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जरूरी है तालमेल क्योंकि पटरी पर ही गति से दौड़ती लाइफ की रेल

सार

एमपी में नए मुख्यमंत्री की कार्य प्रणाली की चर्चा है तो पूर्व मुख्यमंत्री की गतिविधियों और बयानों पर भी बारीक नजर है. हर व्यक्तित्व की अपनी खूबी होती है लेकिन मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री की कार्यपद्धति को पुराने मुख्यमंत्री के पैमाने पर ही अभी तौला जा रहा है..!!

janmat

विस्तार

प्रदेश में नई सरकार को अभी एक माह भी पूरा नहीं हुआ है. कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं जिन पर त्वरित और कड़क फैसलों से नए मुख्यमंत्री की शासन शैली ने लोगों का ध्यान खींचा है. गुना बस हादसे में प्रमुख सचिव से लेकर आरटीओ तक सभी अधिकारियों को हटाने की घटना मध्यप्रदेश में पहली बार हुई है. दुर्घटनाएं तो पहले भी बहुत गंभीर और वीभत्स होती रही हैं लेकिन सब जिम्मेदारों को इसका खामियाजा नहीं भुगतना पड़ता था.

एक ड्राइवर को उसकी औकात दिखाने पर कलेक्टर को हटाकर नए मुख्यमंत्री ने सरकारी अमले को अपने मजबूत इरादे जता दिए हैं कि जनता के साथ संवेदनशीलता के विरुद्ध कोई भी व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. नए मुख्यमंत्री मोहन यादव पहले भी शिवराज सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री थे लेकिन उनकी यह प्रशासनिक कुशलता उभरकर नहीं आई थी. लीडर और सहयोगी में क्वालिटी बदल जाती है.

नए मुख्यमंत्री मोहन यादव अपने त्वरित फैसलों के कारण ध्यान आकर्षित कर रहे हैं तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भी चर्चा कम नहीं है. शिवराज चौहान ने मध्य प्रदेश में एक इतिहास कायम कर दिया है. लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का उनके रिकॉर्ड की निकट भविष्य में टूटने की कोई संभावना नहीं दिख रही है. उनकी एक ब्रांड वैल्यू है. उनके बयान लगातार आ रहे हैं. उनका ताजा बयान आया है कि राजतिलक होते-होते कई बार वनवास भी हो जाता है और ऐसा किसी खास उद्देश्य से होता है. शिवराज लगातार लाडली बहनों और भांजियों को अपनी ब्रांड वैल्यू से जोड़ने में जुटे हुए हैं. अपने नए सरकारी घर को शिवराज सिंह चौहान ने ‘मामा का घर’ नाम दे दिया है.

सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो और खबरें यही बताने की कोशिश कर रही हैं कि शिवराज का मूड बगावती दिख रहा है. यद्यपि जो लोग शिवराज सिंह को जानते हैं उन्हें इस बात का कोई भ्रम नहीं होगा कि संगठन के किसी भी फैसले के खिलाफ वे कोई भी विचार या कदम बढ़ा सकते हैं. यह बात जरूर है कि शिवराज सिंह दर्शनशास्त्र के प्रकांड माने जाते हैं. उन्हें धर्म अध्यात्म और शास्त्रों का भी अध्ययन और मनन है. 

इसलिए ऐसे संदर्भों का कई बार वह उल्लेख कर रहे हैं जिससे ऐसे संकेत जा रहे हैं कि जैसे उनका मन एमपी में हुए बदलाव से दुखी और द्रवित है. प्रभु श्रीराम को राजतिलक के समय ही वनवास दिया गया था. पूर्व मुख्यमंत्री की लीडरशिप में हुए चुनाव में बीजेपी को मिले प्रचंड बहुमत के बाद भी नये नेतृत्व को मौका मिलने से उनके समर्थकों को राजतिलक  के समय ही वनवास की उक्ति सर्वाधिक उपयुक्त लग रही है.

जीवन सीधी गति से नहीं चलता. जीवन में उतार चढ़ाव हमेशा होता है. जब शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया गया था तब उन्हें कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं था लेकिन उन्होंने अपनी कार्यपद्धति से प्रभु श्रीराम के वनवास से भी अधिक काल तक मुख्यमंत्री निवास पर जीवन को जिया है. जीवन में मिली इस उपलब्धि के नजरिए से उनसे अधिक राजनीतिक सफलता तो मध्यप्रदेश में अब तक किसी भी नेता को नहीं मिली है. 

