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अदालती फैसला चुनावी हौसला

सार

गठबंधन की राजनीति में सीट शेयरिंग सबसे पेंचीदा विषय होता है. बिहार में पहले चरण का नामांकन शुरू हुए कई दिन हो गए. दूसरे चरण का भी नामांकन शुरु हो गया..!!

janmat

विस्तार

    फिर भी दोनों गठबंधनों में सीट शेयरिंग और कैंडिडेट सिलेक्शन की उलझन परेशान कर रही है. एनडीए इस बात से खुश हो सकता है, कि सबसे पहले उसने सीट शेयरिंग की घोषणा की. इस गठबंधन के सभी सहयोगियों ने इस पर संतोष व्यक्त किया. अब कैंडिडेट सिलेक्शन की चुनौती है. इसके बाद फिर उठा-पटक चालू होगी. कम से कम सीट शेयरिंग में तो एनडीए जीतता दिखाई पड़ रहा है. राजद-कांग्रेस महागठबंधन भी हर हालत में सीट शेयरिंग फाइनल ही करेगा. अब समय नहीं बचा है लेकिन चुनावी मैसेज में तो यह गठबंधन पीछे रह गया है.

      प्रशांत किशोर भी वायदे के मुताबिक सभी प्रत्याशी घोषित नहीं कर पाए हैं. प्रत्याशियों की घोषणा के साथ दल-बदल का दौर चालू होगा. जिन पूर्व विधायकों के टिकट काटे जाएंगे, उनमें से कुछ दूसरे दलों से मैदान में उतरने की कोशिश करेंगे. बिहार में जाति राजनीति एक हकीकत है, जो गठबंधन सीट शेयरिंग के साथ ही जिले और अंचल में अपने सहयोगी दलों के साथ प्रत्याशियों के चयन में जातीय संतुलन बनाए रखने में कामयाब होगा, परिणाम उसके पक्ष में ही जाने की संभावना है. इस मामले में भी एनडीए का पलड़ा मजबूत दिखाई पड़ता है. 

    महगठबंधन का मुख्य आधार राजद है. इसमें ही फूट पड़ती दिखाई पड़ रही है. लालू परिवार भी विभाजित हो गया है. उनके बड़े बेटे तेजप्रताप अलग से चुनाव मैदान में उतर रहे हैं. नामांकन वापसी के बाद ही बिहार में चुनाव की वास्तविक तस्वीर सामने आएगी. प्रारंभिक आंकलन एनडीए के पक्ष में दिखाई पड़ता है. 

     लालू और तेजस्वी यादव को आईआरसीटीसी मामले में अदालत के फैसले से भी झटका लगा है. लालू पर तो चारा घोटाले में पहले ही भ्रष्टाचार साबित हो चुका है. अब इस मामले में भी आरोप तय कर दिए गए हैं और चुनाव के मौके पर भ्रष्टाचार के मामले में तेजस्वी यादव का आरोपी होना महागठबंधन के लिए खतरे का संकेत है. राजनीतिक रूप से इसे पेश किया जाएगा. चुनावी सभाओं में ऐसा माहौल बनाया जाएगा कि भाजपा की केंद्र सरकार तेजस्वी यादव को फंसाना चाहती है.     

    राजनीतिक जागरूकता के कारण आरोप किसी पर भी चस्पा कर पाना काफी कठिन हो गया है. लालू और तेजस्वी पर आरोप अदालत द्वारा तय किए गए हैं. यह मामला काफी लंबे समय से चल रहा है. इस घोटाले की जांच में जो संपत्तियां जमीन पर यादव परिवार द्वारा बनाई गई हैं, वह भी आम पब्लिक की नजर में हैं. ऐसी स्थिति में भ्रष्टाचार का यह मामला तेजस्वी यादव को नुकसान दे सकता है.

     कांग्रेस और दूसरे सहयोगियों के सामने कोई ऑप्शन नहीं है. उन्हें तो तेजस्वी यादव को ही महागठबंधन का नेता मानना पड़ेगा. तेजस्वी यादव कई बार स्वयं को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर चुके हैं. राहुल गांधी ने अभी तक अधिकृत रूप से उनका नाम स्वीकार नहीं किया है. कांग्रेस की यह मजबूरी होगी उन्हें, सीएम फेस के रूप में ऑफीशियली स्वीकार करें. कांग्रेस किसी भी स्थिति में अकेले चुनाव नहीं लड़ सकती, इसलिए उन्हें राजद के भरोसे ही अपनी ताकत मजबूत करनी है. 

     अदालत से भ्रष्टाचार के मामले में सजायाफ्ता लालू यादव की पार्टी के साथ गठबंधन राहुल गांधी को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी छवि खराब करेगा. विदेश में जाकर जब भी करप्शन के खिलाफ कोई बात करेंगे तो उसमें नैतिक बल नहीं होगा. बिना नैतिक बल के कोई भी लीडर देश के सबसे बड़े पद पर पहुंचने की कल्पना नहीं कर सकता. 

    देश की राष्ट्रीय राजनीति में बीजेपी ने जो सफलता हासिल की है, उसमें नरेंद्र मोदी की नैतिक ताकत का बड़ा हाथ है. लगभग 25 साल मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के पद पर काम करते हुए भी उन पर कोई भी राजनीतिक भ्रष्टाचार का आरोप स्थापित नहीं किया जा सका है. गठबंधन की राजनीति में भ्रष्टाचार के आरोप पर राजनीतिक एक्शन तो स्वीकार हो जाते हैं, लेकिन जब एक बार अदालत से यह मामले प्रमाणित हो जाते हैं तो फिर जनता में उनकी विश्वसनीयता कायम हो जाती है.

    बिहार जाति की राजनीति से ग्रस्त जरूर है, लेकिन युवा वर्ग जाति के बंधन को तोड़ रहा है. जाति की राजनीति का भी जाति के युवाओं को लाभ नहीं मिलता. केवल जातियों का उपयोग होता है. 

    नीतीश और नरेंद्र मोदी की केमिस्ट्री भी इस चुनाव को प्रभावित करेगी. डबल इंजन की सरकार और विकास कार्यों के साथ नीतीश कुमार द्वारा महिला स्व सहायतासमूहों की महिलाओं को दस हज़ार की सहायता भी चुनाव की दिशा तय करेगी. 

    बिहार की चुनावी बयार एनडीए के पक्ष में झुकी हुई दिखाई पड़ रही है. अब तक के ओपिनियन पोल भी इसी तरफ इशारा कर रहे हैं. सीट शेयरिंग के मामले में भी सभी सहयोगियों को साधकर एनडीए आगे निकल गया है. वोट चोरी का मुद्दा गायब हो गया है. जिस मुद्दे पर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने बिहार में बड़ी यात्रा निकाली उस मुद्दे पर अब वह बात भी नहीं कर रहे हैं. वोट चोरी के आरोप लगाने की राजनीतिक गलती भी महागठबंधन को झटका दे सकती है.

    बिहार के चुनाव परिणाम राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करेंगे. दूसरे राज्य असम, बंगाल में होने वाले चुनाव पर भी इन परिणामों का प्रभाव पड़ेगा. चुनावी तस्वीर यही बता रही है, कि परिणामों के बाद ही असली सीएम तय होगा. अदालती फ़ैसला विरोधियों का हौसला बढ़ाएगा.