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राजनीति में भ्रष्टाचार, क्या 2023 में हो सकता है सुधार?

सार

राजनीति में भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने वाले नेताओं के नजरिए से साल 2022 का आकलन किया जाए तो ऐसा परिदृश्य लगता है कि पूरा देश राजनीति की चिड़िया और राजनीति का खेत बना हुआ है। राजनीति की चिड़िया भर-भर पेट खाने में लगी हुई है। भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में बंद महाराष्ट्र के एक पूर्व मंत्री जमानत पर रिहा हो गए हैं लेकिन दिल्ली में राज्य सरकार के एक मंत्री अभी भी भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल काट रहे हैं। कोलकाता के पूर्व मंत्री जेल में हैं तो झारखंड के मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों पर जांच एजेंसियों में सफाई पेश कर रहे हैं..!

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विस्तार

जिस कोने पर नजर दौड़ाई जाए हर तरफ भ्रष्टाचार के आरोप हैं। भ्रष्टाचार की शिकायतें हैं। भ्रष्टाचार और घोटालों पर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप ऐसा आभास देते हैं कि जैसे भ्रष्टाचार के अलावा कुछ भी वास्तव में हो ही नहीं रहा है। यदि भ्रष्टाचार की बात होती है तो ये विवाद चालू हो जाता है कि राजनीति में ज्यादा भ्रष्टाचारहै या ब्यूरोक्रेसी में? 

लोकतंत्र में राजनीति शासन प्रणाली का लीडर है। ब्यूरोक्रेसी का संचालन, नियंत्रण राजनीति का दायित्व है। जहां भी ईमानदार राजनेता राजनीति का नेतृत्व करते हैं वहां भ्रष्टाचार के मामले अपने आप नियंत्रित हो जाते हैं। भारत सरकार के स्तर पर भ्रष्टाचार मुक्त गवर्नेंस का वर्तमान मॉडल ईमानदार लीडर का ही परिणाम माना जाता है। राजनीति की वर्णमाला एक ही है। यह लीडर पर निर्भर करता है कि उसी वर्णमाला से गीत निर्मित कर ले या गाली। 

राजनीति के अनुभव व्यक्तियों के हिसाब से बदल जाते हैं। नरेंद्र मोदी ने देश में भ्रष्टाचार मुक्त शासन का विश्वास पैदा करने में सफलता प्राप्त की है। भारत में 33 करोड़ देवी-देवता की मान्यता है। राजनीति में जनप्रतिनिधि देवताओं की भी कमी नहीं है। देवता इसलिए कहना उचित है क्योंकि पंच को परमेश्वर माना जाता है। राजनीति क्षेत्र में भ्रष्टाचार की बढ़ती घटनाओं ने राजनीतिक व्यवस्था पर लोगों के विश्वास को कम किया है। 

पश्चिम बंगाल में पूर्व मंत्री के संरक्षण में 50 करोड़ से ज्यादा की नकदी जांच में निकलना राजनीतिक भ्रष्टाचार के चेहरे को उजागर करती है। विभिन्न राज्यों में भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक होना भी भ्रष्टाचार का ही बायप्रोडक्ट माना जाता है। अभी राजस्थान में शिक्षक भर्ती परीक्षा का पेपर लीक हो गया जिससे लाखों विद्यार्थियों का भविष्य अधर में अटक गया है। ऐसे मामले कई राज्यों में आ चुके हैं। पश्चिम बंगाल का मामला भी भर्ती घोटाले से ही जुड़ा हुआ है। 

हमेशा यह विवाद की स्थिति होती है कि राजनीति में ज्यादा भ्रष्टाचार है या ब्यूरोक्रेसी में? नियंत्रण चूँकि राजनीति के पास होता है, इसलिए ब्यूरोक्रेसी का भ्रष्टाचार रोकने की जिम्मेदारी भी राजनीति पर ही होती है तो भ्रष्टाचार की सभी समस्याओं के लिए जिम्मेदारी भी राजनीतिक क्षेत्र पर ही रहेगी। 

राजनीतिक भ्रष्टाचार में केवल रिश्वत प्राप्त करना ही नहीं होता। पद,संसाधन और अधिकारों का दुरुपयोग भी भ्रष्टाचार की श्रेणी में ही माना जाता है। शासक किसी भी लाभ के नजरिए से बिना विधिवत प्रक्रिया के कोई भी फैसला करता है तो वह भी भ्रष्टाचार की श्रेणी में ही माना जाता है। सिस्टम में समय पर और प्रक्रिया अनुसार किसी को भी मिलने वाले लाभ को किन्ही कारणों से रोका जाना भी भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। इसके उलट किसी लाभ के लिए किसी को उपकृत करना भी इसी श्रेणी में माना जाएगा। 

