• India
  • Mon , Jun , 23 , 2025
  • Last Update 09:31:PM
  • 29℃ Bhopal, India

धन चंगा तो कठौती में गंगा

सार

भारत भवन में सदा नीरा लय ताल, नृत्य गायन, कविता प्रदर्शनी और चित्रांकन के जरिए जल गंगा संवर्धन अभियान की उल्टी गंगा बहाई जा रही है. बारिश के साथ ही किसान बुआई की तैयारी कर रहे हैं..!!

janmat

विस्तार

    टपकती घरों की छतों को सुधारने में लगे हैं. बारिश के पानी को बचाने की जरूरत है. सरकार के विभिन्न विभाग इसमें सहयोग कर रहे हैं. इसीलिए जल गंगा संवर्धन अभियान चलाया गया है. वैसे यह अभियान नया नहीं है. मध्य प्रदेश में पानी रोको अभियान दशकों से चल रहा है, लेकिन ना नदियों में जल बढ़ा है. ना प्रदूषण घटा है और भू जल स्तर गिरता ही जा रहा है.

    उल्टी गंगा तब बहती है जब जिसका जो काम नहीं है, उसको करने और दिखाने में वह जुट जाता है. सदानीरा समारोह वीर भारत न्यास द्वारा आयोजित और जनधन प्रायोजित है. जल गंगा संवर्धन अभियान ग्रामीण विकास विभाग, नगरीय विभाग के साथ ही भारत सरकार और राज्य सरकार के संयुक्त प्रयास से संचालित किया जा रहा है.

    वीर भारत न्यास का इसमें कोई रोल नहीं है, लेकिन सिस्टम की त्रासदी यही है, कि जिसका जो काम है, उसको छोड़कर वह दूसरे काम करने को उत्साहित रहता है. किस काम के लिए कौन सा विभाग बनाया गया है और वह कौन सा काम संपादित कर रहा है, यह देखने वाला भी शायद कोई नहीं है. कार्यशाला और ऐसे भव्य समारोह जिसमें सत्ता शीर्ष को स्वागत सत्कार और मीडिया फोकस का अवसर मिलता है, उस पर फिर सवाल कौन खड़े करेगा? मीडिया भी नहीं खड़े करता क्योंकि उसे तो विज्ञापन मिलता है. 

    सदानीरा समारोह जागरूकता के लिए हो सकते हैं, लेकिन यह जागरूकता भी अगर किसानों के बीच बढ़ाई जाती तो ज्यादा उपयोगी होती. इस समारोह में वही कलाकार, कथाकार,नाटककार और कवि हैं जो गाहे-बगाहे जनधन पर अन्य समारोह में बुलाए जाते हैं. जल गंगा संवर्धन अभियान जीवन रक्षा का अभियान है. पानी ही एक ऐसा है, जिसे प्रकृति ने जो दिया है, उसके अतिरिक्त निर्मित नहीं किया जा सकता.

    जल संरक्षण और संवर्धन के प्रति स्वाभाविक रूप से जागरूकता बढ़ी है. सरकारें भी इस दिशा में प्रयास कर रही हैं. नाट्य ताल में समारोह सबसे आसान होता है. जल संरक्षण और संवर्धन के लिए हम नदी जोड़ो कार्यक्रम भी चला रहे हैं.

    मानव जीवन के लिए सदानीरा और शुद्ध नीरा नदियां जरूरी हैं. नदियों की आज वास्तविक हालत क्या है? बादलों को आमंत्रित करने वाले वृक्ष हम ही काट रहे हैं. शहरी क्षेत्र के जल स्रोत गटर नीरा बन गए हैं. नदियां गंदे नालों में बदल गई हैं. झील और तालाब अतिक्रमण का शिकार हो गए हैं.

    राजधानी भोपाल में ही बड़े और छोटे तालाब में गंदे नालों के मिलने को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से भी योजनाएं क्रियान्वित की गई हैं, लेकिन आज भी इसमें गंदे नाले मिल रहे हैं. नदियों में मिलने वाले अपशिष्ट को रोकने के लिए नगरीय निकाय द्वारा जल को शुद्ध करने के लिए जल शोधन संयंत्र की योजनाएं तो बनी हैं, लेकिन अभी तक उन पर पूरी तरह से अमल नहीं हो पाया है. 

