एमपी कांग्रेस में तीन बड़ी नियुक्तियां हुई है. यूथ कांग्रेस, महिला कांग्रेस और सेवादल के नए अध्यक्ष बनाए गए हैं. तीनों नियुक्तियों में शोर भले राहुल गांधी का हो लेकिन जोर कमलनाथ का ही दिखाई पड़ रहा है..!!
कहने के लिए यूथ और महिला कांग्रेस के अध्यक्षों का ऑनलाइन चुनाव हुआ है. यूथ कांग्रेस अध्यक्ष घनघोरिया और महिला कांग्रेस अध्यक्षा रीना बौरासी पर कमलनाथ का वरदहस्त है. इन दोनों के पहले जो नेता इन पदों पर काम कर रहे थे, वह दूसरे खेमे के थे.
ऑनलाइन निर्वाचन प्रक्रिया पारदर्शिता के लिए की जाती है. जो दोनों चुनाव हुए हैं उनमें राजनीतिक परिवार से ही अध्यक्ष चुने गए हैं. यश घनघोरिया के पिता कमलनाथ मंत्रिमंडल में मंत्री रहे हैं. रीना बौरासी के पिता कांग्रेस से सांसद रहे हैं. इन दोनों नेताओं का नाम सार्वजनिक रूप से सक्रिय नेताओं में अब तक तो नहीं गिना जा रहा था.
यह भी संयोग है कि, ऑनलाइन निर्वाचन प्रक्रिया में परिवार के ही युवा नेताओं को विजयी होने का मौका मिला है. इस पूरी प्रक्रिया में ऑनलाइन मेंबरशिप, उसमें लगने वाले धन की प्रक्रिया प्रायोजित की जा सकती है. धन की दृष्टि से अगर देखा जाएगा तो मध्य प्रदेश में कमलनाथ की बराबरी करने वाला कांग्रेस में दूसरा नेता दिखाई नहीं पड़ता है. अगर ऑनलाइन निर्वाचन किसी भी प्रकार से प्रायोजित है तो फिर यह राहुल गांधी की पारदर्शिता और नए नेतृत्व को आगे बढ़ाने की रणनीति को असफल करने वाला है.
कांग्रेस का दशकों का यही इतिहास रहा है कि राज्य नेतृत्व में चुनाव के ऐन पहले बदलाव करती है. जो नेता चुनाव के पहले काम करता है उसे चुनाव के समय बदल दिया जाता है. वर्ष 2008 के चुनाव के पहले सुरेश पचौरी लाया गया था. उसके बाद सुभाष यादव, कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव और फिर वर्ष 2018 के चुनाव का ठेका कमलनाथ को सौंपा गया था.
पिछले विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद नए अध्यक्ष के रूप में जीतू पटवारी को मौका दिया गया है. अगला चुनाव वर्ष 2028 में होना है. कांग्रेस की परंपरा के मुताबिक चुनाव के पहले नया अध्यक्ष लाया जा सकता है. उसकी भूमिका इन नियुक्तियों में दिखाई पड़ रही है.
सेवा दल के अध्यक्ष के रूप में अवनीश भार्गव को मौका दिया गया है. इन्हें सुरेश पचौरी का करीबी माना जाता है. जब वह कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे, तब भार्गव स्वाभाविक रूप से कमलनाथ के साथ जुड़ गए. उनकी नियुक्ति में कमलनाथ की ही भूमिका देखी जा रही है.
इन नियुक्तियों को अगर भविष्य की रणनीति के रूप में देखा जाएगा तो यह कहा जा सकता है कि, अगले चुनाव के पहले जो भी नेतृत्व लाया जाएगा उसकी डोर कमलनाथ के हाथों में रह सकती है. इसका सबसे बड़ा कारण यह माना जाता है कि, चुनाव के लिए जरूरी धन का मैनेजमेंट कमलनाथ के अलावा कोई भी नहीं कर सकता.
कांग्रेस खासकर गांधी परिवार की यह बहुत पुरानी रणनीति है कि राज्यों में ऐसे ही नेता को कमान सौंपी जाए जो पैसा लगाए, चुनाव जिताए, सत्ता संभाले और फिर सत्ता का बंदरबांट चलता रहे. इस दृष्टि से भी कमलनाथ ही उपयुक्त उम्मीदवार दिखते हैं.
उम्र के लिहाज से ऐसा माना जा सकता है कि अब शायद वह कोई बड़ी भूमिका नहीं निभा पाए लेकिन राजनीति में पुत्र मोह से वह भी ग्रसित हैं. पुत्र नकुलनाथ पिछला लोकसभा चुनाव पराजित हो चुके हैं लेकिन उनकी भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा है.
