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सियासी दर्शन नहीं आत्मदर्शन का मार्ग है, देवदर्शन

सार

लोकसभा चुनाव में दूसरे चरण की पोलिंग की पूर्व संध्या पर ब्रेकिंग खबर आई है, कि राहुल गांधी परिवार की परंपरागत सीट अमेठी से भी चुनाव लड़ेंगे. सोनिया गांधी द्वारा छोड़ी गई रायबरेली सीट से प्रियंका गांधी के चुनाव मैदान में उतरने की खबर है..!!

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विस्तार

    इससे भी बड़ी ब्रेकिंग ख़बर यह आई राहुल गांधी और प्रियंका गांधी अयोध्या जाकर रामलला के दर्शन करेंगे. भगवान राम भारत की आस्था और संस्कार हैं. रामलला के दर्शन हर व्यक्ति की कामना होती है. अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण और रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद करोड़ों लोग दर्शन कर चुके हैं. हर रोज लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं.

    रामलला का दर्शनार्थी देवदर्शन के साथ आत्मदर्शन के मार्ग पर आगे बढ़ने की कोशिश करता है. चुनाव के समय सियासी देवदर्शन अक्सर देखे जाते हैं. मंदिर में दर्शन और पूजन के बाद चुनाव का नामांकन एक औपचारिकता सी बन गई है. 

     अयोध्या में राम मंदिर में राहुल और प्रियंका द्वारा रामलला का दर्शन इसलिए खास कहा जा सकता है, कि जब प्राण प्रतिष्ठा में ससम्मान आमंत्रित किया गया था, तब तो उसे ठुकरा दिया गया था और अब नामांकन के पहले चुनावी भविष्य के लिए देवदर्शन की ज़रूरत महसूस की गई है. राहुल और प्रियंका गांधी का रामलला का दर्शन करने जाने की श्रद्धा निश्चित ही भारतीय आस्था और भावनाओं का सम्मान ही कहा जाएगा.

    राम मंदिर और कांग्रेस का बहुत पुराना राजनीतिक याराना रहा है. अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों को साधने के लिए कांग्रेस ने शाहबानो मामले में सर्वोच्च अदालत के फैसले को संसद में बदला, तो बहुसंख्यकों के लिए राम जन्मभूमि का ताला खुलवाने का काम भी कांग्रेस ने ही किया. राम जन्मभूमि मुक्ति का आंदोलन जब से शुरू हुआ, तब से कांग्रेस का राजनीतिक पराभव भी जुड़ता गया दूसरी तरफ राम मंदिर आंदोलन में भागीदारी से ही बीजेपी का राजनीतिक उदय बढ़ता गया. 

    इस लोकसभा चुनाव में भी राम मंदिर निर्माण का मुद्दा जन भावनाओं में समाया हुआ है. बीजेपी की तरफ से इस मामले को लगातार उठाया जा रहा है. बीजेपी के सभी स्टार प्रचारकों द्वारा राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा समारोह का कांग्रेस द्वारा निमंत्रण ठुकराए जाने का भावनात्मक मुद्दा मतदाताओं के सामने उठाया जा रहा है.कांग्रेस की ओर से अब तक इस पर कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाया था. 

    राहुल और प्रियंका गांधी के रामलला के दर्शन करने जाने से इसका जवाब कुछ हद तक मिल जाएगा. ऐसा लगता है. कि कांग्रेस द्वारा प्राण-प्रतिष्ठा समारोह का आमंत्रण ठुकराए जाने की ग़लती बहुत देर से महसूस की गई है. लोकसभा के दो चरणों के चुनाव हो चुके हैं. अगर रामलला का दर्शन चुनाव में किसी लाभ की दृष्टि से करने का सोचा गया है तो फिर 200 सीटों के चुनाव होने तक इसे क्यों रोका गया. यह बात समझ से परे है. क्या वायनाड सीट पर चुनाव संपन्न होने का इंतजार किया जा रहा था? इस सीट पर अल्पसंख्यकों की बहुतायत है.

     दक्षिण भारत में भी दोनों चरणों में काफी सीटों पर चुनाव संपन्न हो चुके हैं. उत्तर भारत में राममंदिर का भावनात्मक मुद्दा ज्यादा हावी है. राम मंदिर पर परसेप्शन वॉर कांग्रेस पहले ही हार चुकी है. बीजेपी यह साबित करने में सफ़ल रही, कि कांग्रेस राम मंदिर आंदोलन की विरोधी रही है. भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल उठाए गए थे. राम जन्मभूमि पर सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमे में भी कांग्रेस से जुड़े लोगों ने राम मंदिर निर्माण का विरोध किया था. 

