कपालेश्वर महादेव—महाकालवन का वह तपस्थल जहाँ आज भी गूँजती है युगों पुरानी आह्वान-ध्वनि..!!
त्रेता युग की एक अत्यंत दुरूह, दिव्य और रहस्यपूर्ण कथा आज भी उज्जैन के बिलोटीपुरा स्थित कपालेश्वर महादेव मंदिर के पवित्र प्रांगण में जीवंत अनुभव होती है। यह वही महाकालवन है—जिसे पुराणों में देवों, ऋषियों और स्वयं महादेव की तपस्या का परम ध्यानस्थल कहा गया है। यहाँ की नीरवता में मानो युगों की साँसें गूँजती हैं, और गर्भगृह में प्रतिष्ठित लिंग से शिव की तप-शक्ति शाश्वत अग्नि की भाँति स्पंदित होती है।
पुराणों के अनुसार एक बार सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने अपनी चित्त-शक्ति से एक दिव्य नारी—शत्रूपा—का सृजन किया। वह सौंदर्य, पवित्रता और सृष्टि की समस्त कलाओं का मानवीय रूप थीं। किंतु यही सौंदर्य ब्रह्मा के मन को विचलित कर गया। शत्रूपा दिशा-दिशा में विचरण करती रहीं और ब्रह्मा उनका अनुकरण करते रहे।
उनके प्रत्येक रूप की ओर देखने के लिए ब्रह्मा ने चार दिशाओं में चार मुख उत्पन्न कर लिए। किंतु कामना और अहंकार के बढ़ने पर पंचम मुख भी प्रकट हो गया। देव-लोक में यह आचरण अनाचारी और अस्वीकार्य था।
ब्रह्मा की इस वृत्ति को देखकर शिव का धर्मस्वरूप जागृत हुआ। विश्व के संहारकर्ता, महादेव, जिन्होंने सदैव मर्यादा और सत्य की रक्षा का व्रत निभाया है, उन्होंने ब्रह्मा के अहंकारजन्य पंचम मस्तक का छेदन कर दिया।कथा कहती है कि जैसे ही वह छिन्न मस्तक महादेव के हाथों में आया, वह उनसे चिपक गया—अविच्छेद्य, अविचल। यह केवल अस्थि का टुकड़ा न था; यह ब्रह्म-हत्या का दोष बनकर शिव के तेज को भी शमित करता रहा। अनेक लोकों में भ्रमण, तीर्थों के दर्शन और तप के पश्चात भी दोष का शमन नहीं हुआ।
एक दिव्य क्षण में आकाशवाणी गूँजी—“हे महाकाल! महाकालवन में गजरूप के समीप जो अप्रकट दिव्य लिंग विराजमान है, उसके दर्शन और पूजन से ही ब्रह्मा-कपाल का दोष दूर होगा।”
शिव ने देववाणी का पालन किया और उज्जैन के महाकालवन में अवतरित हुए। इसी वन के तप-स्थल पर शिव ने सनातन साधना की एक ऐसी तीव्र अग्नि प्रज्वलित की, जिसकी तप्त ऊर्जा आज भी इस स्थली के कण-कण में अनुभव की जा सकती है।
कथा कहती है कि शिव की तपस्या जब चरम सीमा पर पहुँची, तब एक पावन क्षण आया कि महादेव के कर-कमलों से ब्रह्मा का कपाल पृथ्वी पर गिर पड़ा। उसी क्षण वह दोष भस्म हुआ और यह स्थल पाप-मोचन तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
समय बीतने पर जब ब्राह्मणों ने महादेव से यह कथा सुनी, तो उन्होंने धरती में दबे पड़े उस दिव्य लिंग को पुनः प्रकट किया। उसके नित्य पूजन से उनके स्वयं के पाप नष्ट हो गए—मानो शिव की तपस्या अब भी उस लिंग में स्पंदित हो रही हो।
आज कपालेश्वर मंदिर बाहर से भले साधारण प्रतीत होता हो, किंतु इसका गर्भगृह युगों की आध्यात्मिक ऊर्जा से स्पंदित है। यहाँ का वातावरण शिव की उस अद्भुत साधना का मौन साक्षी है जिसने ब्रह्म-हत्या जैसे महापाप का निवारण किया।विशेष रूप से चतुर्दशी की रात्रि को यहाँ दिव्य शक्ति का विशेष वास माना गया है।उस दिन जलाभिषेक ,दुग्धार्चना,बेलपत्र,तिल-सेवन इन सबका फल पाप-शमन का प्रत्यक्ष माध्यम बताया गया है।
कपालेश्वर महादेव का यह पवित्र स्थल केवल कथा नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि का सनातन संदेश है, कि धर्म का मार्ग कभी भी देवों के लिए भी सरल नहीं होता और तप ही वह अग्नि है जो पाप, भ्रम और अहंकार को भस्म कर देती है।यहाँ आने वाला हर श्रद्धालु मानो शिव की उसी अमर तप-शक्ति का स्पर्श प्राप्त करता है।