सुख और दुख साथ-साथ होते हैं. केवल सुख की कल्पना करना सही दृष्टिकोण नहीं है. जब भी सुख की अनुभूति हो तब यह मानना ही जीवन की सही दृष्टि है कि दुख उसके साथ जुड़ा हुआ है. ऐसे ही जब दुःख महसूस हो यह मानना चाहिए कि भले ही दूर लेकिन सुख उसके साथ है. किसी भी व्यक्ति के लिए आसान नहीं है कि 16 वर्षों से अधिक समय तक मुख्यमंत्री के पद पर रहने के बाद फिर से पार्टी को सत्ता में लाने में सफल हो और इन अनुकूल परिस्थितियों में भी उसे पद से अलग होना पड़े. कोई बिरला ही होगा जो इस अलगाव को भी जीवन की प्रगति के पड़ाव के रूप में लेकर आगे बढ़ेगा.

शिवराज सिंह चौहान के लिए राजनीतिक संभावनाओं का अनंत आकाश अभी खुला हुआ है. अभी उनका राजनीति से रिटायरमेंट नहीं हुआ है. किसी को भी ऐसा नहीं मानना चाहिए लेकिन हर व्यक्ति के जीवन में एक समय आता है जब रिटायरमेंट रियलिटी बन जाता है. बीजेपी में ही देखा जाए तो कई दिग्गज ऐसे हैं जिन्होंने एक दौर में पार्टी को खड़ा करने में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया लेकिन आज राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी की सत्ता होने के बाद भी मार्गदर्शक के रूप में वे अपना जीवन गुजार रहे हैं. लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं को उम्र के इस पड़ाव पर मार्गदर्शक की भूमिका में रहना किसी के कारण नहीं है यह समय का फैसला है और ऐसे फैसले हर जीवन में आते हैं. 

जो आज चरम पर हैं वह भी जमीन पर आएंगे. कोई भी हिमालय की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ तो सकता है लेकिन वहां घर नहीं बना सकता. उसे जमीन पर आना ही पड़ेगा. ऐसा जीवन के हर क्षेत्र में होता है. राजनीति तो उसका सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जहां बदलाव की गति सबसे ज्यादा तेज होती है. ऐसे दौर में भी शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री के पद पर रहने का ऐसा रिकॉर्ड बनाया है जो निकट भविष्य में नहीं टूट सकेगा.

शिवराज सिंह चौहान का सक्रिय राजनीतिक जीवन फिलहाल उन्हें आराम करने में समस्या पैदा कर रहा है.उनके सामने सबसे बड़ा संकट है कि वे कुछ भी करेंगे, कुछ भी कहेंगे उसको इसी नजर से तौला जाएगा कि पद से हटने के बाद उनके ऐसे विचार पार्टी के खिलाफ जा रहे हैं. किसी को भी अपनी ब्रांड वैल्यू बनाने में बड़ी मेहनत और वक्त लगता है. उसको मिटाने में तो कोई वक्त नहीं लगता. राजनीति में धैर्य और संतुलन सबसे बड़ी ताकत होती है. शिवराज ने अभी तक तो इसी ताकत पर उपलब्धियां हासिल की हैं. 

विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य और संतुलन ही उन्हें आगे का रास्ता सुझाने और पकड़ने में कामयाब करेगा. अभी समय ऐसा है कि उनकी हर क्रिया और विचार का नेगेटिव एनालिसिस हो रहा है और किया जा रहा है. इस दौर से निकलने के लिए उन्हें बहुत सावधान और विचारशील रहने की जरूरत है. समर्थकों और प्रशंसकों को भी नियंत्रित रखने का वक्त है.

हर क्षेत्र में लगातार गति बढ़ती जा रही है लेकिन हर गति की पटरी सुनिश्चित है. रेल गति के साथ पटरी पर ही दौड़ती है. पटरी से अलग रेल के दौड़ने की कल्पना नहीं की जा सकती. राजनीति में पटरी से नीचे उतारने के लिए तो 24 घंटे एक दूसरे के लिए खिलाफ खींचतान चलती ही रहती है. कभी कोई तीर चलाता है तो कभी कोई और तीर चलाता है. राजनीति में एक जैसा महत्व हमेशा बना रहे यह कम ही होता है. उतार-चढ़ाव आता रहता है. 

शिवराज सिंह चौहान अपनी ब्रांड वैल्यू को किसी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहते हैं. लाडली लक्ष्मी और लाडली बहना योजना के जरिए बहनों और भांजियों से जो रिश्ता उन्होंने कायम किया है उसको अब सरकारी स्तर पर इवेंट और कार्यक्रमों के जरिए कंटीन्यू रखना उनके लिए शायद संभव नहीं होगा. इसलिए अपने सरकारी निवास को ही ‘मामा का घर’ बनाकर उन्होंने मामा के अपने ब्रैंड को स्थाई बनाने का प्रयास किया है.

शिवराज को न नाराज दिखना है ना उम्रदराज दिखना है. जीवन की वास्तविकताओं के साथ संगठन और पार्टी का हमराज दिखना है. जिसने अब तक दिया है वह आगे भी देगा. यही विश्वास रखना है. उन लोगों से बचना है टकराहट जिनका सपना है. 'शिव का राज' और 'मोहन का सम्मोहन' बीजेपी का सम्मोहन बने यही कहना और करना है.