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देश : समस्याओं का हल ऐसे निकलेगा?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 13 Sep

सार

‘भर्तृहरि’ द्वारा रचित नीतिकाव्य ‘नीतिशतक’ में वर्णित लक्षण अर्थात राजनीति भी तवायफ की भांति अनेक प्रकार के रूप धारण करती है, पर देश चल रहा है..!

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विस्तार

देश में किसान, मजदूर व युवावर्ग के हितों के मुद्दों पर कोई नीति नहीं है और कोई इन पर बात भी नहीं करना चाहता। जिस सभा अर्थात् संसद में इस पर बहस हो तथा कोई योजना बने, उसे सांसद चलने नहीं देते । ‘भर्तृहरि’ द्वारा रचित नीतिकाव्य ‘नीतिशतक’ में वर्णित लक्षण अर्थात राजनीति भी तवायफ की भांति अनेक प्रकार के रूप धारण करती है, पर देश चल रहा  है । वर्तमान सियासत के लक्षण को राजा ‘भर्तृहरि’  ने सैकड़ों वर्ष पूर्व भांप लिया था। 

आम लोग अपने बेशकीमती वोट की ताकत से लोकतंत्र की संस्थाओं में प्रतिनिधि इस उम्मीद से चुनकर भेजते हैं ताकि किसान, मजदूर व युवावर्ग के हितों के मुद्दों पर बहस हो तथा कोई योजना बने। लोगों को महंगाई की गर्दिश से राहत मिले तथा युवाओं को रोजगार के साधन उपलब्ध हों, मगर सत्ता की चौखट पर पहुंचने के बाद आवाम की खिदमत के लिए किए गए वादों के आब-ए-आईना की चमक आमतौर पर धुंधली पड़ जाती है। 

दिल्ली सूबे पर हुकूमत करने वाले सियासी दल के वजीरों ने देश की राजधानी में ‘डिग्री दिखाओ’ अभियान की शुरुआत की है। यह अभियान ऐसे वक्त में शुरू हुआ है जब देश में बेरोजगारी के सैलाब में फंसकर रोजगार की जुस्तजू में सबसे बड़ी तादाद डिग्री धारक युवाओं की है। करोड़ों डिग्रीधारकों की फौज देश के रोजगार कार्यालयों के बाहर हाथों में अपनी डिग्रियां लेकर कतारों में लगी है। दुश्वारियों के दौर से गुजर रहे बेरोजगार युवाओं की आधी जिंदगी डिग्रियों की फोटोकॉपी व लेमिनेशन कराने में तथा रोजगार समाचार पत्रों का अध्ययन करके रोजगार कार्यालयों के चक्कर काटनें में ही व्यतीत हो रही है। 

प्रश्न यह है कि वीआईपी सुरक्षा के घेरे में महफूज रहने वाले प्रतिनिधियों को क्या लोगों को डिग्रियां दिखाने के लिए चुनकर भेजा है। डिग्रियों का महत्त्व अपनी जगह हो सकता है। देश को उन्नति के शिखर पर पहुंचाने के लिए जमीनी स्तर पर योगदान और संसद में ये मुद्दे उठाने वाले देने वाले सियासी रहनुमाओं की जरूरत है। 

कृषि क्षेत्र में दिन-रात संघर्ष करने वाले किसान डिग्रीधारक नहीं हैं, मगर मुल्क की 140 करोड़ आवाम को अनाज मुहैया करवाकर किसान खाद्यान्न क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बना चुके हैं। खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय खेल पटल पर देश का गौरव बढ़ा रहे हैं, लेकिन देश के सैकड़ों डॉक्टर व इंजीनियर निजी क्षेत्र व विदेशों का रुख करने को मजबूर हैं। देश के कई वैज्ञानिक ‘नासा’ जैसी एजेंसी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। भारत के कई प्रतिभावान युवा विदेशी कंपनियों के उच्च पदों पर आसीन हैं। लेकिन, देश में गुरबत से जूझ रही आवाम महंगाई व भ्रष्टाचार से परेशान है। 

प्रजातंत्र का बुनियादी स्तंभ युवावर्ग रोजगार को मोहताज है। देश में वीआईपी कल्चर व सियासी रसूखदारी का बोलबाला बढ़ रहा है। आम लोगों से जुड़े मुद्दे हाशिए पर जा रहे हैं, मगर सरकारी इदारों पर विराजमान ज्यादातर डिग्रीधारक अहलकारों की योग्यता को आरक्षण व्यवस्था के तहत सहारा दिया जाता है। देश के सियासी रहनुमाओं का मुकद्दर आम लोगों के वोट से तय होता है। जम्हूरियत के निजाम पर हुक्मरानी करने वाले सियासतदान अपने सियासी मुस्तकबिल के लिए बेचैन होकर लोकतंत्र की बुलंदी पर बैठने को बेताब हैं। शिक्षा व्यवस्था में अंग्रेजी भाषा के बढ़ते वर्चस्व से देश के निजी शिक्षण संस्थान एक बड़े शिक्षा व्यवसाय का रूप ले चुके हैं। ट्यूशन व कोचिंग के नाम पर करोड़ों रुपए का व्यवसाय हो रहा है।  आरक्षण व्यवस्था व बेरोजगारी के आगे डिग्रियों की चमक वैसे भी फीकी पड़ चुकी है।

देश में चपरासी पद के लिए हजारों की संख्या में डिग्रीधारक आवेदन करते हैं। वास्तव में मौजूदा शिक्षा पद्धति डिग्री हासिल करने तक ही सीमित रह चुकी है। व्यवहार या कौशल की शिक्षा नहीं बनी, जो युवाओं को रोजगार के साधन मुहैया कराए। इसी कारण विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी वाले देश भारत में बेरोजगारी देश के विकास में प्रमुख बाधा बन चुकी है। आखिर डिग्री धारक बेरोजगार हैं तो दोष किसका है, शिक्षा में गुणवत्ता या कौशल व हुनर की कमी, इस मुद्दे पर बहस होनी चाहिए।बहस कि जगह संसद जिसे कभी प्रतिपक्ष तो कभी सत्तारूढ़ दल चलने नहीं देते। 

आज देश को महंगाई, भ्रष्टाचार व नशाखोरी जैसी समस्याओं से राह-ए-निजात तलाशने की जरूरत है। डिग्रियों पर बेवजह विलाप करने वाले सियासतदानों को समझना होगा कि देश को गुलामी की दास्तां से मुक्त कराने के लिए तख्ता-ए-दार पर झूलने वाले इंकलाबी चेहरे डिग्रीधारक नहीं थे। जब देश की सरहदें आतंक के मरकज पाकिस्तान व विस्तारवादी शातिर चीन से सटी हों, दुनिया के दुर्दांत आतंकी संगठन देश को दहलाने की फिराक में बैठे हों, सांप्रदायिक माहौल तैयार करके देश विरोधी तत्व राष्ट्र को खंडित करने का मंसूबा तैयार कर रहे हों तो देश की अस्मिता व स्वाभिमान को महफूज रखने के लिए उम्दा कूटनीति की ज़रूरत है जो सिर्फ़ संसदीय बहस से पैदा हो सकती है।