• India
  • Thu , Oct , 24 , 2024
  • Last Update 11:00:PM
  • 29℃ Bhopal, India

कांग्रेस का घर घर चलो अभियान खेला, पहले उन को जोड़ो जिनको है धकेला

सार

कांग्रेस में घर घर चलो अभियान का खेला हो रहा है, यह कैसा अभियान? किसके घर जाना है और क्यों जाना है? कहीं  इसका संदेश यह तो नहीं कि कांग्रेसियों घर चलो, पार्टी में कुछ नहीं रखा|

janmat

विस्तार

अभियान की शुरुआत के साथ ही कांग्रेसियों के बीच गुटों के बीच जो संघर्ष सामने आये हैं वह कांग्रेस के वर्तमान  हालातों को समझने के लिए काफी हैं| 

कांग्रेस के कप्तान कमलनाथ ने अभियान की शुरुआत कार में बैठकर ही कर दी| बीजेपी आरोप लगाती है कि जब वे सरकार में मुख्यमंत्री थे तब वातानुकूलित कमरा छोड़ कर जनता के बीच नहीं गए, आज किसी के घर क्यों जाएंगे? 

कांग्रेस का सारा विवाद ही घर के अंदर का है| आज कांग्रेस की जो हालत है वह जनता के कारण नहीं, कांग्रेस के अपने घर के कारण है| राजनीतिक दल जनकेंद्रित राजनीति के जरिए सत्ता तक पहुंचता है, सत्ता पाने पर पार्टी को मजबूती मिलती है|

मध्य प्रदेश कांग्रेस पहली राजनीतिक इकाई है जो सत्ता में आने के बाद मजबूत नहीं बल्कि कमजोर होती गई| घर के चिराग से घर को ही आग लग गई| घर का मुखिया ही पार्टी का घर बचा नहीं पाया| एक बार जो घर टूटा वह अभी भी बिखरा हुआ ही लगता है| अभी तक पार्टी के बड़े नेता घर टूटने के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार मानते हुए आपस में धक्का-मुक्की कर रहे हैं|

जनता के बीच जाने के लिए घर-घर चलो अभियान से अधिक, कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के घर घर जाने की जरूरत है| कांग्रेस के बड़े नेताओं में कांग्रेस के कप्तान कमलनाथ के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पीसीसी के पूर्व अध्यक्ष सुरेश पचौरी, अरुण यादव, कांतिलाल भूरिया, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और सबसे  पुराने विधायक पूर्व मंत्री डॉक्टर गोविंद सिंह हैं| कांग्रेस के कप्तान इन नेताओं के घर कब कब गए? बड़े नेताओं के बीच मीटिंग में मुलाकात होती होगी, लेकिन घर जाने का सिलसिला तो दिखाई नहीं पड़ता| दिग्विजय सिंह तो मुख्यमंत्री रहते हुए विरोधी दल के मुख्यमंत्रियों के घर जाते रहते थे| मजबूर करने वाली परिस्थितियों के अलावा कांग्रेस के सभी बड़े नेता, एक दूसरे के घर क्या कभी जाते हैं? क्या कांग्रेसी नेताओं के बीच में भावनात्मक संबंध दिखाई पड़ता है?

“कांग्रेस” संगठन कम गुटों का गठबंधन ज्यादा लगता है| कांग्रेस और भाजपा में यही अंतर है| आज़ादी की पार्टी  व्यावसायिक  ज्यादा, भावनात्मक गतिविधियों पर कम भरोसा करती है| घर-घर चलो अभियान की शुरुआत बड़े नेताओं के घर घर जाने से की जाती तो ज्यादा बेहतर होता| जिन लोगों को पार्टी में किनारे किया गया है उनके पास जाकर उन्हें जोड़ने का फिर से प्रयास होता तो समझ में आता|

कांग्रेस सत्ता में आई तो कई वरिष्ठ नेताओं को किनारे लगाया गया था| गठबंधन के हिसाब से दुसरे गुटों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को हटाने बिठाने और निपटाने का अभियान कांग्रेस की शायद इनबिल्ट स्ट्रेटजी होती है|

कांग्रेस क्षेत्रीय नेताओं को BOT मॉडल पर पार्टी सौंप देती है| मध्य प्रदेश में आज कल ऐसा ही महसूस हो रहा है| कांग्रेस के मध्य प्रदेश के वर्तमान कप्तान कांग्रेस के चाँद तक पहुंचे हुए नेता हैं| उन पर हुकुम चलाना आलाकमान के लिए भी आसान नहीं होता| एक व्यक्ति एक पद की बात करने वाली पार्टी में विधायक दल और संगठन का एक ही कप्तान  होना, इसी बात का सबूत है| पार्टी के युवा चिराग  बुजुर्गों की रोशनी में टिमटिमा  रहे हैं|

जो नेता और कार्यकर्ता किनारे किए गए थे, उन को जोड़ने का प्रयास कौन कर रहा है?

बिछड़े कांग्रेसियों के घर घर जाने और लाने की कोई राजनीति दिखाई नहीं पड़ रही| गुटों के गठबंधन की कांग्रेस में कांग्रेस के लिए निष्ठा से ज्यादा गुट के लिए प्रतिबद्धता जरूरी है|

जहां तक जनता का सवाल है, वह विपक्ष से उनके मुद्दों पर सड़क पर सरकार से लड़ाई की अपेक्षा करती है, जनता के लिए घर-घर चलो अभियान खेला का क्या मतलब है?

विपक्ष का मजबूत होना, लोकतंत्र के लिए जरूरी है, केवल दिखाने के लिए, कागजी अभियानों से, ना तो जनता का और ना ही पार्टी का भला हो सकता है| 

आजादी की पार्टी इतनी व्यवसायवादी कैसे हो सकती है?

मध्यप्रदेश कांग्रेस का भविष्य उज्जवल हो सकता है| लेकिन दिखावटी अभियान और बयान इसे कमजोर ही करेंगे| जनता की तो छोड़ ही दें| पहले कांग्रेस को कांग्रेसियों का ही मेला लगाना चाहिए| गुटों को भूलकर पार्टी को मजबूत करना चाहिए|

टि्वटर फेसबुक और सोशल मीडिया से आगे जमीन पर कांग्रेसी दिखना चाहिए| कांग्रेस में बौद्धिक नए ब्लड डालने की जरूरत है| कांग्रेस जनता के मुद्दों से कट गई लगती है| भारी भारी शब्द और डायलॉग सोशल मीडिया पर तो चल सकते हैं, लेकिन विपक्ष की राजनीति इससे नहीं चल सकती|

कांग्रेश के घर में अभी भी पर्याप्त सीलन है, उसकी दीवारों के टूटने के खतरे मौजूद हैं| कांग्रेस की कमजोर दीवार को एकजुटता के साथ, मिलजुल कर ही सुधारा जा सकता है| 

कांग्रेस की हार हमेशा गुटों की हार होती है| नेतृत्वकर्ता गुट सब को साथ रखने और सम्मान देने में ज़रा सा भी दूर हुआ तो दूसरा गुट काम दिखा देता है| कांग्रेस को बड़े नेताओं  के घर घर जाकर सभी को एक सूत्र में पिरोना होगा| कांग्रेस जब तक एकजुट नहीं होगी, तब तक न तो कांग्रेस की माला पूरी होगी और ना ही सत्ता का जाप पूरा होगा|