजा भी भुगतनी पड़ी है. कांग्रेस ने भी उनके साथ चुनावी गठबंधन किया और जिस नेता पर करप्शन का केस चलाने का अदालत ने फैसला दिया उसे सीएम फेस के रूप में भी स्वीकार किया गया. इसलिए यह कहना कि करप्शन केस राजनीतिक नुकसान पहुंचाता है यह थोड़ा मुश्किल है .
गांधी परिवार की राजनीतिक विरासत है, नेशनल हेराल्ड की संपत्तियों को कब्जाने में जो भी तरीका अपनाया गया है, वह सब दस्तावेज आधारित है. इसमें अगर कोई धोखाधड़ी हुई है, तो उसको प्रमाणित करना बहुत कठिन नहीं होगा. राजनीतिज्ञ के लिए तो करप्शन केस भी पब्लिसिटी का माध्यम बनता है. जब ईडी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी से पूछताछ की थी तब कांग्रेस ने इसे राजनीतिक मुद्दे के रूप में पूरे देश में धरना प्रदर्शन किया था.
किसी संपत्ति को हथियाने में धोखाधड़ी और करप्शन का मामला राजनीतिक नहीं हो सकता. यह आर्थिक अपराध से जुड़ा हुआ मामला होता है. राहुल गांधी बीजेपी के लिए चुनौती हैं तो पॉलिटिकल पंचिंग बैग भी हैं. राष्ट्रीय स्तर पर राहुल गांधी ही बीजेपी से लड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं इसलिए उनके समर्थकों को तो इस एफआईआर के पीछे राजनीतिक विद्वेष ही दिखाई पड़ेगा. राहुल गांधी भी सीधे पीएम नरेंद्र मोदी पर ऐसे-ऐसे आक्षेप करते हैं जो राजनीतिक शिष्टता के विरुद्ध कहे जा सकते हैं.
नेशनल हेराल्ड मामले में आर्थिक चोरी मामले की ईओडब्ल्यू जांच करेगी. तो राहुल गांधी वोट चोरी मामले की जांच खुद ही कर रहे हैं. वह तो ना अदालत जा रहे हैं और ना ही शपथ पत्र दे रहे हैं. ईओडब्ल्यू जांच के मामले में तो उन्हें अपनी बात कहने के लिए शपथ पत्र भी देना पड़ेगा और अदालत भी जाना पड़ेगा.
राजनीतिक विद्वेष का उपयोग जनादेश के लिए करना पुराना राजनीतिक पैटर्न है. कांग्रेस को ईओडू्ब्ल्यू के एफआईआर का राजनीतिक उपयोग करने से ज्यादा कानूनी रूप से दोषमुक्त होकर बाहर आना जरूरी है.