इमेज बिल्डिंग के लिए संसाधनों का दुरुपयोग भी भ्रष्टाचार ही है। राजनीति में बढ़ रहा परिवारवाद भी भ्रष्टाचार की जड़ है। मित्रवाद और चाटुकारितावाद  को भी भ्रष्टाचार से अलग नहीं देखा जा सकता। रेवड़ी संस्कृति को भी लोकतंत्र के साथ भ्रष्टाचार के रूप में ही देखना ज्यादा उपयुक्त होगा। पहले के जमाने में रॉबिनहुडी पॉलिटिक्स होती थी कि अमीरों से छीनों और गरीबों में बांटों। 

आज लोकतांत्रिक सिस्टम में भी इसको बहुत ज्यादा बढ़ावा मिल रहा है। सरकारी संसाधनों और जन धन से स्वयं या दल के लाभ के लिए कोई भी प्रयास भ्रष्टाचार से अलग नहीं हो सकता। राजनीति में पेंशन और भत्ते, कार्य संचालन के लिए आवश्यक माने जाते हैं लेकिन पद और अधिकारों का दुरुपयोग राजनीति की आम समस्या बन गया है। 

राजनीतिक भ्रष्टाचार पक्ष और विपक्ष का विषय नहीं है। यह लोकतंत्र की रक्षा और देश की सुरक्षा का विषय है। केवल आरोप-प्रत्यारोप से किसी भी सुधार की संभावना नहीं हो सकती। पिछले साल को अगर भ्रष्टाचार के नजरिए से देखें तो बहुत सारी घटनाएं हमारे सामने हैं। झारखंड के आईएएस अफसर को करोड़ों रुपए की नकदी के साथ गिरफ्तार किया गया है। छत्तीसगढ़ में भी मुख्यमंत्री की उप सचिव को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। 

राज्य सरकारों द्वारा दूसरे राज्यों में अपनी उपलब्धियों का जन-धन से प्रचार भी भ्रष्टाचार की श्रेणी में माना जाएगा। दिल्ली में तो राज्य सरकार से विज्ञापन की राशि वसूली का आदेश उपराज्यपाल द्वारा दिया गया है। पहले क्या कभी कल्पना की जा सकती थी कि किसी भी निर्वाचित सरकार को इस बात के लिए कटघरे में खड़ा किया जाएगा कि सरकारी धन से उसके द्वारा दिए गए विज्ञापन पार्टी को लाभ पहुंचाने के लिए हैं। दिल्ली का यह उदाहरण कमोबेश हर राज्य में देखा जा सकता है। 

भाषा, शब्द और भाषण राजनीति की सफलता की कुंजी बन गई है। मीडिया तो भाषा और शब्दों के के ही इंद्रधनुष बनाता है। हर दिन नए-नए इंद्रधनुष जनता को परोसे जाते हैं। उनकी सच्चाई पकड़ में नहीं आती। जैसे इंद्रधनुष पकड़ में नहीं आता वैसे ही भाषा शब्द और भाषणों की सच्चाई कभी पकड़ में नहीं आती।  हर बार में नए-नए भाषण शोधार्थियों को भी ठगने के लिए पर्याप्त होते हैं। पूरी दुनिया के लोकतांत्रिक राष्ट्रों में भ्रष्टाचार एक कैंसर की तरह घुस चुका है। भारत भी उससे अछूता नहीं है। सबसे अधिक दुर्भाग्यजनक और चिंता की बात की बात यह है कि जनता को भाषणों पर ही विश्वास करना पड़ता है। 

जहां तक 2023 में राजनीतिक भ्रष्टाचार में सुधार की संभावना का सवाल है तो कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसलिए चुनावी साल में तो राजनीतिक दलों को ज्यादा पैसे की जरूरत होती है। जब भी चुनाव होते हैं चुनाव आयोग की ओर से तैनात अमले द्वारा करोड़ों रुपए की नगदी पकड़ी जाती है। चुनाव के बाद यह पता नहीं चलता कि उस नगदी का क्या हुआ? उन लोगों का क्या हुआ जिनके यहां वह पकड़ी गई थी? 

धन और पद की दौड़ किसी को भी मंजिल पर नहीं पहुंचाती। मृत्यु के साथ सब कुछ समाप्त हो जाता है। पूरे जीवन की दौड़ हाथ से छूट जाती है फिर भी जीवन का यह आश्चर्य खत्म ही नहीं होता। सिस्टम का अहंकार भी भ्रष्टाचार का एक स्वरूप माना जाएगा। कोई भी भूमिका उस सिस्टम का नतीजा है और वह सिस्टम जो भी कर रहा है वह भी सिस्टम का नतीजा है। उसे करने में  ‘मैं’ का भाव अहंकार की पराकाष्ठा है। अहंकार ही जीवन का अंधकार है। पूरा सिस्टम एक दूसरे के अहंकार का श्रृंगार करने में ही व्यस्त दिखाई पड़ता है।