भारत को महिला पुलिसकर्मियों के मामले में साल 2010 में मौजूद 4.25 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 10.49 प्रतिशत से ऊपर जाने में एक दशक से अधिक का समय लगा है..!
‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2020’ सामने है। यह रिपोर्ट भारत और उसके राज्यों के पुलिस बल में तैनात महिला कर्मियों की संख्या के हाल को बयान करती है। देश में अभी भी ऐसे राज्य हैं, जहां चार प्रतिशत महिला पुलिसकर्मी भी नहीं हैं। देश में लिंगानुपात के मामले में सबसे बेहतर राज्य बिहार है तो यह अनुपात जम्मू कश्मीर में सबसे कम है।
भारत को महिला पुलिसकर्मियों के मामले में साल 2010 में मौजूद 4.25 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 10.49 प्रतिशत से ऊपर जाने में एक दशक से अधिक का समय लगा है। इसके विपरीत , मलेशिया और चीन में क्रमश: 18 एवं 14 प्रतिशत महिला पुलिसकर्मी हैं, तो इंग्लैंड में 33 प्रतिशत से अधिक महिला पुलिसकर्मी होने के आँकड़े सामने मौजूद हैं।
एक और तथ्य सामने है कि पुलिस बल में रिक्तियां हैं, राष्ट्रीय औसत लगभग 21.4 प्रतिशत है, इसके विपरीत आम चलन यह है कि “किसी भर्ती में महिलाओं की बहाली एक तिहाई से अधिक न हो।“ रिपोर्ट बताती है इस दर से, बिहार को 33 प्रतिशत महिला पुलिसकर्मियों तक पहुंचने में तीन और साल लगेंगे, जबकि मध्य प्रदेश जैसे राज्य को 180 साल लग जाएंगे। भर्ती में कांस्टेबल स्तर की रिक्तियों को भरने पर जोर दिया जाता है, जबकि मुख्य जांच व पर्यवेक्षी भूमिकाएं पुरुषों के लिए बनी रहती हैं।
नतीजतन, महिलाएँ खुद को निम्न श्रेणी में पाती हैं। जिन राज्यों में महिला पुलिसकर्मियों का प्रतिशत सर्वाधिक है, जैसे बिहार एवं हिमाचल प्रदेश, वहां भी अधिकारी स्तर पर सिर्फ छह और पांच प्रतिशत महिलाएं हैं। फिर भी कुछ तथ्य उल्लेखनीय हैं। जैसे वर्ष 2015 और 2020 के बीच, महिला पुलिसकर्मी के मामले में तमिलनाडु 13 से 19 प्रतिशत, गुजरातमें 4 से 16 प्रतिशत व तेलंगाना में 3 से 8 प्रतिशत पर यह अनुपात पहुंच गया। अन्य राज्य पिछड़ गए या फिर स्थिर पाए गए। जैसे मिजोरम 6.8 से 7 प्रतिशत, सिक्किम 8 से 8.4 प्रतिशत, और उड़ीसा 8.8 प्रतिशत से 9.1 प्रतिशत तक आए हैं।
सामान्य रूप से यह तर्क दिया जाता है कि महिलाएं अपनी शारीरिक और मानसिक दृढ़ता की कमी के कारण पुलिस में शामिल होने के लिए तैयार नहीं होती हैं। एक तथ्य यह भी है खतरनाक कार्रवाई और शारीरिक कौशल पर कई बार ज्यादा निर्भरता के बावजूद वास्तव में पुलिस के जिम्मे बहुत सारे ऐसे कार्य होते हैं, जिनमें दिमाग़ी कौशल की जरूरत होती है।
पुलिस के सभी कार्यों के लिए कुशल बुद्धि, संवाद कौशल और ज्ञान की जरूरत होती है।
पुलिस को सड़कों पर नागरिकों के साथ लड़ाई में भाग लेने या सशस्त्र लुटेरों को रोकने की भी जरूरत होती है। इन हालात में भी महिलाएं बहादुरी से खुद को बरी करती नजर आ रही हैं। केरल के पूर्व पुलिस महानिदेशक जैकब पुन्नूस की कही बात याद आती है, ‘महिलाओं को पुलिस में जितनी नौकरी चाहिए, उससे कहीं अधिक अच्छी पुलिसिंग के लिए पुलिस बल में महिलाओं की जरूरत है।’ हक़ीक़त में यह सच भी है।
वैसे देश के पुलिस बल में महिलाओं को ज्यादा संख्या में शामिल करने के लिए संस्थागत तैयारियों का भी अभाव है। अलग शौचालय की व्यवस्था, काम के उचित घंटे, और फ्लेक्सी-टाइम देने की अनिच्छा से लेकर, आदेशों को स्वीकार करने तक और गहन पितृ-सत्तात्मक प्रतिरोध तक अनेक समस्याएं हैं, जिन्हें सभी के लिए दूर किया चाहिए।
यौन उत्पीड़न समितियों और सख्त आदेशों के बावजूद कार्यस्थल पर महिलाओ की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सक्षम नहीं होना पूरे पुलिस के लिए भी एक गंभीर मुद्दा है। पुलिस बल में किसी भी अनुचित व्यवहार के लिए शून्य सहनशीलता की नीति होनी चाहिए। बदमाशी और उत्पीड़न के मामले वैसे भी देश में कम रिपोर्ट किए जाते हैं।
2019 की स्थिति पर आधारित एक सर्वेक्षण में एक चौथाई पुलिसकर्मियों ने कहा कि उनके थाने/क्षेत्राधिकार में कोई यौन उत्पीड़न समिति नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में पुलिस बल में महिलाओं के खिलाफ पूर्वाग्रह उच्चतम स्तर पर है, अर्थात् इन राज्यों में कर्मियों के यह मानने की सबसे अधिक आशंका है कि महिला पुलिसकर्मी कम कुशल होती हैं और उन्हें अपने व घर पर ध्यान देना चाहिए।
संस्थागत आवास की कमी भी उन्हें सामाजिक रूप से ज्यादा परेशान करती है। दूसरों को सुरक्षा देने से पहले महिलाओं को अपने पेशेवर परिवेश में सुरक्षित और सम्मानित महसूस करने में सक्षम बनाना भी एक उपाय है । महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा को कम करने के लिए भी महिला पुलिसकर्मियों की बड़ी जरूरत है।