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संस्कार बोलता है, दिखता है

सार

     सार्वजनिक जीवन में आचरण को लेकर विवाद कम होने के बदले बढ़ते ही जा रहे हैं. राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका गांधी के सार्वजनिक मंच पर दृश्य से आहत मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के वक्तव्य पर विवाद बढ़ गया है..!!

janmat

विस्तार

     यह पूरा मामला पब्लिक लाइफ में आचरण से जुड़ा हुआ है. इसमें किसी रिश्ते की पवित्रता पर प्रश्न नहीं हैं. बल्कि रिश्तों के सार्वजनिक प्रदर्शन पर संस्कारों के मापदंड का है. कैलाश विजयवर्गीय कोई  नए नेता नहीं हैं. उनका राजनीतिक जीवन जनभावनाओं के साथ खड़ा और गढ़ा हुआ है. कैलाश विजयवर्गीय के वक्तव्य को अगर कांग्रेस निंदात्मक मानती है, तो जिस क्रिया पर यह प्रतिक्रिया हुई है, राहुल गांधी के उस आचरण को क्या कोई प्रशंसा योग्य मान सकता है. सवाल रिश्तों का नहीं है, सवाल सार्वजनिक जीवन में आचरण में मर्यादा के आवरण का है.

     भारत और विदेश की संस्कृति अलग-अलग है. भारत में अभिवादन की जो परंपरा है वह विदेश में नहीं है. विदेश में अभिवादन की परंपरा भारत में सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं की जाती. कांग्रेस और मीडिया जिस तरह से इस पूरे मामले को बार-बार दोहराकर जनमानस में पहुंचा रही है, वह भी जन प्रतिनिधियो के आचरण पर ही सवाल खड़े कर रहा है. अगर राहुल गांधी और कैलाश विजयवर्गीय का सार्वजनिक आचरण प्रशंसनीय नहीं है, तो फिर उसको चाहे खबर के लिए हो चाहे आंदोलन के लिए हो क्यों व्यवहार में लाया जाना चाहिए. सामान्य रूप से ऐसा माना जाता है, कि जो तथ्य समाज के लिए स्वस्थ नहीं है, उसे दोहराया नहीं जाना चाहिए.

     जन प्रतिनिधियों को सार्वजनिक व्यवहार में ईमानदारी नैतिकता और सम्मान का पालन करना चाहिए. इससे सामाजिक व्यवस्था बनती है और उनके प्रति विश्वास बढ़ता है. मर्यादित आचरण ही व्यक्ति और समाज के लिए एक आदर्श स्थापित करता है. सार्वजनिक जीवन में मर्यादा वह आचार संहिता है, जो व्यक्ति को नैतिक और सामाजिक मूल्यों के अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करती है. 

    कैलाश विजयवर्गीय की कितनी भी आलोचना की जाए लेकिन इतना तो तय है कि उन्होंने संस्कारों को लेकर जो भी विचार व्यक्त किया है, उसको करने के लिए उन्हें अवसर दिया गया. अगर सार्वजनिक मंच पर राहुल द्वारा ऐसे दृश्य नहीं दिखाए गए होते, तो यह प्रतिक्रिया का अवसर ही नहीं आता. प्रतिक्रिया सही है या गलत है, इस पर अलग-अलग राय हो सकती हैं. इसीलिए पब्लिक लाइफ में ऐसा आचरण करने से बचना चाहिए जहां अलग-अलग प्रतिक्रिया संभावित है.

     राहुल गांधी के समर्थकों को उनके आचरण में कोई गलती नहीं दिखाई पड़ती होगी, लेकिन भारतीय संस्कृति के अनुयायियों को आपत्तिजनक लग सकता है. ऐसा आचरण करना ही क्यों जिसमें किसी को भी आपत्ति उठाने का मौका मिल सके. जो व्यवहार विदेशी संस्कृति में स्वीकार्य है वह भारतीय संस्कृति में अस्वीकार है.  

    कैलाश विजयवर्गीय का राजनीतिक कैरियर भी राहुल गांधी से तो लंबा ही है. अनुभव की दृष्टि से भी वहीं सीनियर होंगे. उनकी किसी भी प्रकार की आलोचना मूल कारण को संस्कारों की दृष्टि से देखने से रोक नहीं सकते हैं. उनके विचार को भाई-बहन को पवित्र रिश्ते से जोड़कर ऐसा प्रकट करने की कोशिश की गई कि जैसे उनका सवाल रिश्ते पर है. इस पर कैलाश विजयवर्गीय ने सफाई दी. उनका कहना है, यह रिश्ते की पवित्रता पर सवाल नहीं है. सवाल सिर्फ भारतीय-विदेशी संस्कृति को लेकर है. 

    मर्यादा के बिना समाज का चलना संभव नहीं है. परिवार, समाज, ऑफिस, स्कूल, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजाघर, अस्पताल सबकी अपनी मर्यादाएं हैं. दो व्यक्तियों के बीच भी मर्यादा रेखा होती है. पिता-पुत्र, पड़ोसी, पति-पत्नी, भाई-बहन सहित जीवन में जो भी रिश्ते हैं, कोई भी रिश्ता अमर्यादित नहीं है. मर्यादा का निर्वाह ही अच्छे समाज का निर्माण करता है. प्रकृति की भी मर्यादा है. जब भी यह मर्यादा टूटती है, तो सैलाब आता है, भूकंप आता है, मर्यादा दो व्यक्तियों के बीच एक सीमा होती है, जिसे पार नहीं किया जा सकता. जो व्यवहार बातें हम बड़ों से कर सकते हैं,  वह बच्चों से नहीं कर सकते. यह भी मर्यादा है.

    सियासत में सब तरह की मर्यादाएं टूटती जा रही हैं. भाषा की मर्यादा अब कहीं बची नहीं दिखती. चोर और बम सियासत की आम भाषा हो गई है. गाली-गलौच नफरत प्रकट करने का जरिया बन गया है. वेशभूषा और खान-पान भी सियासी हथियार बन गए हैं. हर जनप्रतिनिधि का एक समर्थक समूह होता है. कोई भी जनप्रतिनिधि अपने अच्छे-बुरे आचरण से उन्हें तो प्रभावित कर सकता है, लेकिन जो समूह उसके साथ नहीं है वह तो नैतिकता और मर्यादा के आधार पर आचरण का आंकलन करेगा. इसी कारण विवाद होता है. जो समर्थक हैं उन्हें तो अपने नेता का खराब आचरण भी अच्छा लगता है. 

     जो भी कैलाश विजयवगीय के वक्तव्य की आलोचना कर रहे हैं, उन्हें राहुल गांधी के आचरण के भी निंदा करनी पड़ेगी. रिश्ते सार्वजनिक विषय नहीं हैं. पब्लिक लाइफ आसान नहीं है. इसको मन, वचन, कर्म से मर्यादित ढंग से बिताना चुनौती पूर्ण है.

     केवल शब्दों से ही संवाद नहीं होता. शरीर, संस्कार, अहंकार, धन और पद की भी भाषा होती है. मर्यादा इस सबसे ऊपर होती है. सार्वजनिक जीवन में तो जिसने भी इसकी अनदेखी की समय उसके भविष्य को मुरझाने में विलंब नहीं करता. संस्कार ना केवल बोलता है, बल्कि दिखता भी है.