नीतीश कुमार ने 10वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री की शपथ ले ली. इस रिकॉर्ड में कई बार गठबंधन बदले, रिकॉर्ड जीत के बाद इस बार एनडीए के मुख्यमंत्री बने. पिछले कार्यकाल में शपथ एनडीए के मुख्यमंत्री की ली, फिर पलट गए और जंगलराज वालों के साथ हो गए..!!
फिर पलटे और अब नीतीश और बीजेपी एक-दूसरे की जरूरत बन गए. बिहारियों ने भी भरपूर समर्थन किया. जीत का इतिहास रच दिया. महिला और युवाओं ने एक बुजुर्ग नेता की क्लीन इमेज और सुशासन पर भरोसा किया.
पलटूराम की नीतीश की छवि उनका पीछा अभी भी कर रही है. लेकिन अब एक दूसरे की जरूरत नीतीश और बीजेपी के गठजोड़ को पक्का कर दिया है. नीतीश ने बिहार के अब तक सर्वाधिक उन्नीस साल तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाया है. इसमें उन्होंने दस बार शपथ ली. हर शपथ पांच साल के लिए होती है, लेकिन उन्नीस साल में दस बार शपथ ही यह बता रहा है, कि नीतीश कैसे उलटते-पलटते रहे. कई बार जंगलराज के साथ भी सरकार चलाई.
नीतीश कुमार ने अपनी इमेज पर बट्टा नहीं लगने दिया. उन पर भ्रष्टाचार का आरोप चस्पा नहीं किया जा सका. परिवारवाद से भी वे दूर रहे. एकमात्र पुत्र को तमााम दबाव के बाद भी राजनीति में आगे नहीं आने दिया. बाहुबलियों को भले ही साथ रखा हो, लेकिन कानून के राज पर उनको हावी नहीं होने दिया.
अब तो लालू परिवार बिहार की राजनीति में अप्रासांगिक मार्ग पर चल पड़ा है. यद्यपि उनका वोटर बेस कमजोर नहीं हुआ है, लेकिन फिर भी जंगल राज की उनकी विरासत की वापसी से बिहार डरा हुआ है. यह डर इस चुनाव में भी था और आगे भी बना रहेगा.
मोदी और नीतीश के रिश्ते ही खट्टे-मीठे रहे हैं. बिहार कास्ट फैक्टर का केंद्र है. अति पिछड़े वर्ग से आने वाले नीतीश कुमार ने यादवों के अलावा दूसरे पिछड़े वर्गों को अपने साथ लामबंद किया. अपर कास्ट बीजेपी का वोटर माना जाता है. मोदी और नीतीश दोनों यह जानते हैं, कि दोनों अलग-अलग बिहार की सत्ता पर काबिज नहीं हो सकते. इसके लिए दोनों का मिलना एक जरूरत है.
नीतीश पहले मुस्लिम वोटबैंक पर भी नजर गढ़ाए हुए थे. इसलिए बीजेपी से टकराते हुए दिखना उनकी राजनीतिक मजबूरी थी. अब नीतीश ने वैचारिक रूप से कम्युनल पॉलिटिक्स के खिलाफ होने के बाद भी बीजेपी के साथ खड़े होने में मुसलमानों के छिटकने के खतरे से भयभीत नहीं हैं. इस चुनाव के परिणामों ने मुस्लिम फैक्टर को भी खारिज कर दिया है.
बिहार के लोगों ने यह साबित किया है कि जनता मोदी और नीतीश की जोड़ी को पसंद कर रही है. जब भी दोनों साथ रहे जनादेश उनके पीछे खड़ा हुआ. इतने लंबे समय तक सत्ता की चाबी पास में होने के बाद भी किसी नेता की इमेज बनी रहे, यह नीतीश कुमार ही कर सकते हैं. उनकी पार्टी में भी ऐसे बहुत चेहरे हैं, जिन पर गंभीर आरोप हैं. ऐसे चेहरों को अपने साथ वह रखते हैं, लेकिन इसके बावजूद भी उनके दाग नीतीश पर नहीं लग पाए.
नीतीश की लीडरशिप में नई सरकार का जो फॉर्मेशन बना है, यह 5 साल तक चलेगा इस पर भी कई सवाल हैं. लोग ऐसा मान रहे हैं कि नीतीश की यह अंतिम शपथ है. नीतीश के जातीय वोट बैंक को साधने के लिए दूसरा कोई नेता जदयू में दिखाई नहीं पड़ता है. इसके बदले बीजेपी इसी वर्ग के नेता को भविष्य के लिए तैयार कर रही है.
नीतीश का शपथ समारोह एनडीए का शक्ति प्रदर्शन रहा है. प्रधानमंत्री के साथ ही एनडीए शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री समारोह में उपस्थित थे. एनडीए के सभी घटक दल भी इसमें दिखाई पड़ रहे थे. लोकतंत्र में दलो और गठबंधनों के बीच तुलना के आधार पर जनादेश तय होता है. एनडीए गठबंधन एकजुट और शक्तिशाली दिखाई पड़ रहा है. वहीं कांग्रेस का गठबंधन बिखरता दिख रहा है.
नीतीश कुमार के सामने सुशासन की चुनौती है. चुनावी वायदों को पूरा करना उनकी सरकार के लिए आसान नहीं है. उन्होंने सबसे बड़ा वायदा महिला रोजगार योजना में दो लाख रुपए तक की सहायता देने का किया है. इसके साथ ही एक करोड़ नौकरी और रोजगार देने का वादा भी पूरा करना नीतीश कुमार के लिए चुनौती पूर्ण रहेगा.
नीतीश कुमार के लिए राजनीतिक चुनौती तो बची नहीं है. लालू परिवार तेजस्वी यादव और कांग्रेस का गठबंधन सबसे बुरी पराजय के दौर से गुजर रहा है. इसमें बगावत की भी स्वाभाविक प्रक्रिया दिखाई पड़ रही है. नीतीश की अब तक की शैली देखी जाए, तो यह कहा जा सकता है कि वह अपने बेटे को शायद हाल फिलहाल भी राजनीति में आगे नहीं बढ़ाएंगे.
कोई ऐसे ही नीतीश कुमार नहीं बन जाता. अगर उनका जादू बिहार पर चढ़ा है, तो इसके पीछे उनकी क्लीन इमेज और सुशासन की कोशिशें रही हैं. रूठते और मनाते-मनाते अब नीतीश और मोदी का साथ एक दूसरे की राजनीतिक जरूरत बन गई है. नीतीश का रिकॉर्ड निकट भविष्य में टूटना असंभव लगता है.
नीतीश नाम का मतलब नीति का स्वामी या नैतिकता का स्वामी होता है. इस मतलब को नीतीश ने पूरी तरह से चरितार्थ किया है. उन्होंने अपना जो राजलोक बनाया है, वह उन्हीं से शुरु हुआ है इसे संभालना जदयू के लिए चुनौती है.