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बिहार में जाति, बाहुबल में दुबका भ्रष्टाचार

सार

बिहार में चुनाव की तस्वीर साफ होती जा रही है. एनडीए और महागठबंधन के बीच मुख्य मुकाबला है. दोनों गठबंधन जाति और बाहुबल में एक दूसरे को टक्कर देते दिखाई पड़ रहे हैं. सीएम फेस किसी गठबंधन में घोषित नहीं हुआ है..!!

janmat

विस्तार

 

    एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा करता है, लेकिन अगले मुख्यमंत्री वही होंगे इसे साफ-साफ कहने से बच रहा है. महागठबंधन ने भी तेजस्वी यादव को सीएम फेस नहीं बनाया है. उन पर भ्रष्टाचार का केस है. इसमें कोई कंफ्यूजन नहीं है कि, इन्हीं दोनों चेहरों में कोई अगला मुख्यमंत्री हो सकता है. लेकिन दोनों चेहरों पर जनता में सवाल है.

    नीतीश कुमार पर उम्र का सवाल है तो तेजस्वी पर भ्रष्टाचार की तलवार लटकी हुई है. दोनों गठबंधन एक रणनीति पर काम कर रहे हैं कि, चेहरों की एंटी इनकम्बेंसी उनके परिणामों को प्रभावित नहीं करे. इसीलिए सीएम फेस घोषित करने से परहेज किया जा रहा है.

    नीतीश कुमार का जहां तक सवाल है, उनके दोनों हाथ में लड्डू हैं. उनके सहयोग से केंद्र में मोदी की सरकार चल रही है. इसलिए एनडीए को बहुमत मिलने पर नीतीश कुमार अपनी मर्जी से ही मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहेंगे. तभी यह संभव हो सकता है कि, कोई दूसरा नेता मुख्यमंत्री का पद संभाले. और वह केंद्रीय मंत्रीमंडल में शामिल हो जाएँ.  सारा समीकरण उनकी इच्छा पर निर्भर करेगा.

    एनडीए में विभिन्न घटकों की विजयी सीटों की संख्या का इसमें कोई रोल नहीं है. अगर नीतीश कुमार के साथ महाराष्ट्र जैसा खेल-खेलने की कोई भी संभावना बनी तो उनके सामने लालू यादव की राजद के साथ मिलकर फिर से सरकार बनाने का मौका रहेगा. इसलिए इस बात की कोई संभावना नहीं है कि नीतीश कुमार की इच्छा के विरुद्ध कोई भी फैसला लिया जा सके.

    एक संभावना यह बन सकती है कि, नीतीश कुमार अपने बेटे को विधान परिषद में भेजकर एनडीए की अगली सरकार में महत्वपूर्ण पद पर स्वेच्छा से शामिल कराकर स्वयं दिल्ली कूच कर जाएँ. नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच अब कोई भी कंफ्यूजन नए सिरे से विकसित होने की संभावना न्यूनतम दिखाई पड़ रही है.

    सीट शेयरिंग में भी एनडीए ने बाजी मार ली है. महागठबंधन में तो प्रथम चरण के नामांकन समाप्त होने के बाद भी सीट शेयरिंग का फार्मूला सार्वजनिक नहीं हो पाया है. प्रथम चरण में ही दस से ज्यादा विधानसभा सीटों पर महागठबंधन के घटक दल आमने-सामने दिखाई पड़ रहे हैं. परसेप्शन में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के बीच मतभेद परिस्थिति जन्य कारणों  से गहराता जा रहा है.

    महागठबंधन में सीट शेयरिंग में उलझन है, जबकि एनडीए में चुनावी कैम्पेन शुरु हो गया है. यहां तक कि योगी आदित्यनाथ सहित अन्य बड़े नेताओं की सभाएं शुरू हो गई हैं. अमित शाह ने भी एक साथ तीन दिन तक बिहार में रहकर एनडीए के बीच सारे कलपुर्जों को टाइट करने का काम कर दिया है. मोदी-नीतीश की जोड़ी एनडीए का विनिंग फार्मूला दिखाई पड़ता है.

