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कांग्रेस ने ‘84 बार’ बदला संविधान

सार

    लोकसभा चुनाव में कांग्रेस संविधान और लोकतंत्र को बचाना अपना एजेंडा बता रही है. कांग्रेस का आरोप  है कि, बीजेपी अगर चुनाव जीतती है, तो संविधान बदल दिया जाएगा? संविधान का सेकुलर स्वरूप समाप्त कर दिया जाएगा? आरक्षण खत्म करने का झूठा डर भी दिखाया जा रहा है..!!

janmat

विस्तार

    कांग्रेस भारत के संविधान को बदलने वाला सबसे बड़ा दल रहा है. अभी तक कांग्रेस की सरकारों ने 84 बार भारत के संविधान को बदला है. बीजेपी की सरकारों ने अब तक केवल 22 बार संविधान में संशोधन किया है. पूरी दुनिया में सर्वाधिक संशोधन वाला संविधान भारत का ही है.      

    धर्म निरपेक्षता और बराबरी के लिए विभिन्न समुदायों को आरक्षण की व्यवस्था भारतीय संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है. भारी बहुमत के बाद भी बीजेपी संविधान की मूल संरचना में बदलाव नहीं कर सकती है. इस बदलाव की कोई आवश्यकता भी नहीं है. सेकुलर संविधान की छत्रछाया में ही हिंदुत्व की राजनीति चरमोत्कर्ष पर पहुंची है. संविधान के सेकुलर स्वरूप को समाप्त करने की गलती बीजेपी कभी भी नहीं कर सकती है.

    ग्लोबल पॉलिटिक्स में सेक्युलरिज्म से हटना किसी भी राजनीतिक दल के लिए संभव नहीं है. जब सेकुलरिज्म पर कायम रहते हुए हिंदुत्व की राजनीति अपने चरम पर पहुंच रही है, तो फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सेकुलर बने रहते हुए भारत के हिंदुत्व की विचारधारा को जब मजबूती दी जा सकती है तो फिर संविधान की मूल संरचना को छेड़ने की आवश्यकता ही क्या है?

    संविधान में बदलाव का कांग्रेस द्वारा दिखाया जा रहा डर, पूरी तरह से कांग्रेस का राजनीतिक डर है. संविधान के कारण ही यह संभव हुआ है कि बीजेपी की स्पष्ट बहुमत की सरकार अपनी विचारधारा को देश में विस्तार दे पा रही है. औपचारिक रूप से धर्मनिरपेक्षता पर कायम रहते हुए राजनीति में वास्तविक रूप से हिंदू राज्य की कल्पना संविधान के अंतर्गत पहले से ही मौजूद है.  धर्मनिरपेक्षता और बहुसंख्यकवाद के फॉर्मूले को छोड़ने की क्या आवश्यकता है? जबकि यह व्यावहारिक राजनीति में सफल हो रहा है.

    विपक्षी दल चुनाव में बीजेपी सरकार के खिलाफ गवर्ननेंस से जुड़ा कोई मुद्दा स्थापित नहीं कर पा रहे हैं, तो यह डर फैला रहे हैं, कि भाजपा भारत को न केवल  हिंदू राज्य बना सकती है बल्कि संविधान में भी  निहित विभिन्न जातियों के नौकरी आरक्षण को भी खत्म कर सकती है? 

    पीएम नरेंद्र मोदी गया की चुनावी सभा में दृढ़ता के साथ कह चुके हैं, कि बीजेपी या मोदी की क्या बात करें संविधान के रचयिता बाबा साहेब अंबेडकर भी संविधान को बदल नहीं सकते. संविधान को लेकर झूठ फैलाया जाना बंद किया जाना चाहिए. मोदी ने यहां तक कहा, कि भाजपा ने संवैधानिक सिद्धांतों के प्रति अपने सर्वोच्च सम्मान को दर्शाते हुए संविधान दिवस की परंपरा शुरू की है.

    संविधान में संशोधन से अधिक सामान्य कुछ भी प्रक्रिया नहीं होती. अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने 79वे  से 92वें  तक 14 संवैधानिक संशोधन लागू किया. मोदी सरकार ने 99वें से 106वें  तक 8 संशोधन लागू किए हैं. क्योंकि संशोधनों के लिए संसद के दोनों सदनों के दो तिहाई और राज्य सरकारों के बहुमत की मंजूरी की आवश्यकता होती है. मोदी सरकार द्वारा किए गए अधिकांश संशोधनों को विपक्ष के अधिकतर  दलों का समर्थन प्राप्त था. जिनके बिना एनडीए के पास आवश्यक संख्या की कमी होती. राजनीतिक सर्वसम्मति से संवैधानिक संशोधन नियमित रूप से होते रहते हैं.

    मोदी सरकार द्वारा किए गए संविधान संशोधनों पर अगर नजर डाली जाए, तो सबसे महत्वपूर्ण संशोधन कश्मीर में धारा 370 हटाने का रहा है. मोदी सरकार ने जीएसटी लागू करने के लिए संविधान संशोधन किया. आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए सरकारी नौकरी और शैक्षणिक पदों में 10% आरक्षण के लिए संविधान संशोधन किया गया.