    नर्मदा में ही कितने शहरों की गंदगी जा रही है. जल को बचाने के लिए एक किसान की भावना भारत भवन में बैठकर हम कभी समझ ही नहीं सकते. तन मन धन लगाकर किसान अपने घरेलू और खेती के उपयोग के लिए जल बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ता. अगर उसे वित्तीय और तकनीकी सहयोग समय पर उपलब्ध होता रहे तो इस दिशा में उपलब्धि हासिल करने से कोई रोक नहीं सकता.

    सबसे बड़ी कठिनाई सिस्टम की नाट्य परंपरा है. कुछ भी हो मानसिकता यही होती है, कि स्थापित लोगों को बुलाकर एक समारोह कर लिया जाए, उसमें राज्य के सत्ता शीर्ष से समय मिल ही जाएगा. आयोजकों को ऐसे समारोह से अपने रिश्ते मजबूत करने के लिए मौके मिलते हैं. सरकार का धन है, इसलिए चिंता नहीं होती है. उसकी उपयोगिता पर कोई सवाल नहीं होता है.

    नदी महिमा हमारी संस्कृति में रची बसी है. हम प्रकृति की पूजा करते हैं. नदी और वृक्षों की पूजा करते हैं. इसके लिए नाट्य समारोह की जरूरत नहीं है. वीर भारत न्यास का कहना है, कि यह समारोह केवल जल संरक्षण नहीं बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण का भी प्रयास है. यह विज्ञान और परंपरा आस्था और व्यवहार का समन्वय है. जन भागीदारी से जल स्रोतों का संरक्षण वर्षा जल संचयन और पारंपरिक जल संरचनाओं का पुनरुद्धार इस अभियान का मुख्य उद्देश्य है.

    सिस्टम की इस काबिलियत पर तो कोई सवाल नहीं उठा सकता कि लच्छेदार शब्द गढ़े जाते हैं. क्या कोई यह समझ सकता है, की सदानीरा समारोह किस प्रकार से पुनरुद्धार का माध्यम बनेगा. या तो ग्रामीण विकास विभाग इस दिशा में प्रयास करेगा, या नगरीय प्रशासन विभाग अपनी भूमिका निभाएगा. किसान या आम नागरिक के योगदान से इस दिशा में कोई सार्थक प्रगति हो सकेगी. 

    सरकार का कोई विभाग कोई भी आयोजन करता है, तो उसमें सरकार के विभिन्न अंगों का सहयोग होता है. ऐसा पहली बार देखा जा रहा है, कि अब आयोजक विभाग या संस्था सभी विभागों और संस्थाओं का नाम देकर उन्हें उसमें शामिल कर लेते हैं. अब तो निजी संस्थाओं का भी सहयोग लेना शुरू कर दिया गया है. सांस्कृतिक समारोह मध्य प्रदेश में बहुत अधिक होते हैं, इसके लिए किसी ऐसे समारोह की आवश्यकता नहीं है, जो उस विभाग के कार्य के अंतर्गत नहीं आते. लेकिन उस विषय को जबरन घसीटकर अपने में शामिल कर लिया जाता है. 

    चुनावी हार जीत को राजनीतिक दलों और नेताओं की सफलता या असफलता के रूप में देखा जाता है. जबकि जब भी असफलता मिलती है, तब पूरे कार्यकाल में परफॉर्मेंस की शैली और गलतियों को ईमानदारी से आंका जाना चाहिए. जब ऐसा किया जाएगा तब निश्चित रूप से सुधार के कदम भी उठाए जाएंगे. 

    अभी तो ऐसा लगता है, सत्ता बदल जाए, चेहरे बदल जाएं, लेकिन सिस्टम का तरीका नहीं बदलता. मन की आंखों से ज्यादा धन की आंखें देखने लगी हैं. सत्य के बोध और अनुभव को ही मन चंगा तो कठौती में गंगा की उक्ति के रूप में कहा जाता है. 

    अब तो ऐसा लगता है, इसे बदलकर धन चंगा तो कठौती में गंगा कर देना चाहिए. सदानीरा, शुद्ध नीरा हमारी जरूरत है. इसे वास्तविक कर्मों से हासिल किया जाएगा. नाट्य ताल से तो यह उल्टी गंगा बहाने जैसा ही साबित होगा.