    भौतिक सफलता या असफलता अंतत: धार्मिक आस्था के दरवाजे पर ही ले जाती है. आस्था पर बिना आस्था व्यक्त किए सुख-शांति की अनुभूति आंशिक होती है. कोई भी देवदर्शन किन्हीं भी परिस्थितियों में करें लेकिन भारतीय संस्कृति में ऐसा माना जाता है, कि ईश्वर के बुलाने पर ही यह दर्शन संभव हो पता है. कोई भी व्यक्ति तब तक दर्शन नहीं कर सकता जब तक भगवान का बुलावा ना आया हो. रामलला राजनीति से ऊपर हैं. यह बात जितनी जल्दी देश के सभी राजनेताओं को समझ आ जाए उतनी जल्दी ही राजनीतिक धर्मांधता मिट सकती है.

    गांधी परिवार अपनी परंपरागत सीट अमेठी और रायबरेली से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गया है. सूत्र जो बता रहे हैं, उसके अनुसार राहुल गांधी अमेठी से नामांकन भरेंगे. प्रियंका गांधी रायबरेली से चुनाव मैदान में उतरेंगी. जीत-हार अपनी जगह है, लेकिन राजनीति में चुनाव लड़ना मुख्य बात होती है. इन दोनों सीटों पर गांधी परिवार के चुनाव लड़ने से क्या उत्तर भारत में कोई राजनीतिक परिस्थितियां करवट ले सकती है. 

     यूपी की राजनीति दशकों पहले ही बदल चुकी है. समाजवादी पार्टी मुख्य विपक्षी दल है, लेकिन राष्ट्रीय मुद्दों पर समाजवादी पार्टी भी बीजेपी के मुकाबले में पीछे ही दिखाई पड़ती है. कांग्रेस का जहां तक सवाल है, यूपी में कांग्रेस अपना वजूद खो चुकी है. यह दो ही सीट हैं, जिन पर कांग्रेस चुनाव लड़ने और जीतने का दावा कर सकती है. समाजवादी से गठबंधन के बाद कांग्रेस इन दो सीटों पर लड़ाई में ज़रूर रहेगी. चुनाव परिणाम कुछ भी हो सकते हैं. लेकिन राम मंदिर और राष्ट्रवाद की चुनावी हवा में अगर यूपी की सभी 80 सीटें एक तरफा नरेंद्र मोदी की तरफ झुक जाएं तो यह कोई आश्चर्यजनक स्थिति नहीं होगी.

    बहुजन समाज पार्टी अलग से चुनाव लड़ रही है. कांग्रेस सपा और भाजपा अपने जनाधार में सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाताओं पर आशा टिकाए हुए हैं. मुस्लिम मतदाताओं का गुप्त समर्थन बीजेपी के साथ भी जा सकता है. कुछ सीमा तक तो जाएगा ही इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए. कांग्रेस, सपा, बसपा अलग-अलग समय पर गठबंधन करके यूपी में चुनाव लड़ चुकी हैं. पिछले चुनाव में बसपा और सपा का गठबंधन था. इस चुनाव में सपा और कांग्रेस का गठबंधन है. 

    यूपी राजनीतिक रूप से बहुत जागरूक राज्य है. यहां हिंदू मुस्लिम की राजनीति भी हावी रहती है. हिंदुत्व की राजनीति का केंद्र भी उत्तर प्रदेश ही है. अयोध्या, काशी मथुरा हिंदुओं के आस्था केंद्र यूपी में ही हैं. पीएम नरेंद्र मोदी भी काशी से चुनाव लड़ रहे हैं. यूपी में ध्रुवीकरण चरम पर है. चलते चुनाव जिस तरह के मुद्दे तुष्टीकरण के लिए कांग्रेस की ओर से उठाए जा रहे हैं, उसके कारण भी ध्रुवीकरण बढ़ता हुआ दिखाई पड़ रहा है.

    आज तक ऐसा नहीं हुआ है कि बिना उत्तर प्रदेश जीते कोई भी दल केंद्र में सरकार बना सका है. भारत में ऐसा पहली बार हुआ, कि प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में कोई नेता जनादेश के लिए उतरा. पीएम मोदी को भाजपा ने 2014 में प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाया उसके बाद ही पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो सका. इसके पहले जितने भी प्रधानमंत्री बने वह सब परिस्थितियों के कारण बने और फिर चुनाव में जनादेश प्राप्त किया. यह लोकसभा चुनाव भी प्रधानमंत्री पद पर जनादेश का चुनाव है. 