    महागठबंधन में सारा दारोमदार तेजस्वी यादव पर टिका हुआ है. राहुल गांधी उनका सहयोग करने के बजाय बाधक के रूप में ज्यादा दिखाई पड़ रहे हैं. पप्पू यादव और लालू यादव परिवार के बीच टकराव भी महागठबंधन को चोट पहुंचा सकता है. महिलाओं का रुझान चुनाव परिणाम तय करेगा. इस मामले में जाति विभाजन भी अपना प्रभाव खो सकता है.

    नीतीश की महिला रोजगार योजना गेमचेंजर साबित हो सकती है. तेजस्वी यादव ने हर परिवार को सरकारी नौकरी देने का जो ऐलान किया है, उस पर आम लोगों के बीच भरोसा नहीं बन पा रहा है. मुस्लिम वोट बैंक राजद के पक्ष में दिखाई पड़ रहा है. पीके की जनसुराज और असदुद्दीन ओवैसी की एआइएमआइएम मुस्लिम वोट बैंक में जितना सेंध लगाएंगे वह पूरा नुकसान महागठबंधन को ही होगा.

    दोनों गठबंधन ने हर सीट पर जाति समीकरण साधने की पूरी कोशिश की है. सभी दलों ने बाहुबलियों  को प्रमुखता दी है. राजद ने तो कुख्यात सहाबुद्दीन के बेटे को टिकट दिया है. एनडीए की ओर से इसे चुनाव में जंगलराज के रूप में मुद्दा भी बनाया जा रहा है.

    बिहार में भ्रष्टाचार कोई चुनावी मुद्दा नहीं है. लालू यादव भ्रष्टाचार के मामले में सजा पा चुके हैं. चुनाव प्रक्रिया के दौरान आईआरसीटीसी मामले में उन पर आरोप तय किए गए हैं. तेजस्वी यादव पर भी भ्रष्टाचार का मुकदमा चलेगा. महागठबंधन के प्रमुख चेहरे भ्रष्टाचार से दागदार दिखाई पड़ रहें हैं. 

    इसके बावजूद चुनाव में यह गठबंधन बराबरी से खड़ा हुआ है. गठबंधन की हार या जीत में भ्रष्टाचार के इन आरोपों का कोई भी योगदान नहीं होगा. पूरे चुनाव में जातिवाद ही प्रमुखता से परिणामों को प्रभावित करेगा. उसी हिसाब से प्रत्याशियों को टिकट भी दिए गए हैं. 

    इसके पीछे नीतीश कुमार की छवि भी काम कर रही है.

    वह अकेले ऐसे चीफ मिनिस्टर हैं, जिन पर करप्शन का आरोप नहीं लगा है. अति पिछड़ा वर्ग उनके साथ मजबूती के साथ खड़ा हुआ है. भाजपा हिंदुत्व और ध्रुवीकरण के अपने आजमाए फार्मूले पर ही बिहार में भी आगे बढ़ रही है. 

    राजनीतिक रूप से सबसे जागरूक बिहार में ऑपरेशन सिंदूर के बाद पहला चुनाव है. युवाओं पर भी फोकस हो रहा है. चुनाव कैम्पेन में ध्रुवीकरण को ही बढ़ाया जाएगा. दोनों गठबंधनों के बेस वोट फिक्स हैं, उसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता. एनडीए का कोई वोटर टूट कर ना तो आरजेडी में जा रहा है और ना ही राजद से एनडीए में आएगा.

     लोकसभा चुनाव नतीजे के आधार पर देखा जाए तो भी बिहार में एनडीए का पलड़ा भारी दिखाई पड़ता है. लोकसभा चुनाव के बाद अब तक जिन भी राज्यों में चुनाव हुए हैं, वहां एनडीए ही जीता है.