सीएम और डिप्टी सीएम का फार्मूला कांग्रेस को रास नहीं आ रहा है. कई राज्यों में अपनी सरकारें गंवाने के बाद अब कांग्रेस कर्नाटक में दो नेताओं के बीच फंसती दिखाई पड़ रही है. अब यह बात खुलकर सामने आ रही है कि राहुल गांधी ने सीएम और डिप्टी सीएम के बीच मुख्यमंत्री पद के लिए एक सीक्रेट पेक्ट किया था..!!
पहले सिद्धारमैया को सीएम बनाया गया. अब डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार का मौका आ गया है. हमेशा की तरह कांग्रेस नेतृत्व पैसे और पावर के साथ दिख रहा है. सीएम की कुर्सी आधे-आधे समय के लिए विवाद थामने के लिए भले पैक्ट किया हो लेकिन बाद में तो जो पहले बन गया वह पार्टी का कमाऊ पूत बन जाता है.
सिद्धरमैया ने भी वही किया है. यद्यपि शिवकुमार पैसे की दृष्टि से कमजोर नहीं है. वह कांग्रेस को संकट के समय मदद भी करते रहे हैं.
कर्नाटक में ढाई ढाई साल पैक्ट अब पार्टी के लिए खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है. ऐसा कहा जा रहा है कि, ज्यादा विधायक मुख्यमंत्री के रूप में सिद्धारमैया के साथ हैं लेकिन डिप्टी सीएम भी इतनी राजनीतिक हैसियत तो रखते हैं कि वह कांग्रेस की सरकार को अस्थिर कर सकें.
अब इसमें भी कोई संदेह नहीं बचा है कि राहुल गांधी ने ढाई ढाई साल पैक्ट किया था. शिवकुमार सोशल मीडिया पोस्ट में साफ-साफ कह रहे हैं कि, बात पर कायम रहना सबसे बड़ी बात होती है. इशारा, उनके साथ किए गए वादों को पूरा करने के लिए है.
पहले तो सीएम इस तरह के किसी अघोषित समझौते की बात से ही इनकार कर रहे थे लेकिन अब वह यह कह रहे हैं कि, इस विषय पर आलाकमान फैसला करेगा. तकनीकी रूप से देखा जाएतो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष आलाकमान होते हैं, जो कर्नाटक से ही आते हैं. लेकिन वास्तविक कमान तो राहुल गांधी के पास है.
ऐसा बताया जा रहा है कि, दो दिनों बाद दिल्ली में सीएम और डिप्टी सीएम को चर्चा के लिए बुलाया गया है. उच्च स्तरीय बैठक में इस मामले पर फैसला किया जाएगा.
कांग्रेस का यह संकट अब ऐसे स्थान पर पहुंच गया है कि, कोई भी निर्णय पार्टी को लाभ नहीं पहुंचाएगा. निर्णय चाहे सिद्धारमैया के पक्ष में हो या खिलाफ, दोनों ही परिस्थितियों में एक नेता बगावत करेगा. मल्लिकार्जुन खड़गे अपने बेटे की राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं.
अब देखना यह हैकि राहुल गांधी अपने कमिटमेंट को पूरा करते हैं या नहीं. इतिहास को अगर देखा जाए तो गांधी परिवार किसी भी बड़े संकट में कोई समाधान निकालने में सक्षम नहीं होता.
राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच भी ऐसा ही हुआ और ऐसी ही स्थिति छत्तीसगढ़ में भी पार्टी के साथ हुई. मध्य प्रदेश में तो ज्योतिरादित्य सिंधिया राहुल गांधी के करीबी माने जाते थे. सिंधिया और कमलनाथ के बीच लंबे समय तक विवाद चला लेकिन राहुल कोई भी समाधान खोजने में सफल नहीं हुए.
हिमाचल प्रदेश में भी मुख्यमंत्री और प्रतिभा सिंह के बीच खुला टकराव चल रहा है. कांग्रेस की यही शैली रही है कि, जो सत्ता में है, उसके साथ खड़े रहो और पावर का स्वयं के लिए उपयोग करो. पंजाब में भी कांग्रेस ने अमरिंदर सिंह को हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया था, जिसका खामियाजा पार्टी को हार के रूप में भुगतना पड़ा.
राहुल गांधी के अलावा कांग्रेस के पास कोई दूसरा चेहरा नहीं है लेकिन वह पार्टी गतिविधियों को संभालने में सक्षम साबित नहीं हो रहे हैं. निर्णय लेने में उनकी अक्षमता कई बार स्थापित हुई है. जब भी चुनौती का समय होता है तब वह चुप्पी साथ लेते हैं.
वैसे भी कांग्रेस का इतिहास सरकारों की एंटी इनकम्बेसी का है. कई दशकों से दिग्विजय सरकार को छोड़ दिया जाए तो कोई भी कांग्रेस की सरकार लगातार दोबारा सत्ता में नहीं आई. यह इतिहास अगर जारी रहता है तो वैसे भी कर्नाटक, हिमाचल और तेलंगाना में अगली सरकार कांग्रेस की बनना मुश्किल है.
इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि, राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी से मुकाबले के लिए एकमात्र कांग्रेस ही पार्टी है. बाकी जो भी दल हैं, वह केवल अपने-अपने राज्यों में मजबूत है. संगठन सृजन के नाम पर राहुल गांधी सतही प्रयास करते दिखाई पड़ते हैं लेकिन उनका जमीनी प्रभाव नगण्य होता है.
कांग्रेस के सामने बीजेपी एक ऐसा दल है जो हमेशा चुनावी मोड में रहता है. संगठन जिसका आधार है और जिसके पास नेतृत्व की लंबी कतार है.
कांग्रेस में क्षेत्रीय नेतृत्व लगभग रिटायरमेंट की स्थिति में है. जो नए नेतृत्व आगे बढाए जा रहे हैं, उनके चेहरे इतने प्रभावी नहीं साबित हो रहे हैं. जहां उनकी सरकार बन जाती है वहां कांग्रेस आपस में लड़-भिड़कर सरकार गंवा देती हैं. कर्नाटक भी इसी मुहाने पर दिखाई पड़ रहा है.
यद्यपि बीजेपी के पास वहां इतने विधायक नहीं है कि, आसानी से कांग्रेस की सरकार तोड़कर दूसरी सरकार बनाई जा सके. कर्नाटक के हालात जिस तरह बढ़ रहे हैं, उससे यही लग रहा है कि इससे कांग्रेस को बड़ा नुकसान होगा.
कांग्रेस की सरकारों का संचालन जिस तरह के पावर पैक्ट के तहत होता है वह भी कांग्रेस के लिए खतरा पैदा करते हैं. सरकारों का एटीएम के रूप में उपयोग कांग्रेस नेताओं का पुराना ट्रेंड रहा है. कर्नाटक पर पार्टी का पूरा दारोमदार टिका हुआ है.
संविधान लहराने वाले राहुल गांधी को कर्नाटक के सीएम और डिप्टी सीएम के बीच सीक्रेट पावर पैक्ट संविधान के साथ मिस कंडक्ट नहीं दिखता. क्या संविधान ऐसे सीक्रेट पैक्ट की इजाजत देता है. ऐसे पैक्ट ही सत्ता की दलाली का कारण बनते हैं.
कर्नाटक में कांग्रेस के लिए एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई है. जो भी होगा, मिले किसी को भी, गंवाना कांग्रेस को पड़ेगा. पावर का सीक्रेट पैक्ट संविधान के साथ चोरी ही कहा जाएगा.