    चुनाव इसी दिशा में सिमट रहा है, कि लोग सांसद नहीं बल्कि देश के प्रधानमंत्री का चुनाव कर रहे हैं. बीजेपी की ओर से चुनाव मैदान में हर प्रत्याशी प्रचार अभियान में अपने लिए वोट मांगने से ज्यादा पीएम मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट मांग रहा है.

     भाजपा राजनीतिक रूप से जहां पूरे चुनाव अभियान को अपने एजेंडे पर चलाने में सफल हो रही है, वहीं कांग्रेस लगातार प्रचार अभियान में तुष्टिकरण की वैचारिक गलती कर रही है. हर रोज नए-नए मामले उठाए जा रहे हैं. जिसमें यह बात सामने आ रही है, कि कांग्रेस की ओर से वोट बैंक के तुष्टीकरण के लिए संविधान को न केवल छला गया है, बल्कि पिछड़े और कमजोर वर्गों का भी शोषण किया गया है. 

     सबसे ताजा मामला कांग्रेस की कर्नाटक सरकार द्वारा ओबीसी की लिस्ट में मुस्लिम जातियों को शामिल करने का मुद्दा उठाया गया है. मज़हब के आधार पर आरक्षण का मामला भी कांग्रेस के खिलाफ़ बढ़ाया जा रहा है. कांग्रेस शासित राज्यों में समय-समय पर मुस्लिम समाज को आरक्षण देने की पहल की गई थी. कानूनी रोक के कारण यह लागू नहीं हो सका. लेकिन कांग्रेस की मंशा हमेशा मुस्लिम आरक्षण लागू करने की रही है.

    भाजपा हमेशा चाहती रही है, कि तुष्टीकरण की राजनीति के चलते ध्रुवीकरण जितना तेजी से होगा उतना ही उसे राजनीतिक फायदा होगा. चुनाव की शुरुआत में तो तुष्टीकरण के खिलाफ़ भाजपा इतनी आक्रामक नहीं थी. लेकिन जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ता जा रहा है, कांग्रेस के तुष्टीकरण के वायदों और नीतियों के खिलाफ़ बीजेपी की आक्रामकता बढ़ती जा रही है. पीएम मोदी भी  खुलकर कांग्रेस की उन नीतियों और वायदों पर हमला कर रहे हैं, जो मजहब के आधार पर आरक्षण और धन-संपत्ति के बंटवारे को लेकर सामने आ रही हैं.

    यदि कोई विशेषज्ञ पहली बार आए और भारत के चुनाव का अध्ययन करना चाहे तो उसको बिना किसी परिश्रम के यह साफ-साफ दिखाई पड़ जाएगा, कि पूरा चुनाव अभियान किन महत्वपूर्ण मुद्दों पर सिमट गया है. अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण जहां बड़ा मुद्दा बन गया है, वहीं राम मंदिर का निर्माण मजबूत नेता और मजबूत सरकार भारत में मजबूत राष्ट्रवाद चुनाव के निर्णायक मुद्दे बनते दिखाई पड़ रहे हैं. चुनावी मुद्दे क्रिया-प्रतिक्रिया के साथ हर दिन नए रूप में सामने आ रहे हैं.

     राहुल और प्रियंका गांधी के अयोध्या में रामलला के दर्शन और अमेठी-रायबरेली से चुनाव लड़ने की सूचना के बाद धार्मिक तृष्टीकरण का मामला और तेज गति पकड़ सकता है. अखिलेश यादव भी चुनाव मैदान में उतर गए हैं लोकतंत्र में परिवारवाद विकृत स्वरूप में दिखाई पड़ रहा है. 

    यादव परिवार के पांच प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. वायनाड  में चुनाव के बाद अमेठी से नामांकन भरने की राहुल गांधी की राजनीति की इच्छा बहुत साहसिक कदम नहीं कहीं जा सकती. दो सीटों से चुनाव लड़ने की प्रवृत्ति को रोका जाना चाहिए. इससे बाद में संसाधनों का दुरुपयोग होता है.

     रामलला की भी लोकसभा चुनाव पर गहरी नज़र है. अयोध्या में अभी संपूर्ण निर्माण नहीं हुआ है. बहुत सारे काम अभी चल ही रहे हैं. सब कुछ पूरा किए बिना विश्राम कैसे लिया जा सकता है. भारत की मान-प्रतिष्ठा के लिए स्थिर मजबूत ईमानदार और राष्ट्रभक्त सरकार की प्राण-प्रतिष्ठा जरूरी है.