    मोदी सरकार का अंतिम संविधान संशोधन महिलाओं के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभा में सीटें आरक्षित करने का रहा है. संविधान में संशोधनों के इस लंबे इतिहास को देखते हुए यह कहा जा सकता है, कि  सर्वसम्मति और जरूरत के मुताबिक संविधान में संशोधन तो होते रहेंगे. लेकिन आरक्षण और धर्मनिरपेक्षता को खत्म करने के लिए संविधान में बदलाव नहीं किया जा सकता.  यह दोनों संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है. 

    सुप्रीम कोर्ट भी इसी प्रकार का विचार व्यक्त कर चुका है, कि संविधान की मूल संरचना को नहीं बदला जा सकता है. भारत की राजनीति अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण और बहुसंख्यकों के संतुष्टीकरण पर केंद्रित हो गई है. बहुसंख्यकों के प्रति बीजेपी के दृष्टिकोण को अल्पसंख्यकों से जोड़कर सांप्रदायिक नफरत फैलाने और हिंदू राज्य की वकालत करने के रूप में स्थापित करने की कोशिशें  बहुत पहले से बीजेपी विरोधी दलों द्वारा की जा रही है.

    क्या यह केवल समय की बात है, कि भाजपा औपचारिक रूप से धर्मनिरपेक्षता त्याग दे? पार्टी में कई लोग ऐसा विचार रखते होंगे. लेकिन भारत के लोग धर्मनिरपेक्ष आचरण के साथ एक वास्तविक हिंदुत्व विचारधारा का राज्य पाकर  निश्चित रूप से खुश हैं.

    बीजेपी के विस्तार के लिए सेकुलर संविधान ही कारगर रहा है. धर्मनिरपेक्षता के नाम पर तुष्टीकरण की राजनीति की ऐतिहासिक गलतियों के कारण बहुसंख्यकों में आई राजनीतिक जागरूकता बीजेपी के उत्कर्ष का आधार है. ऐसा बताया जाता है, कि बीजेपी के सदस्यता फार्म में प्रतिज्ञा की आवश्यकता होती है. इस प्रतिज्ञा में यह शपथ ली जाती है,कि ‘मैं इसकी सदस्यता लेता हूं. एक धर्मनिरपेक्ष राज्य और राष्ट्र की अवधारणा जो धर्म पर आधारित नहीं है’.

    वास्तव में भाजपा की अपनी पार्टी के संविधान की शुरुआत ‘भारत के संविधान के प्रति विधि द्वारा स्थापित और समाजवाद धर्मनिरपेक्षता एवं लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखने का वायदा करती है’. यदि भाजपा ने धर्मनिरपेक्षता को अस्वीकार करने के लिए अपनी पार्टी के संविधान में संशोधन नहीं किया है, तो क्या वह भारतीय संविधान में ऐसा संशोधन कर सकती है?

    भाजपा उन्ही राजनीतिक रणनीतियों पर आगे बढ़ रही है, जिससे पार्टी को बहुत राजनीतिक फायदा हुआ है. उसमें सेकुलर संविधान का समर्थन और तुष्टीकरण की राजनीति का विरोध शामिल है. कांग्रेस ने जिस प्रकार की धर्मनिरपेक्षता पर आधारित शासन देश में चलाया है. जिसमें तुष्टिकरण को प्रमुखता दी गई है. देश के संसाधनों पर अल्पसंख्यकों को पहला अधिकार का सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है. सभी के लिए समान कानून की बजाय पर्सनल ला को प्रोत्साहन दिया गया है.

    अलग-अलग धर्म के लोगों के लिए गवर्नेंस की अलग-अलग पद्धतियों को विकसित किया गया है. अगर ऐसा नहीं किया गया होता और ईमानदारी के साथ धर्मनिरपेक्षता को शासन का आधार बनाया गया होता, तो फिर शायद भारतीय राजनीति में ऐसा दौर नहीं आता, कि कांग्रेस को राजनीतिक अस्तित्व के लिए संविधान और लोकतंत्र खतरे में होने का डर फैलाने की आवश्यकता पड़ती. 

    भारत का लोकतंत्र सेकुलर है और सेकुलर रहेगा. संविधान से सेकुलरिज्म को कोई भी हटा नहीं सकता है. हटाने की कोई आवश्यकता भी नहीं है. बिना हटाए ही जब बहुमत पर संसदीय प्रणाली में सरकारें बनती हैं, तो संविधान के असली स्टेट होल्डर भारत के लोग अपनी अपेक्षा और आकांक्षा के लिए अपने जनादेश से अपने लिए वांछित सरकार का गठन कर लेंगे.

    भारत के लोग इतने कमज़ोर नहीं है, कि कोई भी सरकार भारत के संविधान की मूल संरचना को बदलने की हिम्मत कर सके. तुष्टिकरण की गलती जब एक राजनीतिक दल को बर्बादी के कगार तक पहुंचा सकती है, तो फिर जन-भावनाओं के विपरीत संविधान बदलने की गलती तो कोई भी राजनीतिक दल नहीं कर सकता. लोकसभा चुनाव में मुखर और आत्मविश्वासी भारत को विकसित देशों की कतार में खड़ा करने की आशा ज्यादा प्रभावी दिखाई पड़ रही है.