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देश का राष्ट्र्गान और उसकी धुन 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Sun , 22 Mar

सार

इस राष्ट्रगान की अमर धुन के सृजक ठाकुर राम सिंह का नाम इतिहास के पन्नों में कहीं गुम-सा हो चुका है..!!

janmat

विस्तार

देश में स्वतंत्रता दिवस के स्वागत के लिए हम सब तैयार हो रहे हैं, स्वतंत्रता दिवस और राष्ट्र्गान कोई भारतीय भूल नहीं सकता। राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ के रचयिता नोबेल पुरस्कार विजेता ठाकुर रवींद्र नाथ टैगोर के नाम से तो सभी परिचित हैं, लेकिन इस राष्ट्रगान की अमर धुन के सृजक ठाकुर राम सिंह का नाम इतिहास के पन्नों में कहीं गुम-सा हो चुका है।

यही धुन जो विश्वभर के राष्ट्रगानों की धुनों में श्रेष्ठ मानी जाती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त जब लाल किले की प्राचीर से आज़ाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय तिरंगा फहराया था, उस ऐतिहासिक अवसर पर ठाकुर राम सिंह ने भी पहली बार राष्ट्रगान की धुन को अपने वायलिन पर पेश करके समूह देशवासियों को देश भक्ति की प्रचंड भावना से ओत-प्रोत कर दिया था।

इस राष्ट्रगान हेतु तैयार की गई अन्य कई धुनों में से राष्ट्रगान चयन समिति ने ठाकुर राम सिंह द्वारा तैयार की गई मौजूदा धुन को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए अपनी स्वीकृति की मोहर लगाई थी। इस धुन के चयन से पूर्व ठाकुर राम सिंह ने इसी धुन को अपने वायलिन पर महात्मा गांधी के समक्ष भी प्रस्तुत किया था जिन्होंने इसे पसंद किया था। 

ठाकुर राम सिंह मात्र 13-14 वर्ष आयु में ही सैकंड गोरखा राईफल यूनिट के बैंड में बतौर रंगरूट भर्ती हो गए थे । इस फौजी बैंड से ही इन्होंने वायलिन पर सुर साधना में परिपक्वता अर्जित की। उन्होंने आज़ादी के बाद आर्मी पुलिस बैंड के सलाहकार के रूप में लम्बे समय तक कार्य किया।

ठाकुर राम सिंह ने राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ की ऐतिहासिक धुन की रचना के अतिरिक्त एक अन्य स्वलिखित देशभक्ति के गीत, ‘कदम-कदम बढ़ाए जा, खुशी के गीत गाए जा, ये ज़िंदगी है कौम की, तू इसे कौम पे लुटाए जा’ की खूबसूरत धुन का सृजन कर अपनी संगीत प्रतिभा का लोहा मनवाया। 

ठाकुर राम सिंह ने ही राष्ट्रगान के शब्दों में आवश्यक बदलाव करते हुए इसे 52 सैकेंड में स्वरबद्ध किया तथा आज़ाद भारत की संविधान सभा ने 24 फरवरी 1950 को बाकायदा आधिकारिक रूप से अपना लिया। इसी धुन को ठाकुर राम सिंह ने 15 अगस्त 1947 को प्रथम प्रधानमन्त्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा तिरंगा फहराए जाने के बाद पेश किया था।

इसकी पुष्टि स्वयं पंडित नेहरू ने अपनी पुस्तक ‘‘अवर नेशनल एंथम’’ में लिखा है, ‘‘आज हम जो राष्ट्रीय गान गा रहे हैं, इसे हमारी सरकार ने पास किया है। इसकी धुन स्वतंत्रता पूर्व फार ईस्ट एशिया में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने राम सिंह ठाकुर से तैयार करवाई थी। आज उसी धुन पर हम लोग भारत का राष्ट्रगान गाते हैं।’’ 

ठाकुर राम सिंह का कोई स्मारक तक नहीं है। उनके गाँव के दुर्गामाता के मन्दिर में वायलिन बजाते उनकी एक प्रतिमा रखी है।  ठाकुर राम सिंह की दो पड़पोतियों अनिका और आईना ने कम उम्र में ही अमेरिका में संगीत के क्षेत्र में बड़ा नाम कमाया है तथा ठा. राम सिंह की परम्परा को जीवित रखा है। यह महान सपूत 15 अप्रैल, 2002 को शारीरिक रूप से हमसे जुदा हो गया,लेकिन ‘जन गण मन’ की धुन के कारण वे अमर हैं।