राहुल गांधी ने एमपी के कांग्रेस संगठन में जो भी प्रयोग किया वह फलीभूत होता साबित नहीं हुआ. आज मध्य प्रदेश में कांग्रेस का एक भी एमपी नहीं है. कमलनाथ के अलावा दिग्विजय सिंह दूसरे बड़े नेता हैं, जिनका कांग्रेस की चुनावी जीत में बड़ा रोल हो सकता है. उनकी महत्वाकांक्षा भी अपने विधायक बेटे को आगे बढ़ाने की है.
जयवर्धन सिंह लो-प्रोफाइल में अपनी राजनीतिक इमेज बनाए हुए हैं. फिर भी उनके भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए उन्हें कमजोर करने की लगातार कोशिश होती रहती है. इसी के तहत उन्हें गुना का जिला अध्यक्ष बनाया गया है.
कांग्रेस के पास राज्य में फ्रेश और क्लीन फेस का संकट है. राहुल गांधी जिन चेहरों को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, उन पर इतने बैगेज हैं कि उन्हें जनता का भरोसा हासिल होना कठिन है. वर्तमान अध्यक्ष तो पिछला विधानसभा चुनाव ही पराजित हो गए थे. राहुल गांधी से करीबी के कारण ही उन्हें अध्यक्ष बनने का मौका मिला.
इसी प्रकार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष जातीय समीकरण के चलते बनाए गए हैं. उनके साथ भी विवादों की लंबी फेहरिस्त है.
कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के चेहरों पर चुनावी सफलता संदिग्ध लगती है. ऐसा लगता है कि कांग्रेस में योग्यता को दरकिनार किया जाता है. अभी जो दो नए अध्यक्ष बनाए गए हैं, वह भी राजनीतिक परिवार से ही आते हैं. इसका मतलब है कि कांग्रेस में राजनीति की योग्यता परिवारों से प्रारंभ होती है और उन्ही पर खत्म.
यह कोई मध्य प्रदेश में ही नहीं है. यह तो कांग्रेस की राष्ट्रीय समस्या बन गई है. कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने पार्टी में वंशवादी राजनीति के खिलाफ खुलकर अपना पक्ष रखा है. वह तो लगातार कह रहे हैं कि, योग्यता को जब तक प्राथमिकता नहीं मिलेगी तब तक पार्टी फिर से खड़ी होना मुश्किल है.
राहुल गांधी जब भी मध्यप्रदेश कांग्रेस को लेकर बात करते हैं तो उनकी स्क्रिप्ट तो बहुत अपील करती है लेकिन जमीन पर उसका उल्टा ही होता है.कमलनाथ से राहुल गांधी की नाराजगी सार्वजनिक रूप से दिखाई पड़ी थी. अब नई नियुक्तियों में कमलनाथ का जोर भी दिखाई पड़ रहा है. कांग्रेस नव संगठन सृजन अभियान में जिन नेताओं को लंगड़े घोड़े के रूप में राहुल गांधी ने इंगित किया था, उनके बिना कांग्रेस में कोई नेता ठीक से चलता हुआ दिखाई नहीं पड़ता.
यूपी, बिहार, बंगाल, तमिलनाडु में कांग्रेस कई दशकों से दहाई पर टिकी हुई है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस का जनाधार काफी मजबूत है. कांग्रेस और बीजेपी के बीच में मतों का अंतर बहुत अधिक नहीं है. इनको साधना कांग्रेस के लिए बहुत कठिन नहीं है लेकिन शायद कांग्रेस में पार्टी के लिए नहीं बल्कि नेता खुद के लिए काम करते हैं. जहां स्वयं का स्वार्थ पार्टी से ऊपर हो जाता है वहां टिकट देने में गड़बड़ी होती है. फिर बगावत चालू हो जाती है जीतते जीतते कांग्रेस प्रयास करके अपना चुनाव हार जाती है. ऐसे दृश्य कई राज्यों में देखे गए हैं.
कांग्रेस अपनी परंपरा तोड़ेगी तभी वर्तमान अध्यक्ष चुनाव के समय बने रह सकते हैं. नियुक्तियां में कमलनाथ का जोर, यह समझने के लिए काफी है कि, कांग्रेस परंपरा पर ही चलेगी. कांग्रेस की धार और रफ्तार, आपसी तकरार से आगे बढ़ती दिखाई नहीं पड़ती.
कमलनाथ ने आलाकमान से अपने करीबी को विधानसभा में कांग्रेस का मुख्य सचेतक बनवा लिया है.