जनगणना का काम वैसे तो 2021 में होना था। इसे कोविड-19 महामारी के कारण टाला गया लेकिन हालात सामान्य होने के बाद भी इसमें देरी क्यों होती रही यह स्पष्ट नहीं है..!!
देश में अगली जनगणना दो चरणों में पूरी की जाएगी। पहले चरण में देश के पहाड़ी इलाकों मसलन जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की जनगणना का काम 1 अक्टूबर, 2026 तक पूरा किया जाएगा। दूसरा चरण जिसे 1 मार्च, 2027 तक पूरा किया जाना है उसमें देश के बाकी हिस्सों की जनगणना की जाएगी।
जनगणना का काम वैसे तो 2021 में होना था। इसे कोविड-19 महामारी के कारण टाला गया लेकिन हालात सामान्य होने के बाद भी इसमें देरी क्यों होती रही यह स्पष्ट नहीं है। बहरहाल इस बात का स्वागत किया जाना चाहिए कि सरकार ने जनगणना के लिए एक समयसीमा की घोषणा कर दी है। यह जनगणना 16 वर्षों के अंतराल पर होने जा रही है और इसमें स्वतंत्रता के पश्चात पहली बार विस्तृत जाति जनगणना के आंकड़े भी शामिल किए जाएंगे। इससे पहले अंतिम जाति जनगणना 1931 में की गई थी।
भारत जैसे तेजी से विकसित होते देश में दशकीय जनगणना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। लंबे अंतराल को देखते हुए 2027 की जनगणना के आंकड़ों की उत्सुकता से प्रतीक्षा होगी। पिछली जनगणना के बाद से देश काफी बदल चुका है। उदाहरण के लिए देश का सकल घरेलू उत्पाद जो 2011 की जनगणना में करीब 1.8 लाख करोड़ डॉलर था उसके 2027 तक 5 लाख करोड़ डॉलर का आंकड़ा पार कर जाने का अनुमान है। देश में शहरीकरण की गति भी तेज हुई है।
नीतिगत उद्देश्यों की बात करें तो ताजातरीन आंकड़ों की सख्त आवश्यकता है। कारोबार की बात करें तो जिस बिक्री को ग्रामीण माना जा रहा है और उस मद में डाला जा रहा है उसका कुछ हिस्सा शहरी हो सकता है। ऐसे में जनगणना स्पष्टता लाने में मदद करेगी। इसके अलावा यह जानना भी महत्त्वपूर्ण है कि आबादी का वास्तविक आकार क्या है।
इसके बारे में अनुमान है कि यह चीन से अधिक हो चुकी है और हमारा देश दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला मुल्क है। यह भी संभव है कि जन्मदर घटी हो और वह सर्वेक्षणों में दिए गए संकेतों से काफी कम हो चुकी हो। ऐसे में जनगणना कई अहम सवालों के जवाब देगी और बेहतर जानकारीपरक नीति बनाने में मददगार होगी।
सामाजिक-आर्थिक पहलुओं के अलावा 2027 की जनगणना के राजनीतिक असर भी होंगे। जैसा कि हमने ऊपर कहा इसमें जाति के आंकड़े जुटाए जाएंगे। यह ध्यान देना जरूरी है कि जाति जनगणना 2024 के चुनावों में भी एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा थी। वास्तविक जनगणना के आंकड़ों के साथ राजनीति में जाति की प्रासंगिकता और बढ़ेगी। इस मामले से राजनीतिक परिपक्वता के साथ निपटना होगा। जाति के आंकड़े आरक्षण बढ़ाने की मांग को मजबूत करेंगे। इसके अलावा अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में शामिल होने की होड़ बढ़ सकती है। इससे उपवर्ग तैयार करने की मांग पैदा बढ़ सकती है। इससे समाज में विभाजन बढ़ सकता है जिसका प्रबंधन करना होगा।
जनगणना की घोषणा ने परिसीमन की बहस को भी दोबारा जन्म दे दिया है। संविधान में कहा गया है कि लोक सभा क्षेत्रों का पुनर्संयोजन 2026 के बाद पहली जनगणना के आधार पर होना चाहिए। विधायिका में एक तिहाई महिलाओं का आरक्षण भी अगले परिसीमन पर निर्भर है। यह स्पष्ट नहीं है कि अंतिम जनगणना रिपोर्ट कितनी जल्दी उपलब्ध होगी और क्या 2029 के लोक सभा चुनाव के पहले परिसीमन की कवायद पूरा करने के लिए पर्याप्त समय होगा।
अगर 2029 के पहले ऐसा नहीं होता है तो भी राजनीतिक विवाद का एक और मोर्चा खुल सकता है। दक्षिण भारत के राज्यों को डर है कि उनका प्रतिनिधित्व कम होगा क्योंकि उत्तर और दक्षिण भारत के बीच आबादी में अंतर बढ़ा है। ऐसे में जनगणना जहां बेहतर नीति निर्माण में मदद करेगी वहीं इसके राजनीतिक प्रभावों का भी प्रबंधन करना होगा।